futuredमनकही

अदृश्य राहों के अनदेखे संयोग : मनकही

रेखा पाण्डेय (लिपि)

प्रचलित धारणा है कि संसार में सब कुछ पहले से ही निश्चित है। ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी का लेखा-जोखा लिख रखा है। जो होना होता है, वह होकर ही रहता है। यह बात जीवन भर बार-बार सुनने को मिलती है। किंतु जब हमारे जीवन में कोई विपरीत या गलत घटना घटती है, तो मन में यह विचार आता है कि यदि सब कुछ ईश्वर की इच्छा से होता है, तो फिर दोषी कौन होता है?

उत्तर भी मन में ही आता है, ईश्वर सीधे-सीधे मार्ग नहीं दिखाते; वे केवल विकल्प देते हैं। मानो कह रहे हों – “मैंने तुम्हें सभी अस्त्र-शस्त्र यानी हाथ, पैर, आँख, नाक, कान और समस्त इंद्रियों से संपन्न कर पृथ्वी पर भेजा है। साथ ही निर्णय की क्षमता और विवेक रूपी बुद्धि भी दी है। अब तुम्हें इनका उपयोग करके अपने जीवन के मार्ग चुनने हैं और समस्याओं का समाधान स्वयं करना है।” ईश्वर तो केवल चौराहे दिखाते हैं, रास्ता चुनने का कार्य मनुष्य का है। वह कभी अपने ऊपर दोष नहीं लेते।

यदि हम मनुष्य जीवन की बात करें, तो प्रत्येक घटना के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। ईश्वरीय सत्ता या उनके अनुग्रह का अनुभव हमें हर मोड़ पर होता है। मुझे स्वयं अपने जीवन में कई बार उस अदृश्य शक्ति की अनुभूति हुई है।

मैं एक शिक्षिका हूँ और गाँव के एक विद्यालय में पदस्थ हूँ। प्रतिदिन आने-जाने का क्रम बना हुआ है। एक बार की बात है, जब प्री-बोर्ड परीक्षा चल रही थी। उस दिन मेरे विषय की परीक्षा थी, अतः मुझे समय से पहले विद्यालय पहुँचना था, ताकि छात्रों को मार्गदर्शन दे सकूँ। किंतु स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के कारण मैं समय से बस पकड़ नहीं सकी। जैसे ही बस स्टॉप के चौक पर पहुँची, एक सहकर्मी सर ने बिना कुछ कहे ही अपनी बाइक पर बैठा लिया और मुझे विद्यालय छोड़ दिया। चूंकि ऐसा कई बार हो चुका है, मुझे कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ।

See also  बलौदाबाजार में रिवर फ्लोटिंग राफ्ट राइड का आगाज़: धमनी क्षेत्र बनेगा नया पर्यटन आकर्षण

शाम को परीक्षा के बाद मैं विद्यार्थियों को प्रश्नपत्र हल करवा रही थी। उस दिन मेरे भीतर यह निश्चय था कि मुझे हर स्थिति में अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करना है। मैंने सोचा, यदि कार्य करते-करते बस छूट भी जाए, तो देखा जाएगाऔर वही हुआ। बहुत देर तक बस का इंतज़ार करती रही, पर कोई बस नहीं रुकी या तो आई नहीं, और आई भी तो बिना रुके निकल गई।

मैं इंतज़ार कर ही रही थी कि तभी एक व्यक्ति बाइक पर, मुँह स्कार्फ से ढँके हुए, मेरे पास आए। मैंने जानबूझकर स्कार्फ नहीं पहना था ताकि कोई परिचित पहचान सके। क्योंकि जब चेहरा ढँका होता है, तो लिफ्ट माँगना भी मुश्किल होता है, आज के दौर में कोई किसी अनजान को लिफ्ट नहीं देता।

