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तिल चौथ का महत्व, इतिहास, पौराणिक कथा और विधि

भारत की संस्कृति में पर्व-त्योहारों का विशेष स्थान है। तिल चौथ, जिसे संकष्टी चतुर्थी या तिलकुटा चौथ भी कहते हैं, इन्हीं पर्वों में से एक है। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और व्रतधारियों के लिए यह पर्व विशेष फलदायी माना जाता है। इस लेख में हम तिल चौथ के महत्व, इतिहास, पौराणिक कथा और पूजा विधि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

तिल चौथ मुख्य रूप से भगवान गणेश की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से अपने परिवार की समृद्धि, सुख-शांति और संकटों के निवारण के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत में तिल और गुड़ का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि तिल के उपयोग से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है।

तिल चौथ का उल्लेख कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यह पर्व प्राचीन काल से चला आ रहा है और इसका संबंध भगवान गणेश के जन्म और उनकी शक्तियों से जुड़ा है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है।

पौराणिक कथा

तिल चौथ के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव और माता पार्वती हिमालय पर्वत पर निवास कर रहे थे। एक दिन माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने बालक गणेश को द्वार पर पहरा देने के लिए खड़ा किया। भगवान शिव जब वहां पहुंचे तो गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इससे क्रोधित होकर शिवजी ने गणेश का मस्तक काट दिया।

जब माता पार्वती ने यह देखा, तो उन्होंने क्रोधित होकर सृष्टि को विनाश करने की ठानी। तब देवताओं ने माता पार्वती को शांत किया और भगवान शिव ने गणेश को पुनर्जीवित करने का उपाय किया। गणेशजी को हाथी का मस्तक लगाया गया और उन्हें प्रथम पूज्य देवता का वरदान दिया गया। इसी दिन से भगवान गणेश को संकटों का नाश करने वाला देवता माना गया। तिल चौथ का पर्व उनके सम्मान और कृपा प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।

तिल चौथ की पूजा विधि

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ करें।
  2. भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थान पर रखें।
  3. भगवान गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  4. पूजा में तिल और गुड़ से बने लड्डू, तिलकुट और अन्य प्रसाद का भोग लगाएं। दीप जलाएं और गणेश जी को फूल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. तिल चौथ की कथा का पाठ या श्रवण करें। इससे व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है।
  6. रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ें।

आधुनिक युग में भी तिल चौथ का महत्व बना हुआ है। इस दिन लोग पारंपरिक पूजा के साथ-साथ पर्यावरण और समाज सेवा की ओर भी ध्यान देते हैं। तिल और गुड़ के व्यंजन बनाने की परंपरा आज भी जीवित है, और यह पर्व परिवार और समाज में आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ाने का प्रतीक है।

तिल चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल आध्यात्मिक रूप से प्रेरित करता है, बल्कि जीवन में अनुशासन और सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम भी है। भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और जीवन के संकटों को दूर करने के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस पर्व को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।