शिवनाथ नदी घाटी के सांस्कृतिक तीर्थ : मदकूद्वीप एवं जोगीद्वीप

सृष्टि के सृजनकाल से लेकर जल की महत्ता को हर जीव ने स्वीकारा है। पंचमहाभूत से निर्मित इस प्रकृति में जल की एक अलग ही भूमिका है। जल के विषय में चिंतन करें तो नदियों का स्थान सर्वोपरि है। मानव सभ्यता की उत्पत्ति एवं विकास में नदी ही प्रमुख है, जिनकी महिमा सर्वतोमुख दृष्टिगत होती है। इसी संदर्भ में भारतवर्ष के छत्तीसगढ़ राज्य में शिवनाथ नदी घाटी के संदर्भ में बलौदाबाजार जिला के भाटापारा वि.ख. के अंतर्गत गुर्रा नामक गाँव में, भाटापारा-बलौदाबाजार मुख्य मार्ग SH10 में, जिला मुख्यालय बलौदाबाज़ार से 16 किमी की दूरी में तथा भाटापारा से 11 किमी में स्थित, शिवनाथ नदी की सहायक नदी जमुनिया (जमुनईया, जमनईया) तथा बंजारी नाला के संगम स्थल के रूप में जोगीद्वीप, अक्षांश 21°42’40.2’’N देशांश 82°01’19.8’’E में स्थित है। मुख्य मार्ग से खैरी-गुर्रा होते हुए जोगीद्वीप 6.2 किमी की दूरी में स्थित है।
जमुनईया तथा बंजारी नाला के संगम स्थल ने एक द्वीप जैसा आकार लिया है तथा प्राचीनकाल से इस स्थान पर सिद्ध महात्माओं अर्थात् जोगियों का वास स्थान होने के कारण इस स्थल का नाम जोगीद्वीप पड़ा। यह स्थान लगभग 7 से 8 एकड़ के क्षेत्र में द्वीप के रूप में फैला है। इस स्थान पर विभिन्न प्रकार के औषधीय महत्व के वनस्पति, लता वल्लरियाँ तथा लगभग सैकड़ों की संख्या में अर्जुन वृक्ष मुख्य रूप से पाए जाते हैं, जिनके ऊपर लगभग हजारों की संख्या में चमगादड़ हमेशा लटकते हुए नजर आते हैं।
जोगीद्वीप पर संगम स्थल होने के कारण सदियों से संत महात्माओं तथा दूर-दूर से दर्शानार्थियों का आगमन होता रहा है। सिद्ध स्थल होने के कारण साधकों द्वारा ध्यान तथा पूजा, होम, जप, तप किया जाता रहा है। धार्मिक कृत्य के रूप में भागवत, संतों का प्रवचन होता रहा है। प्रति वर्ष माघी पूर्णिमा को स्नान-दान हेतु विशेष रूप से मान्यता प्राप्त होने के चलते इस स्थान पर एक दिवसीय मेला का आयोजन होता है।
जनश्रुति अनुसार, जोगीद्वीप में जमुनिया तथा बंजारी नदी के संगम स्थल में एक मंदिर के होने की बात लोगों में प्रचलित है। इस स्थल पर प्राचीन काल में संत महात्माओं द्वारा एक विशाल विष्णु यज्ञ किया गया था। यज्ञ के दौरान पूर्णाहुति हेतु घृत की कमी पड़ जाने पर संत महात्माओं द्वारा नदी के संगम के पास यज्ञ नारायण भगवान का आवाहन किया गया तथा भगवान के आदेशानुसार संगम के जल को यज्ञ की पूर्णाहुति के लिए ले जाया गया, जो घृत के रूप में परिवर्तित हो गया। यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात संत महात्माओं द्वारा आस-पास के जन समुदाय से भिक्षा के रूप में मांगकर जितना पूर्व में जल लिया गया था, उतना ही घृत संगम में वापस प्रवाहित किया गया।
