प्रसिद्ध तांत्रिक केंद्र असम का कामाख्या पीठ और अम्बुवाची मेला
असम में स्थित कामाख्या पीठ भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। इसे तांत्रिक पीठ के रूप में जाना जाता है, जहाँ तंत्र साधना और अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। कामाख्या देवी को शक्तिशाली और रहस्यमयी देवी माना जाता है, और यहाँ के अनुष्ठानों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यह पीठ विशेष रूप से तांत्रिक अनुष्ठानों और सिद्धियों के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ कई रहस्यमयी और गूढ़ साधनाएँ की जाती हैं। तंत्र साधना का मुख्य उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और अदृश्य शक्तियों को प्राप्त करना है।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर के निकट नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर माँ कामाख्या देवी को समर्पित है, जो शक्ति की देवी और मातृत्व की प्रतीक मानी जाती हैं। यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है, जो हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। मान्यता है कि यहाँ देवी सती की योनि गिरी थी, जब भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे। इस घटना को ‘सती का विघटन’ के रूप में जाना जाता है और यह स्थान तब से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया है।
कामाख्या मंदिर का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच हुआ माना जाता है, हालांकि इसका पुनर्निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया। इस मंदिर की वास्तुकला एक अनूठी शैली में बनाई गई है, जो असम की स्थानीय निर्माण शैली को दर्शाती है। मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक योनि के आकार का पत्थर है, जिसे पवित्र जल से अभिषेक किया जाता है।
कामाख्या का प्रसिद्ध अम्बुवाची मेला
अम्बुवाची मेला भारत के असम राज्य में कामाख्या मंदिर में आयोजित एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह मेला हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु और साधक भाग लेते हैं। यह मेला कामाख्या देवी के मासिक धर्म चक्र का प्रतीकात्मक उत्सव है, जो पृथ्वी की उर्वरता का प्रतीक है।
अम्बुवाची मेला असम का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण धार्मिक मेला है, जो हर साल जून महीने में आयोजित होता है। इस मेले का आयोजन देवी कामाख्या के मासिक धर्म चक्र की शुरुआत के समय किया जाता है। यह मेला तीन दिनों तक चलता है, जिसमें मंदिर के द्वार बंद रहते हैं और चौथे दिन मंदिर के द्वार खुलते हैं। इस दौरान देवी को विश्राम दिया जाता है और मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
मेले के दौरान, मंदिर के आस-पास एक विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु, तांत्रिक, साधु-संत और पर्यटक भाग लेते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र होता है, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों, हस्तशिल्प बाजार और स्थानीय भोजन के स्टालों का भी आयोजन किया जाता है। यह मेला असम की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जीवंत करता है।
अम्बुवाची मेला क्यों भरता है?
अम्बुवाची मेला, असम के कामाख्या मंदिर में आयोजित होने वाला एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। इसके आयोजन के पीछे मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
उर्वरता और पुनर्जन्म का प्रतीक: अम्बुवाची मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म चक्र का प्रतीकात्मक उत्सव है। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस समय देवी पृथ्वी की उर्वरता और पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह मेला देवी की उर्वर शक्ति को सम्मानित करने और उसकी पूजा करने के लिए मनाया जाता है।
पृथ्वी माता का सम्मान: हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि इस दौरान पृथ्वी माता भी अपने मासिक धर्म चक्र में होती हैं। इस समय को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और फसलों की पैदावार के लिए लाभदायक माना जाता है। इस समय किसी भी शुभ कार्य को करने से बचा जाता है और पृथ्वी को विश्राम दिया जाता है।
तांत्रिक साधना और अनुष्ठान: यह मेला तांत्रिक साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है। अम्बुवाची के दौरान विशेष तांत्रिक अनुष्ठानों और साधनाओं का आयोजन होता है। तांत्रिक साधक यहाँ आकर अपनी सिद्धियों को सुदृढ़ करने का प्रयास करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान: मेला असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन करता है। यह विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने और उनके बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने का माध्यम है।
अम्बुवाची मेला कब से भरना शुरू हुआ?
अम्बुवाची मेला का सटीक प्रारंभिक समय अज्ञात है, लेकिन इसे प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
प्राचीनता: कामाख्या मंदिर और इस स्थान की पूजा की परंपरा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच हुआ था, हालांकि इसका पुनर्निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। यह संकेत देता है कि अम्बुवाची मेला भी एक प्राचीन परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है।
मध्यकालीन उल्लेख: मध्यकालीन काल में भी इस मेले का आयोजन होता रहा है, जो तत्कालीन शासकों और स्थानीय जनमानस के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक घटना थी।
आधुनिक काल: वर्तमान समय में अम्बुवाची मेला असम का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव बन चुका है। इसमें हर साल हजारों श्रद्धालु, तांत्रिक और पर्यटक भाग लेते हैं।
अम्बुवाची मेला का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
अम्बुवाची मेला का मुख्य उद्देश्य देवी कामाख्या की उर्वरता शक्ति का सम्मान करना है। यह मेला देवी की मासिक धर्म चक्र की शुरुआत का प्रतीक है, जो उर्वरता और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म में, यह समय बहुत पवित्र माना जाता है और इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने से बचा जाता है। यह मान्यता है कि इस दौरान पृथ्वी माता भी अपने मासिक धर्म चक्र में होती हैं, जिससे वह उर्वर बनती हैं और फसलों की पैदावार अच्छी होती है।
मेले के दौरान, श्रद्धालु विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और देवी को प्रसाद चढ़ाते हैं। विशेष तांत्रिक अनुष्ठानों का आयोजन भी किया जाता है, जो इस मेले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। तांत्रिक साधना और अनुष्ठान इस मेले को अद्वितीय बनाते हैं और इसे देखने के लिए दूर-दूर से साधु-संत और तांत्रिक यहाँ आते हैं।
अम्बुवाची मेले का आयोजन और इसमें सम्मिलित होने वाले लोग
अम्बुवाची मेला असम सरकार और कामाख्या मंदिर प्रबंधन द्वारा आयोजित किया जाता है। मेले के दौरान मंदिर और इसके आस-पास सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए जाते हैं। स्थानीय प्रशासन, पुलिस और स्वयंसेवक मेले को सुचारू रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस मेले में भाग लेने वाले लोग विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से आते हैं। मुख्यतः, इस मेले में हिन्दू धर्म के अनुयायी, विशेषकर शक्ति उपासक, तांत्रिक, साधु-संत, और श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। इसके अलावा, पर्यटक और शोधकर्ता भी इस मेले में भाग लेने और इसे देखने के लिए आते हैं। मेले के दौरान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें संगीत, नृत्य और नाटक शामिल होते हैं।
अम्बुवाची मेले की सामाजिक और आर्थिक भूमिका
अम्बुवाची मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और आर्थिक महत्व भी है। इस मेले के दौरान स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि बड़ी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ आते हैं। स्थानीय हस्तशिल्प, वस्त्र, भोजन और अन्य उत्पादों की बिक्री से स्थानीय अर्थव्यवस्था को फायदा होता है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, यह मेला विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने और उनके बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने का काम करता है। इस मेले के दौरान लोग एक दूसरे के रीति-रिवाजों और परंपराओं को समझते हैं और साझा करते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और सामंजस्य बढ़ता है।
