छत्तीसगढ़ के डमरू उत्खनन पर केंद्रित शोधपत्र नेपल्स विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया जाएगा
यूरोपीय यूनियन ऑफ साउथ एशियन आर्कियोलॉजी एवम आर्ट के द्विवार्षिक अंतराष्ट्रीय अधिवेशन , जो कि दिनांक 2 जुलाई से 6 जुलाई 2018 तक “ला ओरियंटाले यूनिवर्सिटी नेपल्स” में आयोजित है, में डमरू उत्खनन पर केंद्रित शोधपत्र प्रस्तुतिकरण हेतु चयनित किया गया है।
उक्त शोधपत्र का प्रस्तुतिकरण डमरू उत्खनन के निदेशक एव पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. शिवाकांत बाजपेयी करेंगें। उक्त अंतराष्ट्रीय अधिवेशन मे डमरू उत्खनन में प्राप्त अभिलिखित मृण्मुद्रांक पर केंद्रित”डिस्कवरी ऑफ सील्स एंड सीलिंग्स फ्रॉम डमरू एक्सकैवेशन -ए फ्रेश लाइट आन अर्ली हिस्ट्री ऑफ साउथ कोसल (छत्तीसगढ़ )इंडिया”पर एक शोध पत्र का प्रस्तुतिकरण विभीन्न यूरोपीय देशों के अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वानों के समक्ष करेंगे।
उल्लेखनीय है कि डमरू नामक पुरास्थल बलोदाबाजार जिला मुख्यालय से 13 किमी दूरी पर शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है। संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्त्व छत्तीसगढ़ द्वारा उक्त पुरास्थल का उत्खनन वर्ष 2012- 13 तथा 2014-15 में डॉ बाजपेयी के निर्देशन में कराया गया था। उक्त उत्खनन के दौरान मिलने वाली महत्वपूर्ण पुरानिधियों के चलते डमरू लगातार पुरातत्त्व जगत में चर्चा में बना रहा। इसी सन्दर्भ में वर्ष 2016 में भी कार्डिफ विश्वविद्यालय वेल्स में भी डमरू उत्खनन पर शोधपत्र प्रस्तुत किया था।
यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि डमरू छत्तीसगढ़ का एकमात्र पुरास्थल है जहां से पहली बार एन. बी.पी.पात्र खंड प्राप्त हए हैं, जिससे छत्तीसगढ़ के इतिहास एवम पुरातत्त्व की प्राचीनता 6 ठी सदी ई. पूर्व से सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त यहां प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखे दर्जनों अभिलेख प्राप्त हए हैं जिन अनेक नए राजाओं के नाम ज्ञात हुए हैं जो कि पहली सदी से तीसरी सदी के मध्य अनुमानित हैं।
डॉ बाजपेयी के अनुसार डमरू उतखनन से यह प्रमाणित होता है कि तकनीकी दृष्टि से छत्तीसगढ़ सर्वाधिक उन्नत था जहां पर 1500 वर्ष पहले ही घरों में मिट्टी की पक्की टाइल्स लगाई जाती थी तथा जूस निकालने के किये डमरूवासियों ने जूसर भी इज़ाद कर लिया था जो कि किसी भी अन्य पुरास्थल से नही मिला है। अतः कहा जा सकता है कि पहली बार जूसर टेक्नोलॉजी का ज्ञान छत्तीसगढ़ ने ही सबको दिया था।
देश एवम विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों में में डमरू पर प्रस्तुत किये गए शोधपत्रों एवम परिचर्चाओं में डमरू न केवल छतीसगढ़ बल्कि देश के महत्वपूर्ण प्रारम्भिक पुरास्थलों में सम्मिलित किया जाता है। यह सिर्फ़ छत्तीसगढ़ के लिए ही नहीं वरन पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।
बहुत बढ़िया जानकारी, धन्यवाद
बधाई जी