एक अन्य मान्यतानुसार, एक सिद्ध पुरुष थे, जो इस स्थान में कुटी बनाकर निवास करते थे। वे अपने साधना के लिए संगम में स्थित मंदिर में जल-समाधि लगाकर ध्यान किया करते थे। वह सिद्ध पुरुष आज भी इस स्थान पर अपनी महिमा को दिखाते हुए अंतर्ध्यान अवस्था में स्थित हैं तथा लोगों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, जिनकी महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है, जो सिद्ध बाबा के रूप में विख्यात हैं। पूर्व में सिद्ध बाबा, गुर्रुम के वृक्ष के नीचे लता वल्लरियों से ढंका हुआ था, जिसे ग्रामीणों द्वारा बाद में मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया। वर्तमान में सिद्ध बाबा का मंदिर कई बार बाढ़ आने के बावजूद कभी नहीं डूबा है, जबकि आस-पास का इलाका बाढ़ के कारण जलमग्न हो जाता है। इस स्थान पर इच्छाधारी नाग-नागिन तथा डाकिनी-शाकिनी का वास है, ऐसा लोगों की मान्यता है।
लोगों की इस धार्मिक मान्यता पर विश्वास करके, इस स्थल के गहन अध्ययन और सर्वेक्षण करने पर संगम के समीप एक मंदिर स्थापत्य खंड के रूप में आमलक की प्राप्ति हुई है, जिसका माप 20×20 है। यह स्थान एक टीलानुमा प्रतीत होता है। वर्तमान में इस स्थान के प्रमुख देव के रूप में एक पाषाण खंड की पूजा सिद्ध बाबा के रूप में होती है, जो कि मंदिर स्थापत्य खंड प्रतीत होता है। इस स्थान पर वर्तमान में पीपल वृक्ष के नीचे, मंदिर स्थापत्य खंड के स्तंभ के ऊपर, लाल बलुए पत्थर से निर्मित जलहरि स्थित है, जिसका माप 62×40×20 है। पीपल वृक्ष के नीचे ही लगभग 62×30 के माप का खंडित स्थापत्य खंड स्थित है। दो स्तंभ प्राप्त हुए हैं, जिनका माप लगभग 62×30×32 है। एक सिंह की प्रतिमा प्राप्त हुई है, जिसकी जिव्हा तथा अग्र भाग से दो दाँत निकले हुए हैं तथा जिसका माप 16×8×8 है। इसी स्थान से एक छोटा सा गोलनुमा संरचना प्राप्त हुई है, जो खर-मुसल जैसा प्रतीत होता है। इसी स्थान पर वर्तमान में ग्रामीणों द्वारा निर्मित प्राचीन राममंदिर के बाएँ भाग में एक टीलानुमा संरचना दिखाई पड़ रही है, जिसमें पत्थरों की नींव स्पष्ट देखने को मिल रही है, जो किसी प्राचीन मंदिर के ध्वंषावशेष के जैसा प्रतीत होता है।
जोगीद्वीप के इस क्षेत्र से प्राप्त पुरावशेषों तथा मंदिर स्थापत्य खंडों एवं जनश्रुति को आधार माना जाए, तो इस स्थान पर पूर्व में मंदिर स्थित था, जो नदी में आने वाली बाढ़ के कारण नष्ट हो गया। संगम के पास से आमलक की प्राप्ति तथा जनश्रुति अनुसार संगम के बीच में मंदिर का होना यह सिद्ध करता है कि प्राचीन काल में मंदिर स्थित था। यह स्थल टीलानुमा है। मदकूद्वीप की भांति इस स्थल पर भी प्राचीन मंदिरों के अवशेष भूमि के गर्भ में समाहित हैं, ऐसा प्रतीत होता है। जिनके गहन अध्ययन एवं उत्खनन से मदकूद्वीप की भांति प्राचीन इतिहास को पुनः जीवित किया जा सकता है।
