\

परमाणु ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होता देश

प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ पत्रकार

देश में एक अर्से से अटकी परमाणु बिजली परियोजनाओं में विद्युत का उत्पादन शुरू हो रहा है, वहीं निजी निवेश से परमाणु ऊर्जा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सूरत जिले के तापी काकरापार में 22,500 करोड़ रुपए की लागत से बने 700-700 मेगावाट बिजली उत्पादन के दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र को राष्ट्र को समर्पित कर दिए। उन्नत सुरक्षा सुविधाओं से युक्त हैं। ये संयंत्र प्रतिवर्ष लगभग 10.4 अरब यूनिट स्वच्छ बिजली का उत्पादन करेंगे। जो गुजरात में बिजली की आपूर्ति के साथ अन्य प्रांतों को भी बिजली देंगे। ये संयंत्र शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ने की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होंगे।

दूसरी तरफ भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों से 26 अरब डॉलर का निवेश आमंत्रित किया है। यह पहल ऐसे स्रोतों से बिजली बनाने की मात्रा बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो वायुमंडल प्रदूषण और तापमान बढ़ाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते हैं। यह पहली बार है जब परमाणु है ऊर्जा क्षेत्र में सरकार निजी कंपनियों से पूंजी निवेश की मांग कर रही है। फिलहाल भारत में परमाणु ऊर्जा कुल बिजली उत्पादन की तुलना में महज दो प्रतिशत भी नहीं है। यदि यह निवेश बढ़ता है तो 2030 तक अपनी स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 50 प्रतिशत गैर जीवाश्म ईंधन के उपयोग से प्राप्त लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिलेगी। वर्तमान में यह 42 प्रतिशत है।

सरकार इस सिलसिले में रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अडाणी पावर और वेदांत लिमिटेड सहित पांच निजी कंपनियों से बात कर रही है। प्रत्येक कंपनी को 5.30 अरब डॉलर का निवेश करने को कहा गया है। इस सिलसिले में परमाणु ऊर्जा विभाग और न्यूक्लियर पावर कॉपीरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) ने इस निवेश के बाबत बीते वर्ष निजी कंपनियों के साथ कई दौर की बातचीत की हुई है। सरकार को इस निवेश से 2040 तक 11000 मेगावाट नई परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता की उम्मीद है। फिलहाल एनपीसीआईएल के पास 7500 मेगावाट की क्षमता वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं। इसमें और बढ़ोत्तरी के लिए 1300 मेगा वाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जो निवेश से संभव हो सकेगा।

निजी कंपनियों के साथ परमाणु ऊर्जा विभाग की शर्तों में परमाणु संयंत्रों के उपकरणों के साथ भूमि और पानी के प्रबंधन में होने वाला खर्च कंपनियां उठाएंगी। हालांकि संयंत्र के निर्माण, संचालन और उसमें प्रयुक्त होने वाले ईंधन का अधिकार एनपीसीआईएल के पास रहेगा। निजी कंपनी इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली बेचकर राजस्व प्राप्त करने की अधिकारी होंगी और एनपीसीआईएल परियोजना के संचालन का शुल्क वसूल करेगा।

अतएव कहा जा सकता है कि ये शर्ते व्यावहारिक होने के साथ सरकार और कंपनी दोनों के लिए ही लाभदायी साबित होंगी। साथ ही बड़ी मात्रा में नए कुशल और अकुशल रोजगार का सृजन होगा। परमाणु ऊर्जा परियोजना के विकास का यह हाईब्रिड नमूना परमाणु क्षमता स्थापित करने में भविष्य में अत्यंत मददगार साबित होगा। इस योजना के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 में किसी भी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

हमारे यहां दो तरह के परमाणु रिएक्टर हैं। एक गर्म पानी का जिसे बॉयलिंग वॉटर रिएक्टर और दूसरे को प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर कहा जाता है। इनमें प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग होता है। यूरेनियम के अणुओं के विखंडन के लिए पहले रिएक्टर में अति उच्च दबाव और तापमान में पानी को खोलाया जाता है, जिससे अणु विखंडित होकर ऊर्जा में परिवर्तित हों। यह प्रक्रिया लगातार टरबाइन में चलती रहती हैं। इससे टरबाइन ब्लेड में चलाने की प्रक्रिया के साथ ऊर्जा उत्सर्जित होने लगती है। दूसरे रिएक्टर में ऊर्जा पानी के भारी दबाव से बनती है और इसमें पानी की मात्रा की बहुत ज्यादा जरूरत होती है । इसीलिए ये संयंत्र समुद्री तटों पर लगाए जाते हैं।

गुजरात के तापी काकरापार परमाणु संयंत्र में बिजली पानी के उच्च दबाव से बनेगी। हालांकि अभी तक परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के लक्ष्य को सरकार हासिल करने में असफल रही है। इसका एक प्रमुख कारण परमाणु ईंधन आपूर्ति की कमी रही है । 2010 में इस हेतु मनमोहन सिंह सरकार ने रीपोसेस्ड परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए अमेरिका से करार किया हुआ है। साथ ही एक बड़ी समस्या परमाणु ऊर्जा उत्पादन के दौरान होने वाली किसी दुर्घटना के लिए कड़े मुआवजा कानूनों का होना है। यही वजह है कि परमाणु संयंत्रों से ऊर्जा उत्पादन के काम वर्षों से अधर में लटके हुए थे, जो अब काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली उत्पादन के साथ, लगता है गति पकड़ेंगे। अब आगे जैतापुर और राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के जल्दी शुरु होने की उम्मीद बढ़ गई है। अमेरिकी कंपनियों के सहयोग से बन रहीं ये परियोजनाएं लगभग पूरी हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा आलेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं। 

2 thoughts on “परमाणु ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होता देश

  • June 8, 2024 at 10:20
    Permalink

    अच्छा लेख लिखा है।
    साथ ही काफ़ी बातें और भी देखनी पड़ती है।
    जैसे कि परमाणु ईंधन हाफ़लाईफ तक ही काम में आता है। बाद में इसके लिए विशेष प्रयोजन करना पड़ता है। कनाडा मे दूर दराज के बर्फीले एरिये में या समुद्र में इसे डंप करते है। भारत भी उसका पूर्ण इंतज़ाम करता है।
    भाभा एटोमिक प्लांट तो उस समय की हकुमत के कारण बंबई में बन गया मगर कलकत्ता के डाक्टर साहा को नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्हें कोई महत्व नहीं दिया। उधर कोई परमाणु केंद्र अभी तक नहीं बना।
    बस ऐसे ही हज़ारों बातें है।
    परमाणु केंद्र की लोकेशन भी पोलिटिकल होती है।

  • June 8, 2024 at 20:33
    Permalink

    बहुत अच्छी बात

Comments are closed.