वह सज्जन मेरे पास आकर रुके और स्कार्फ हटाकर बोले — “भाभीजी, नमस्ते! मैंने आपको देखा, तो वापस आ गया। चलिए, बैठिए।”
पहले तो मैं उन्हें पहचान नहीं सकी, लेकिन थोड़ी देर में स्मरण आया, ये हमारे पुराने परिचित हैं। मैं उनकी बाइक पर बैठ गई। रास्ते में एक घाट आता है, जहाँ काली माता का मंदिर है। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कहा “मैं जब भी इस रास्ते से आता हूँ, माँ के दर्शन अवश्य करता हूँ।”

See also  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की शिष्टाचार भेंट, सामाजिक कल्याण योजनाओं पर हुई चर्चा

मैंने कहा — “ज़रूर कीजिए।”

मैं भी मंदिर में अंदर गई और माँ के चरणों में प्रणाम किया। तभी मुझे लगा कि यह कोई संयोग नहीं था, यह तो माँ का बुलावा था। मेरी बस का छूटना, दूसरी बस का न रुकना, लिफ्ट न मिलना, सब कुछ उसी योजना का भाग था। माँ ने ही दर्शन के लिए मुझे माध्यम के रूप में उन्हें भेजा। तभी तो कहते हैं, बिना ईश्वर की मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता।

उस क्षण मुझे संपूर्ण घटनाक्रम एक चलचित्र की भाँति स्मरण हो आया। मैं भीतर तक भीग गई और ईश्वर की करुणा का अनुभव हुआ।

एक और घटना कुछ इसी प्रकार की थी। सुबह की भाग-दौड़ में विद्यालय जाने के लिए अपनी एक्टिवा से निकली। रास्ते के मोड़ पर एक लड़का ईयरफोन लगाए, फोन पर बात करते हुए पैदल जा रहा था। मैंने ज़ोर से हॉर्न बजाया, लेकिन उसने नहीं सुना। मुझे गाड़ी धीमी करनी पड़ी। उस समय मुझे झुंझलाहट हुई — “बस छूट जाएगी।”

बस दो मिनट की देरी हुई। मेरे आगे एक ऑटो जा रहा था, जिससे मेरी दूरी कुछ बढ़ गई। कुछ ही दूरी पर उसका टायर फट गया। रास्ते के पत्थर इतनी तीव्रता से उछले कि दूर-दूर तक बिखर गए। मुझे एक झटका सा लगा — यदि वह लड़का न आया होता रास्ते में, तो मैं ऑटो के बिल्कुल पीछे होती और न केवल घायल होती, बल्कि किसी बड़ी दुर्घटना की शिकार भी बन सकती थी।

See also  वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी ने बोगस पंजीयन व फर्जी बिलों पर सख्त कार्रवाई के दिए सुझाव

मैंने तुरंत ईश्वर को धन्यवाद दिया। मन में विचार आया, जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है। और जो आगे होगा, वह भी अच्छे के लिए ही होगा। ईश्वर का निर्णय सदैव हितकारी होता है, केवल हम अल्पबुद्धि मनुष्य उसकी योजना को तत्काल नहीं समझ पाते और व्यर्थ की चिंता करते हैं।

इन घटनाओं ने मुझे यह स्पष्ट रूप से सिखाया कि ईश्वर की योजना हमसे कहीं अधिक गूढ़ और व्यापक होती है। कई बार जो हमारे लिए हानि जैसा प्रतीत होता है, वही हमें किसी बड़े संकट से बचाने का माध्यम बन जाता है। ईश्वर प्रत्यक्ष रूप से भले न दिखें, लेकिन उनके संकेत, सहयोग और संरक्षण के रूप में वह हर क्षण हमारे साथ होते हैं।

हमें केवल अपने कर्म के प्रति सजग रहना है, ईश्वर में विश्वास बनाए रखना है और यह स्वीकार करना है कि उनके निर्णय सदा कल्याणकारी होते हैं। जब हम श्रद्धा और धैर्य के साथ जीवन की हर परिस्थिति को स्वीकार करना सीख जाते हैं, तभी हमारे भीतर आत्मिक शांति और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना जाग्रत होती है।

लेखिका हिन्दी व्याख्याता एवं साहित्यकार हैं।