जोगीद्वीप से लगभग 2 किमी की दूरी में स्थित ग्राम गुर्रा के पचरईहा नामक तालाब है, जो 21°42’40.2’’N देशांश 82°01’19.8’’E में स्थित है। आज से लगभग वर्षों पूर्व पचरईहा तालाब, जो कि लगभग एक एकड़ में फैला हुआ है, वहाँ भरुवा नामक एक प्रकार का जंगली घास, जो आकार में लगभग 15 फीट तक होता है, का घना जंगल था। यहाँ के घास की सफाई ग्रामीणों द्वारा की गई तथा वहाँ पर डबरेनुमा जगह, जो थी, वहाँ से कुम्हारों द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए मिट्टी निकाली गई और खुदाई से प्राप्त उन पत्थरों को, जो कि प्राचीन मंदिर के ध्वंषावशेष हैं, उन्हें तालाब के मालिक गुर्रा गाँव के पूर्व जमींदार अड़ार नांदघाट के नारायण प्रसाद अवस्थी के बाँडा में उपयोग कर लिया गया। वहाँ से अन्य प्राप्त मंदिर के अवशेषों को गाँव के बीच बस्ती में स्थित महामाया देवी के मंदिर प्रांगण में रख दिया गया तथा कुछ प्रतिमाएँ तालाब के पास ही नीम के वृक्ष के नीचे रख दी गई हैं।
तालाब किनारे रखी हुई खंडित प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो लगभग स्थानक मुद्रा में खड़ी हुई तथा जिनके दाहिने भाग में हाथ जोड़े किसी खड़े हुए व्यक्ति जैसी प्रतीत होती है, जिसका माप लगभग 67×30 है। एक सिर प्राप्त हुआ है, जिसका माप लगभग 49×57 है। यह खंडित प्रतिमा जटामुकुट धारण किए हुए है, नेत्र खुले हुए हैं। इस प्रकार दोनों खंडित प्रतिमा संभवतः पांडुवंशी कालीन प्रतीत होती हैं। एक प्रतिमा, जिसका माप लगभग 80×30 है, जो अष्टफलक युक्त होने के कारण शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। तालाब किनारे अन्य पुरावशेष प्राप्त हुआ है, जो शिव मंदिर में पाए जाने वाला प्रणालिका जैसा प्रतीत होता है, जिसका माप लगभग 160×40 है। ये सभी सामान्य पत्थरों से निर्मित हैं। इसी तालाब से लगभग डेढ़ फीट की मिट्टी की ईंटें तालाब की खुदाई से प्राप्त हुई थीं।
गाँव के बीच बस्ती में स्थित महामाया देवी के मंदिर प्रांगण में रखी प्रतिमाओं और पुरावशेषों में मुख्य रूप से निम्न प्रतिमाएँ हैं:
- घोड़े पर सवार योद्धा प्रतिमा, जो कि 4 की संख्या में है, जिनका माप लगभग 72×60 है।
- मंदिर के खंडित द्वारशाखा, जिनमें चार गण स्थित हैं, जिनका माप लगभग 150×26×46 है।
- त्रिभंग मुद्रा में खड़ी हुई, सिर में मुकुट धारण किए हुए, कर्ण-कुंडल, कटि भाग में वस्त्रालंकरण, दाहिनी भुजा में पहाड़ जैसी संरचना को धारण किए हुए, पुंछ लपेटे हुए तथा बाएँ हाथ में वरद मुद्रा में खड़ी यह प्रतिमा हनुमान जैसी प्रतीत होती है, जो संभवतः कलचुरी कालीन प्रतीत होती है।
- वर्तमान में महामाया मंदिर के हाल में एक प्रतिमा देखने से जमीन पर लेटी हुई है। ग्रामीणों के अनुसार यह जब तालाब से मिली तब लगभग 5 फीट से ज्यादा लंबी थी। जटामुकुट, कर्ण-कुंडल, हाथ को अभय मुद्रा में किए हुए यह प्रतिमा लक्षणों के अनुसार संभवतः बोधिसत्व की प्रतिमा प्रतीत होती है। यह अभी लगभग 70×54×36 माप के रूप में प्राप्त है। यह प्रतिमा संभवतः सोमवंशी कालीन प्रतीत होती है।
