साहित्य और पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय हुआ समाप्त : हमेशा याद आएंगे आशीष सिंह
वरिष्ठ लेखक, साहित्यकार और पत्रकार आशीष सिंह के निधन से छत्तीसगढ़ की साहित्यिक बिरादरी और पत्रकारिता जगत में गहरी मायूसी छा गई है। लगभग तीन दशकों तक राजधानी रायपुर में सक्रिय रहे आशीष सिंह ने अपने लेखन और संपादन से साहित्य और पत्रकारिता दोनों को नई दिशा दी।
चौबीस जनवरी 1963 को जन्मे आशीष सिंह का विगत 7 सितंबर 2025 को देर रात राजधानी रायपुर स्थित पंडित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (मेकाहारा) में देहावसान हो गया। उनके निधन की खबर ने साहित्य और पत्रकारिता जगत को स्तब्ध कर दिया।
आशीष सिंह समाजशास्त्र और प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में स्नातकोत्तर थे। उनकी लेखन शैली प्रवाहपूर्ण और गहरी सामाजिक संवेदनाओं से ओतप्रोत होती थी। उन्होंने कई अखबारों में कार्य किया और साथ ही स्वतंत्र लेखन भी किया।
आशीष सिंह छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय हरि ठाकुर के पुत्र तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, श्रमिक नेता और रायपुर नगरपालिका के तीन बार निर्वाचित अध्यक्ष रहे त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के प्रपौत्र थे।
उनका लेखन मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ की उन महान विभूतियों पर केंद्रित रहा, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अनेक पुस्तकों और ग्रंथों का संपादन किया, जिनमें छत्तीसगढ़ गौरव गाथा (स्वर्गीय हरि ठाकुर के आलेखों का संकलन), पं. रामदयाल तिवारी का महाग्रंथ गांधी मीमांसा का पुनर्प्रकाशित संस्करण और तीन खंडों में प्रकाशित ठाकुर प्यारेलाल सिंह समग्र प्रमुख हैं। वर्ष 2023 में उन्होंने अपने पिता की कृति त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह स्मृति ग्रंथ का भी संपादन किया।
उनके द्वारा संपादित अन्य उल्लेखनीय पुस्तकों में राजधानी से राजधानी तक, सुमिरन हरि ठाकुर, जज़्बा (छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित), 100 वर्ष: बापू और छत्तीसगढ़, विरासत छत्तीसगढ़, इंद्रधनुष (डॉ. देवी प्रसाद वर्मा ‘बच्चू जांजगीरी’ की कृति), और साहित्य वाचस्पति: पं. लोचन प्रसाद पांडेय (डॉ. बलदेव की कृति) शामिल हैं।
संपादन के साथ-साथ उन्होंने स्वतंत्र लेखन में भी अपनी पहचान बनाई। उनकी पुस्तकों में वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी पर आधारित अर्धविराम, विधानसभा चुनावों के लेखा-जोखा पर आधारित जनादेश, तथा स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन-परिचय और नाट्य रूपांतरण पर आधारित हमर सुराजी उल्लेखनीय हैं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर नारायण सिंह के संघर्षों पर आधारित उनका उपन्यास 1857: सोनाखान विशेष महत्व रखता है। इसे वीर नारायण सिंह पर केंद्रित पहला उपन्यास माना जाता है।
संस्कृति विभाग के लिए भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इनमें पं. रामदयाल तिवारी की कृति गांधी मीमांसा का संक्षिप्त संस्करण, उन पर आधारित पुस्तक समर्थ समालोचक: पं. रामदयाल तिवारी तथा डॉ. खूबचंद बघेल की कथा-कंथली का संपादन शामिल है। इसके अतिरिक्त, छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिए ठाकुर प्यारेलाल सिंह: विचार और व्यक्तित्व का संपादन भी उन्होंने किया।
आशीष सिंह ने साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी रचनाएँ और संपादित कृतियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं।
उनके निधन से छत्तीसगढ़ ने अपने एक प्रतिभाशाली लेखक और पत्रकार को सदा के लिए खो दिया है। अब उनकी स्मृतियाँ, कृतियाँ और पुस्तकों के माध्यम से ही वे जीवित रहेंगे।