कामाख्या पीठ में तंत्र क्रियाएं मुख्य रूप से अंबुवाची मेला के दौरान होती हैं। यह मेला हर वर्ष जून के महीने में मनाया जाता है और यह माना जाता है कि इस समय देवी कामाख्या मासिक धर्म में होती हैं। इस दौरान मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है और चौथे दिन पुनः खुलता है। यह समय तांत्रिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और वे यहाँ विशेष अनुष्ठानों और साधनाओं का आयोजन करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तंत्र क्रियाओं में महाकाली पूजा, दुर्गा पूजा, और अन्य देवी अनुष्ठान शामिल हैं। इन अनुष्ठानों में विशेष मंत्र, यंत्र और तांत्रिक साधनाओं का उपयोग किया जाता है। तांत्रिक क्रियाओं के लिए विशेष दिन और रात्रि के समय का चयन किया जाता है, विशेषकर अमावस्या और पूर्णिमा की रातें।
तांत्रिक साधक और उनका आगमन
कामाख्या पीठ में तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक विभिन्न स्थानों से आते हैं। इनमें से अधिकांश तांत्रिक भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, और नेपाल से। यह साधक यहाँ आकर अपनी तांत्रिक शक्तियों को सुदृढ़ करने और विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। तांत्रिक साधकों की एक विशेष वेशभूषा होती है, जिसमें लाल और काले वस्त्र, रुद्राक्ष की माला, और विशेष यंत्र शामिल होते हैं। ये साधक कठोर तपस्या और साधना करते हैं, और कई बार इनमें से कुछ साधक समाज से दूर जंगलों और एकांत स्थानों में रहकर अपनी साधना पूरी करते हैं।
समाज पर तांत्रिक क्रियाओं का प्रभाव
कामाख्या पीठ की तांत्रिक क्रियाओं का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यहाँ की तंत्र साधनाएँ और अनुष्ठान समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव: कामाख्या पीठ में होने वाले अनुष्ठान और मेलों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु तांत्रिक अनुष्ठानों को देखने और उनका हिस्सा बनने के लिए उत्सुक रहते हैं। इससे समाज में धार्मिक आस्था और तांत्रिक सिद्धियों के प्रति विश्वास बढ़ता है।
तांत्रिक क्रियाओं का समाज के विभिन्न वर्गों पर अलग-अलग प्रभाव होता है। कुछ लोग तंत्र साधनाओं को रहस्यमयी और शक्तिशाली मानते हैं, जबकि कुछ इसे अंधविश्वास और अज्ञानता का प्रतीक मानते हैं। इससे समाज में विविध विचारधाराओं का विकास होता है।
गुरु गोरखनाथ और मछेन्द्रनाथ का संबंध
गुरु गोरखनाथ और उनके गुरु मछेन्द्रनाथ का संबंध असम से जुड़ा हुआ है। मछेन्द्रनाथ, जिन्हें मत्स्येंद्रनाथ के नाम से भी जाना जाता है, नाथ संप्रदाय के प्रमुख संस्थापक माने जाते हैं। नाथ संप्रदाय तंत्र साधना और योग का प्रमुख केंद्र है और इसका प्रभाव असम के कामाख्या पीठ पर भी देखा जा सकता है। मछेन्द्रनाथ ने तंत्र साधना और योग की उच्चतम सिद्धियों को प्राप्त किया और उन्होंने गुरु गोरखनाथ को यह ज्ञान प्रदान किया। कामाख्या पीठ में भी नाथ संप्रदाय के तांत्रिकों का विशेष महत्व है और यहाँ की तंत्र साधनाओं में नाथ संप्रदाय की विधियों का उपयोग होता है।
कामाख्या पीठ असम का एक महत्वपूर्ण तांत्रिक केंद्र है, जहाँ तंत्र साधना और अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। यहाँ की तंत्र क्रियाएं विशेष समय और परिस्थितियों में की जाती हैं और तांत्रिक साधक विभिन्न स्थानों से आकर यहाँ अपनी साधनाओं को पूर्ण करते हैं। इन तंत्र क्रियाओं का समाज पर धार्मिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक प्रभाव पड़ता है।
अम्बुवाची मेला असम का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो देवी कामाख्या की उर्वरता शक्ति का सम्मान करता है। यह मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठानों और तांत्रिक साधना का केंद्र है, बल्कि असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। इस मेले के दौरान असम की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन होता है, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि दूर-दूर से आए पर्यटकों और श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करता है। अम्बुवाची मेला असम की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक है और इसे भविष्य में भी इसी उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहेगा। अंबुबाची मेला 2024 22 जून से 26 जून तक आयोजित किया जाएगा।