- तालाब से मिट्टी की खुदाई के दौरान गुर्रा गाँव की एक महिला मंगतीन साहू (75 वर्ष) को लगभग 40 वर्ष पूर्व 6 फीट की गहराई से एक नंदी की प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसे वे अपने साथ लाकर वर्तमान में डबरिपारा तालाब के पास एक बरगद के वृक्ष के नीचे चबूतरे में स्थापित कर दी हैं। इस नंदी प्रतिमा का माप 50×30×25 है। प्राचीन मिट्टी की ईंटें पचरईहा तालाब से प्राप्त हुई हैं, जो लगभग एक फीट लंबाई-चौड़ाई की मिलती थीं।
पुरातात्त्विक स्थल मदकूद्वीप, जो जोगीद्वीप से लगभग 26 किमी उत्तर में तथा देवरी 29 किमी पूर्व में स्थित है, इनके संदर्भ में देखें तो जोगीद्वीप दोनों स्थानों के मध्य में स्थित है। इस स्थान से प्राप्त बड़े-बड़े मंदिर स्थापत्य खंडों से ऐसा प्रतीत होता है कि सदियों पूर्व यहाँ पर कोई विशाल मंदिर था। मुख्य मार्ग से लगा हुआ तथा नदी संगम स्थल के होने के कारण गुर्रा और जोगीद्वीप में प्राचीन काल में मंदिर था, जो कालांतर में ध्वस्त हो गया। यहाँ से प्राप्त स्थापत्य खंड लगभग अधिकांश लाल बलुए पत्थर से निर्मित हैं।

मदकूद्वीप एवं जोगीद्वीप की तुलना: मदकूद्वीप, शिवनाथ नदी के दो भागों में बँट जाने से एक द्वीप का रूप लेता है। जोगीद्वीप, जमुनिया एवं बंजारी नदी के संगम स्थल होने के कारण एक द्वीप का रूप लेता है। नाम के अनुसार मदकू ऋषि के आश्रम स्थल होने के कारण मदकूद्वीप पड़ा। जोगीद्वीप में प्राचीन काल से संत महात्माओं एवं जोगियों का निवास होने के कारण यह स्थान जोगीद्वीप पड़ा। मदकूद्वीप के उत्खनन से मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए। जोगीद्वीप और गुर्रा ग्राम से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाओं एवं स्थापत्य खंडों के आधार पर इस स्थल पर भी विपुल पुरा-संपदा भूगर्भ में समाहित है, ऐसा प्रतीत होता है।
इस स्थल को शासन-प्रशासन द्वारा पर्यटन स्थल घोषित करने की बात उठी है, किन्तु अब तक कुछ भी कार्य नहीं हुआ है। वर्तमान में अब जोगीद्वीप की पुरातात्त्विक महत्व को शासन-प्रशासन के समक्ष रखा जाएगा, तो इस स्थल का प्राचीन इतिहास जीवंत हो जाएगा तथा भविष्य में शोधार्थियों के लिए गहन शोध में सहायता मिलेगी।
जानकारी तथा सहयोग प्रदान करने वालों में श्री मोहन सोनी जी, फिरंताराम पाल जी, सुखऊराम साहू जी, देवेश साहू जी, टेकराम साहू जी, मंगतीन बाई साहू, हरी जायसवाल जी, चन्दराम पाल, छबीराम पाल, हीराराम पाल, हेमंत पाल, गणेश निषाद, दौलत ध्रुव, परस ध्रुव, रामानन्द ध्रुव, खेलावन ध्रुव, पुजारी श्री ओमकार गिरि गोस्वामी – इन प्रमुख लोगों द्वारा जोगीद्वीप के प्राचीन इतिहास और किवदंती तथा पचरईहा तालाब से निकली प्रतिमाओं के संबंध में साक्षात्कार करके विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व अध्ययनशाला रायपुर के सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. दिनेश नंदिनी परिहार जी, विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नितेश कुमार मिश्र जी, डॉ. राजीव मिंज जी, शोधार्थी ढालसिंह देवांगन एवं अमर भरतद्वाज जी का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ, सबका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
