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छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का इतिहास और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ पत्रिका

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का इतिहास 124 साल पुराना है। उस युग में आज की तरह न तो कम्प्यूटरों और अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित प्रिंटिंग प्रेस थे और न ही इंटरनेट और मोबाइल फोन जैसे तीव्र गति के संचार उपकरण। सुविधाविहीन उस युग में छत्तीसगढ़ जैसे इलाके में और इस इलाके के पेंड्रा जैसे आदिवासी बहुल पिछड़े अंचल से हिन्दी मासिक पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी।

जनवरी 1900 में प्रारंभ यह छत्तीसगढ़ की पहली मासिक पत्रिका थी, जिसके माध्यम से राज्य में पत्रकारिता की बुनियाद रखी गयी। पंडित वामन बलीराम लाखे जी इस पत्रिका के प्रकाशक थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित माधवराव सप्रे और उनके सहयोगी रामराव चिंचोलकर ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के सम्पादक थे।

यह मासिक पत्रिका रायपुर के एक प्रिंटिंग प्रेस में छपती थी। सम्पादन का मुख्य दायित्व सप्रे जी निभाते थे। स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का विकास इस पत्रिका के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य था। हालांकि आर्थिक समस्याओं के कारण इसका प्रकाशन सिर्फ तीन साल तक हो पाया लेकिन उस जमाने में छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के इतिहास का पहला अध्याय “छत्तीसगढ़ मित्र ‘ के माध्यम से लिखा गया। इसमें प्रकाशक के रूप में वामन बलीराम लाखे जी की भी बड़ी भूमिका थी।

लाखे जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन की बुनियाद रखने वाले पहले जननेता भी। आज उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उनका जन्म रायपुर में 17 सितम्बर 1872 को हुआ था। निधन 21 अगस्त 1948 को हुआ । उन्होंने इस अंचल में पत्रकारिता के साथ-साथ सहकारिता आंदोलन की भी बुनियाद रखी।

पूरे देश में आज़ादी के आंदोलन की तरंगें उमड़ रही थीं। लाखे जी ने उन दिनों यहाँ के किसानों को संगठित कर सहकारिता आंदोलन का भी शंखनाद किया। राजधानी रायपुर का 107 साल पुराना जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और बलौदाबाजार स्थित 75 वर्ष पुराना सहकारी किसान राइस मिल लाखे जी की यादगार कर्मठता और संगठन क्षमता की निशानियां हैं।

उन्होंने वर्ष 1913 में रायपुर में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और वर्ष 1945 में बलौदाबाजार में सहकारी किसान राइस मिल की स्थापना की। राजधानी रायपुर के एक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया है, जो विगत कई दशकों से सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आव्हान पर वह 1920 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। वर्ष 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें सिमगा में गिरफ्तार किया गया और चार महीने की कैद की सजा हुई। तब वह 70 साल के थे। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था।

इसके पहले आरंग की एक आमसभा में लाखेजी ने अंग्रेजों की हुकूमत को ‘गुण्डों का शासन’ बताते हुए कहा कि अब इस विदेशी सरकार को ज़्यादा समय तक हम नहीं चलने देंगे। उन्होंने आमसभा में जनता से इसके लिए आज़ादी के आन्दोलन में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आव्हान किया।

इस पर 25 जून 1930 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। लाखेजी को एक साल की सजा सुनाई गयी और 300 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया गया। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर ने अपने ग्रन्थ ‘छत्तीसगढ़ गौरव गाथा’ में लिखा है –

“सन 1922 में रायपुर में जिला राजनीतिक परिषद का आयोजन किया गया था। लाखेजी इस परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। उसी वर्ष लाखेजी रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने कांग्रेस संगठन को रायपुर जिले में सुदृढ करने के लिए कठोर परिश्रम किया।

सन 1924 में लाखेजी ने कांग्रेस संगठन के भीतर छत्तीसगढ़ को पृथक प्रदेश का दर्जा देने की मांग की, जो प्रांतीय कांग्रेस द्वारा अमान्य कर दी गयी। रायपुर जिले में राष्ट्रीय जागरण के पुरोधा के रूप में लाखेजी का स्थान सर्वोपरि है। वे इस जिले में सहकारिता आंदोलन के पितामह थे। वे त्याग, साहस और कर्मठता के जीवंत प्रतीक थे।” यह भी उल्लेखनीय है कि लाखे जी दो बार रायपुर नगर पालिका के निर्वाचित अध्यक्ष रह चुके थे। आज पुण्य तिथि पर महान पुण्यात्मा को एक बार फिर शत -शत नमन।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।

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