\

सनातन परंपरा पर औरंगजेब सबसे बड़ा हमला : 9 अप्रैल 1669 का दिन

भारत के दीर्घ सांस्कृतिक इतिहास में 9 अप्रैल 1669 एक अत्यंत मर्मांतक और निर्णायक दिन था, जब तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने एक ऐसा फरमान जारी किया, जिसने पूरे देश की सनातन परंपरा और धार्मिक आस्थाओं को मूल से झकझोर दिया। इस आदेश के अंतर्गत समस्त भारतवर्ष में हिन्दू मंदिरों के विध्वंस, धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध और भारतीय शैक्षिक संस्थानों के विनाश की योजना को मूर्त रूप दिया गया।

यह आदेश केवल एक राजनीतिक रणनीति नहीं थी, बल्कि एक सुविचारित सांस्कृतिक रूपांतरण का हिंसक प्रयास था, जो तलवार, आतंक और धार्मिक असहिष्णुता पर आधारित था। यह आदेश औरंगजेब की जीवनी “मआसिर-ए-आलमगीरी” में स्पष्ट रूप से वर्णित है, जिसे उसके दरबारी साकी मुस्ताइद खान ने लिखा था। इसके अतिरिक्त, वाराणसी गजेटियर (1967) के पृष्ठ 57 पर भी इस आदेश का ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है।

औरंगजेब का व्यक्तित्व: क्रूरता और कूटनीति का घातक संयोग

औरंगजेब को भारतीय इतिहास के सबसे कठोर और निर्दयी शासकों में गिना जाता है। उसके शासन का प्रारंभ ही पारिवारिक विश्वासघातों और रक्तरंजित सत्ता संघर्ष से हुआ था। उसने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया, अपने भाइयों की नृशंस हत्या की और सबसे प्रिय भाई दारा शिकोह का सिर काटकर पिता को “तोहफे” के रूप में भिजवाया। उसकी यह क्रूरता केवल पारिवारिक स्तर तक सीमित नहीं रही, बल्कि धर्म, संस्कृति और ज्ञान के हर स्वरूप पर उसने हमला बोला।

कुटिलता और सत्ता-संचालन में प्रवीण औरंगजेब ने धार्मिक कट्टरता की आड़ में अपने कृत्यों को वैध ठहराने के लिए धर्मगुरुओं और लेखकों की एक टोली तैयार की, जो उसके हर कृत्य को न्यायोचित ठहराती रही। लेकिन इतिहास, चाहे जितना दबाया जाए, अंततः सच को सामने लाता है।

धर्म, मंदिर और संस्कृति पर चोट

9 अप्रैल 1669 को जारी फरमान के पश्चात औरंगजेब की सेना ने समूचे भारत में मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान छेड़ दिया। ये केवल धार्मिक स्थलों का विध्वंस नहीं था, यह उस संस्कृति, परंपरा और गौरव का उन्मूलन था, जो भारत को भारत बनाती है। काशी, मथुरा, अयोध्या, उज्जैन, सोमनाथ, अहमदाबाद, वड़नगर, विदिशा, बीजापुर, उदयपुर जैसे प्रमुख तीर्थस्थल विशेष निशाने पर थे।

विशेष रूप से मथुरा का केशवदेव मंदिर, काशी का विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या का श्रीराम जन्मभूमि स्थल — ये तीनों अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक मंदिर औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिये गये। मथुरा के गोविंद देव मंदिर, जिसे अकबर के शासनकाल में राजा मानसिंह ने बनवाया था, को भी क्षतिग्रस्त किया गया। इसके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कर धार्मिक दमन को स्थापित किया गया।

शिक्षा और ज्ञान के स्रोत भी नष्ट

औरंगजेब ने केवल मंदिरों को ही नहीं, अपितु उन सभी विद्यालयों, आश्रमों और गुरुकुलों को भी समाप्त करने का आदेश दिया, जहां भारतीय पद्धति से शिक्षा दी जाती थी। उसने प्राचीन ग्रंथालयों को जलवा दिया और शिलालेखों को नष्ट कर दिया, ताकि सनातन भारत की आने वाली पीढ़ियाँ अपने गौरवशाली इतिहास से अज्ञान बनी रहें।

जनमानस पर मनोवैज्ञानिक आघात

उसने जजिया कर को न केवल दोबारा लागू किया, बल्कि उसे और कठोरता से बसूली करने का आदेश दिया। सार्वजनिक स्थलों पर हिन्दुओं को पूजा-पाठ और तीज-त्यौहार मनाने से रोक दिया गया। श्रद्धालु यदि पूजा करते हुए पाए जाते, तो या तो मार डाले जाते अथवा जबरन मतांतरण कराए जाते।

औरंगजेब की विरासत: धर्मांधता का दस्तावेज

49 वर्षों के अपने शासनकाल में औरंगजेब ने एक ऐसा ऐतिहासिक कालखंड निर्मित किया, जो भय, दमन, और धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक बन गया। उसका यह आदेश एक सुनियोजित सांस्कृतिक विलोपन का प्रयास था, जिसने भारत की आत्मा को आहत किया।

यह विडंबना ही है कि जिस देश की माटी सहिष्णुता, सहजीवन और बहुलता की बात करती है, उसी देश में सत्ता के मद में चूर एक शासक ने तलवार के बल पर आत्माओं को रौंदने का प्रयास किया। परंतु भारत की सांस्कृतिक जड़ें इतनी गहरी थीं कि यह आघात भी उसे समाप्त न कर सका — यह सनातन की अमरता का प्रमाण है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक हैं।

One thought on “सनातन परंपरा पर औरंगजेब सबसे बड़ा हमला : 9 अप्रैल 1669 का दिन

  • April 9, 2025 at 11:25
    Permalink

    सटीक आलेख भईया👍👍

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *