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आजाद हिन्द सरकार स्थापना स्मरण दिवस 21 अक्टुबर

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिन्द फौज (Indian National Army – INA) का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक था। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था, और इसके संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। आजाद हिन्द फौज का निर्माण और उसका संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है।

आजाद हिन्द फौज की स्थापना का कारण:
सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि केवल अहिंसक आंदोलनों से भारत को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, इसलिए उन्होंने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया। ब्रिटिश सरकार ने बोस को बार-बार गिरफ्तार किया, लेकिन उन्होंने हर बार संघर्ष जारी रखा। जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा, तो बोस ने इस अवसर का उपयोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिलाने के लिए किया।

बोस ने महसूस किया कि ब्रिटेन युद्ध में कमजोर हो रहा है, और यह समय भारत के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने का सही अवसर हो सकता है। उन्होंने भारत से बाहर जाकर जापान और जर्मनी जैसे देशों से समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया। जापान ने बोस के नेतृत्व को मान्यता दी और उन्हें आजाद हिन्द फौज की कमान सौंपी, जिसमें मुख्य रूप से ब्रिटिश भारतीय सेना के युद्धबंदी शामिल थे।

बोस का मानना था कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए एक सशस्त्र बल की आवश्यकता थी, जो ब्रिटिश साम्राज्य से टकरा सके। इस विचार से प्रेरित होकर उन्होंने आजाद हिन्द फौज की स्थापना की, ताकि भारत की आजादी के लिए सीधे युद्ध लड़ा जा सके। इस प्रकार आजाद हिन्द फौज की स्थापना का प्रमुख कारण ब्रिटिश साम्राज्य से भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक सशक्त, सशस्त्र प्रतिरोध खड़ा करना था, जिसे अहिंसक आंदोलनों के अलावा अन्य तरीकों से हासिल किया जा सके।

आजाद हिन्द फौज की स्थापना:
आजाद हिन्द सेना के गठन में कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था। इसी बीच विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए इण्डियन इण्डिपेंडेंस लीग की स्थापना की गई, जिसका प्रथम सम्मेलन जून 1942 ई, को बैंकाक में हुआ।

सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, जो महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से अलग होकर सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में दबाव बढ़ने के बावजूद, बोस ने विदेशी धरती पर जाकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखा। 1942 में, उन्होंने जापान की सहायता से आजाद हिन्द फौज की स्थापना की, जिसमें पहले से ही ब्रिटिश भारतीय सेना के युद्धबंदी शामिल थे। इस फौज का मुख्य उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था।

सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व:
सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व करिश्माई था और उनके “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे नारों ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। बोस ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे स्वतंत्र भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहें। उनके नेतृत्व में, फौज ने यह नारा दिया, “दिल्ली चलो,” जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख नारा बन गया।

आजाद हिन्द फौज के सैन्य अभियानों का योगदान:
आजाद हिन्द फौज ने दक्षिण-पूर्व एशिया में कई महत्त्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया, विशेष रूप से बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के मोर्चे पर। 1944 में, आईएनए ने इम्फाल और कोहिमा पर ब्रिटिश सेना के खिलाफ हमले किए। हालांकि, इन अभियानों में आईएनए को सफलता नहीं मिली और बाद में जापान की हार के साथ फौज का भी पतन हो गया, लेकिन इसने भारतीय जनता में स्वतंत्रता के प्रति नए जोश का संचार किया। फौज के संघर्ष ने यह संदेश दिया कि भारत के लोग अपनी स्वतंत्रता के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे।

आजाद हिन्द फौज का प्रभाव और लाल किला ट्रायल:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, आजाद हिन्द फौज के प्रमुख अधिकारियों पर ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया, जिसे “लाल किला ट्रायल” कहा गया। इस मुकदमे ने भारतीयों के भीतर ब्रिटिश शासन के प्रति भारी असंतोष पैदा किया और स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी। जनता की भारी प्रतिक्रिया और राष्ट्रीय समर्थन के कारण, अंततः ब्रिटिश सरकार को आईएनए के सैनिकों को रिहा करना पड़ा।

अंतरिम सरकार की स्थापना:
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिन्द सरकार (Arzi Hukumat-e-Azad Hind) या भारतीय राष्ट्रीय अंतरिम सरकार की स्थापना की थी। यह सरकार नेताजी द्वारा सिंगापुर में घोषित की गई थी, और इसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।

यह सरकार एक अंतरिम सरकार थी, जिसका दावा था कि वह स्वतंत्र भारत की वैध सरकार है, और इसे जापान, जर्मनी, इटली सहित कई देशों ने मान्यता दी थी। सुभाष चंद्र बोस को इस सरकार का प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेशी मामलों का मंत्री घोषित किया गया।

इस सरकार में सुभाष चंद्र बोस – प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेश मंत्री, कैप्टन लक्ष्मी सहगल – महिला मामलों की मंत्री, एस. ए. अय्यर – प्रचार और प्रसार मंत्री, रास बिहारी बोस – संगठनात्मक मामलों के मंत्री, शहनवाज खान – युद्ध विभाग में अधिकारी, हबीब-उर-रहमान – युद्ध मंत्री के रूप में सहयोगी, मेजर जनरल ए. सी. चटर्जी – वित्त मंत्री, जनरल जी. एस. ढिल्लों – मुख्य सैन्य कमांडर प्रमुख पदाधिकारी थे।

इस सरकार का समर्थन आजाद हिन्द फौज (INA) को मिला, और इसके बैनर तले नेताजी ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए संघर्ष जारी रखा। इस सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के लिए ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और भारतीय तिरंगा को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस अंतरिम सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ लाया और जनता के मन में यह भावना भरी कि भारत स्वतंत्रता के करीब है।

आजाद हिन्द फौज ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भले ही यह सैन्य रूप से सफल नहीं हो सकी। इसका सबसे बड़ा योगदान यह था कि इसने भारतीय जनता और सेना के भीतर राष्ट्रीय चेतना को गहरा किया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक वास्तविकता हो सकती है। सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज की वीरता और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में सदा के लिए अमर रहेंगे।

One thought on “आजाद हिन्द सरकार स्थापना स्मरण दिवस 21 अक्टुबर

  • October 21, 2024 at 16:06
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    सटीक आलेख भईया बधाई
    💐💐💐💐💐💐💐

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