लिथुआनिया के निवासी क्यों मानते हैं भारत को अपने पूर्वजों की भूमि?
युरोप के एक देश लिथुआनिया से भारत के गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। लिथुआनिया के निवासी मानते हैं कि भारत उनके पूर्वजों की भूमि है क्योंकि उनकी संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति में काफ़ी समानताएँ हैं।
उपरोक्त जानकारी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से आज उनके निवास में लिथुआनिया की गुरुमाता श्रीमती इनिजा ट्रिंकुनेइने ने सौजन्य मुलाकात के दौरान दी। डॉ सिंह ने श्रीमती इनिजा का आत्मीय स्वागत किया। श्रीमती इनिजा वहां की रोमवा जनजाति की गुरुमाता हैं, वे छत्तीसगढ़ सहित भारत की संस्कृति, यहाँ की आदिवासी संस्कृति को देखने समझने हजारों मील दूर यूरोपीय महाद्वीप के लिथुआनिया देश से भारत आयी हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री को भारत और लिथुआनिया के बीच हजारों वर्ष पुराने सांस्कृतिक संबंधों की जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने उन्हें छत्तीसगढ़ की समृद्ध और गौरवशाली आदिवासी संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। श्रीमती इनिजा ने डॉ. सिंह को बताया कि भारत और लिथुयानिया के बीच हजारों वर्ष पुराने सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
लिथुआनिया की संस्कृति और भारत की वैदिक संस्कृति में काफी समानता है। वहां की भाषा देवभाषा संस्कृति के काफी निकट है। भारत की भांति वहां सूर्य, अग्नि, इंद्र, पृथ्वी, नागदेवता की पूजा करते हैं। विवाह में अग्नि के फेरे लगाये जाते हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री को लिथुआनिया आने का आमंत्रण देते हुए कहा कि वे लोग भारत को अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भारत और लिथुआनिया के हजारों वर्ष पुराने सांस्कृतिक सम्बन्ध और अधिक मजबूत होंगे। श्रीमती इनिजा ने नया रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन का भ्रमण भी किया। मुख्यमंत्री ने उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया।