अरुणाचल प्रदेश का एंटी-कन्वर्ज़न कानून: धार्मिक और सांस्कृतिक विवादों का नया मोड़
अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के लंबे समय से निष्क्रिय एंटी-कन्वर्ज़न कानून को लागू करने का कदम एक बड़े विवाद का कारण बन गया है। यह कदम गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद उठाया गया है, और इसका विरोध न केवल राज्य में ईसाई समुदाय द्वारा किया जा रहा है, बल्कि यह उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी चिंता का विषय बन चुका है।
अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (APFRA):
यह कानून 1978 में उस समय के अरुणाचल प्रदेश संघ शासित क्षेत्र की विधानसभा द्वारा पारित किया गया था और राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। हालांकि, इसे ईसाई नेताओं के विरोध के कारण 46 वर्षों तक लागू नहीं किया गया था। यह कानून धार्मिक रूपांतरण को “बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी से” रोकने का उद्देश्य रखता है, और इसके तहत ऐसा कोई भी प्रयास करने पर दो साल की सजा या 10,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय का निर्देश:
सितंबर 2024 में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के इटानगर बेंच ने राज्य सरकार को इस कानून को लागू करने के लिए छह महीने का समय दिया था। सरकार को अदालत के आदेश का पालन करना अनिवार्य है, लेकिन राज्य के ईसाई नेताओं ने इसे निरस्त करने के लिए आंदोलन तेज कर दिया है। अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम (ACF) ने 6 मार्च को इस कानून के खिलाफ रैली का आयोजन करने का निर्णय लिया है।
कानून की आलोचना और समर्थन:
अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (APFRA) का उद्देश्य जबरन धर्म परिवर्तन और प्रलोभन देने वाले धर्म परिवर्तन को रोकना है। इसे लेकर राज्य के विभिन्न समुदायों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। जहां कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं, वहीं कई लोग इसे राज्य की परंपराओं और संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं।
सांस्कृतिक विविधता और धर्म परिवर्तन:
अरुणाचल प्रदेश में धर्म परिवर्तन एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। 1971 में जहां ईसाई समुदाय की संख्या केवल 0.79% थी, वहीं 2011 तक यह बढ़कर 30.26% हो गई थी। राज्य में ईसाई धर्म के साथ-साथ महायान और थेरवाड़ा बौद्ध धर्म, प्रकृति पूजा और पूर्वज पूजा जैसी विभिन्न धार्मिक परंपराएँ भी प्रचलित हैं।
कानून का समर्थन:
आदिवासी विश्वास और सांस्कृतिक समाज के महासचिव माया मुर्तेम का कहना है कि यह कानून किसी विशेष धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए है। उनका मानना है कि इस कानून की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में धर्म परिवर्तन का कोई रिकॉर्ड नहीं है और इससे जुड़े आंकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं।
निष्कर्ष:
अरुणाचल प्रदेश का एंटी-कन्वर्ज़न कानून राज्य में और पड़ोसी राज्यों में विभिन्न सामाजिक और धार्मिक विवादों को जन्म दे सकता है। इस कानून का उद्देश्य जहां धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक संरक्षण को सुनिश्चित करना है, वहीं इसके लागू होने के बाद उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएँ एक संवेदनशील मुद्दा बन सकती हैं।