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नाव आयोग ने डुप्लिकेट वोटर ID नंबर पर दिया स्पष्टीकरण,कहा- ‘EPIC नंबर फर्जी वोटर्स को नहीं दर्शाते’

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने डुप्लिकेट EPIC (इलेक्टर्स फोटो आइडेंटिटी कार्ड) नंबर को लेकर उठी चिंताओं पर स्पष्टता दी है। आयोग ने कहा है कि दो अलग-अलग राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में एक जैसे EPIC नंबर होने का मतलब यह नहीं है कि फर्जी या डुप्लिकेट वोटर मौजूद हैं।

यह स्पष्टीकरण सोशल मीडिया और मीडिया रिपोर्ट्स में इस बारे में उठाए गए सवालों के बाद आया। आयोग ने कहा कि भले ही कुछ मतदाताओं के EPIC नंबर समान हो सकते हैं, लेकिन उनके अन्य विवरण, जैसे- जनसांख्यिकीय जानकारी, विधानसभा क्षेत्र और मतदान केंद्र की जानकारी अलग होती है।

आयोग ने एक प्रेस नोट में कहा, “कुछ मतदाताओं के EPIC नंबर समान हो सकते हैं, लेकिन उनके अन्य विवरण जैसे जनसांख्यिकीय जानकारी, विधानसभा क्षेत्र और मतदान केंद्र अलग होते हैं। EPIC नंबर की परवाह किए बिना, कोई भी मतदाता केवल अपने निर्धारित मतदान केंद्र पर ही वोट डाल सकता है, जो उसके राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के निर्वाचनी सूची में पंजीकृत है।”

यह मुद्दा कैसे उत्पन्न हुआ?

यह मुद्दा तब उत्पन्न हुआ जब दो अलग-अलग राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा ERONET प्लेटफॉर्म पर संक्रमण से पहले एक जैसे अल्फ़ान्यूमेरिक सीरीज़ का उपयोग किया गया था।

हालांकि, किसी भी प्रकार की चिंता को दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है कि प्रत्येक पंजीकृत मतदाता को एक अद्वितीय EPIC नंबर आवंटित किया जाएगा। इसके लिए ERONET 2.0 प्लेटफॉर्म को अपडेट किया जाएगा।

मतदाताओं के लिए इसका क्या मतलब है?

भारतीय मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग का यह स्पष्टीकरण यह बताता है कि विभिन्न राज्यों या निर्वाचन क्षेत्रों में एक जैसे EPIC नंबर होने का मतलब यह नहीं है कि फर्जी या डुप्लिकेट वोटर मौजूद हैं।

इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर आरोप लगाया है कि उन्होंने चुनाव आयोग की मदद से “हरियाणा और गुजरात” से फर्जी मतदाताओं को बंगाल के चुनावी रोल में जोड़ा है। ममता बनर्जी ने कहा, “मेरे पास सबूत हैं कि बंगाल में एक एजेंसी बंगाल के वोटरों के नाम बदलकर हरियाणा, गुजरात और अन्य राज्यों के नाम जोड़ रही है, जबकि वोटर ID कार्ड नंबर वही रखा जा रहा है। यह सीधे दिल्ली से किया जा रहा है।”

निष्कर्ष

चुनाव आयोग का यह स्पष्टीकरण भारतीय मतदाताओं को यह भरोसा दिलाने का प्रयास है कि EPIC नंबरों की समानता केवल तकनीकी कारणों से है और इससे फर्जी वोटिंग का कोई खतरा नहीं है।

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