प्रथम किसानी तिहार अक्ति पूजा के बाद खेती बाड़ी का काम शुरू
अक्षय तृतीया पर गांवों में किसानों ने नीम पेड़ के नीचे विराजित ठाकुर देवता में दोने में धान, हल्दी, तेल आदि ले जाकर चढ़ाया और बचे हुए धान को खेतों में ले जाकर बो दिया है। चूंकि आज के ही दिन खेती बाड़ी का काम शुरू हो जाता है। इसलिए गांवों में आज का दिन विशेष होता है। खेत की साफ सफाई की जाती है। इस दिन विशेष रूप से ठाकुर देव की पूजा पाठ की जाती है। आज के दिन सभी काम गांव में ठाकुर देव की पूजा के बाद ही किया जाता है। यहां तक की पीने के लिए पानी भी ठाकुर देव की पूजा के बाद ही भरा जाता है।
ग्राम डिवारी निवासी सुरेश हठीले ने बताया कि बरसों से चली आ रही परम्परा अनुसार ठाकुर देव में परसा पलाश के पत्तों से बने दोना में धान भरकर उसे अर्पित किया जाता है। यह ठाकुर देव को भोग है। सभी घरों से भोग के लिए ठाकुर देव में अर्पित दोनों की धान को नई टोकरी में मिलाते हैं। पश्चात कृषि कार्य से संबंधित जैसे बुआई, निंदाई, गुड़ाई, मिंजाई आदि को सांकेतिक रूप में ठाकुर देव के समक्ष किया जाता है। इसी भोग लगे धान को किसान बीज के रूप में खेतों में बुआई करते हैं।
ठाकुर देवता को गांव में सहाड़ा देव भी कहते हैं। यह देवता किसी भी गांव का सबसे बड़ा देव होता है। माना जाता है कि गांव में हर काम से पहले साहड़ा देव की पूजा की जाती है। आवाहन पूजन के दौरान गांव के युवा खेतों में नागर का प्रतिरुप चलाते हुए, सामूहिक रूप से सहाड़ा देवता की पूजा कर अच्छे फसल की कामना की।
किसानों का प्रमुख त्यौहार अक्ती आज है। किसान ठाकुरदेव को दोना चढ़ाकर धान बोने की शुरुआत कर चुके हैं। इस तरह आज से किसानों और किसानी का काम शुरू हो गया है। ग्रामीण अंचलों में आज के दिन ग्राम के प्रमुख ठाकुरदेव की पूजा नहीं की जाती, तब तक सारा काम बंद रखा जाता है। पहट में बैगा द्वारा सभी देवी देवाताओं में पूजा-अर्चना की जाती पश्चात गांव के किसान ठाकुरदेव में दोना अर्पण करने पहुंचते हैं ।
अक्ती के दिन से ही नए दोना के रूप में परसा और अन्य पत्तों से तैयार कर ठाकुरदेव को धान अर्पण किया जाता है। ठाकुरदेव के समक्ष किसानों द्वारा लाए गए धान को रखकर बोनी से लेकर मिसाई तक की सभी प्रक्रियां बैगा द्वारा की जाती है। पीपल के पते से बैल नागर बनाकर पूजा अर्चना करने के बाद किसानों को बोनी की शुरूआत करने धान बीज दिया जाता है जिसे किसान अपने खेतों में जाकर बोनी की शुरूआत करते हैं। इसे छत्तीसगढ़ी भाषा में मुठी लेना कहते हैं। किसान खेतों में पहुंचकर धरती माता के पूजा अर्चना कर बोनी की शुरूआत कर खुशहाली की कामना करते हैं। यह परंपरा वर्षों से चला रहा है।
कहा जाता है कि पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की पहुंच नहीं थी और खरीफ सीजन को ही प्रमुख मानकर खेती की तैयारी शुरू करते थे। अक्ती के बाद से ही खेतों में गोबर खाद डालने का काम शुरू हो जाता था। इसलिए अक्ती पर्व का किसानी के लिए ग्रामीण अंचलों में आज भी खासा महत्व है और परंपरा का निर्वह किसान करते आ रहे हैं। बोनी की शुरूआत के लिए किसान बाजार से नए झेंझरी खरीदते हैं।