निष्कर्ष: शिवनाथ नदी के किनारे स्थित हरीहर-केदार क्षेत्र में मदकूद्वीप स्थित है, जिनके पुरातात्त्विक उत्खनन से लगभग 11वीं शताब्दी की कलचुरी कालीन मंदिर तथा विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। इसी क्रम में ग्राम-तरेंगा से सोमवंशी कालीन प्रतिमाएँ, तरपोंगा, ताला (देवरानी-जेठानी मंदिर), गुड़ाघाट, सिंहासनपाट, रामपुर (शिवमंदिर), चतुर्भुजी मंदिर मटियारी, डमरू (मृतिकागढ़) तथा देवरी के पुरातात्त्विक उत्खनन से पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं। संगम स्थल जोगीद्वीप का पुरातात्त्विक अध्ययन एक नवीन शोध है, जो शिवनाथ नदी घाटी के संदर्भ में नवीन प्रकाश डालता है। इस प्रकार मदकूद्वीप से जोगीद्वीप के अनुक्रम में उपरोक्त महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल स्थित हैं, जो कि शिवनाथ नदी घाटी के संदर्भ में विशिष्ट योगदान रखते हैं।
निष्कर्ष
शिवनाथ नदी के किनारे स्थित हरीहर केदार क्षेत्र में मदकूद्वीप स्थित है, जिनके पुरातात्विक उत्खनन् से लगभग 11वीं शताब्दी की कल्चुरी कालीन मंदिर तथा विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएं प्राप्त हुए है। इसी क्रम में ग्राम-तरेंगा से सोमवंशी कालीन प्रतिमाएं, तरपोंगा, ताला(देवरानी-जेठानी मंदिर), गुड़ाघाट, सिंहासनपाट, रामपुर(शिवमंदिर), चतुर्भुजी मंदिर मटियारी, डमरू(मृतिकागढ़) तथा देवरी के पुरातात्विक उत्खनन् से पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए है। संगम स्थल जोगीद्वीप का पुरातातत्विक अध्ययन एक नवीन शोध है जो शिवनाथ नदी घाटी के संदर्भ मे नवीन प्रकाश डालता है । इस प्रकार मदकूद्वीप से जोगीद्वीप के अनुक्रम में उपरोक्त महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल स्थित है, जो कि शिवनाथ नदी घाटी के संदर्भ में विशिष्ट योगदान रखते है।
संदर्भ ग्रंथ:
- सिंह,प्रभात कुमार ,मदकूद्वीप उत्खनन (2010-2011),संचालनालय,संस्कृति एवं पुरातत्व,छत्तीसगढ़ ,2013
- वर्मा,कामता प्रसाद, संस्कृति सरिता शिवनाथ, संचालनालय,संस्कृति एवं पुरातत्व,छत्तीसगढ़ ,2012
- वर्मा,कामता प्रसाद, छत्तीसगढ़ का पुरातत्व एवं प्रतिमाए,संचालनालय,संस्कृति एवं पुरातत्व,छत्तीसगढ़ ,2019,पृ.180-189,एवं पृ.190-194
- साहू, डॉ॰वृषोत्तम, एक्सकवेसन एट देवरी(2015-16)संचालनालय,संस्कृति एवं पुरातत्व,छत्तीसगढ़ ,2018,पृ.50,58,124।
तीजराम पाल
शोधार्थी, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्व–विद्यालय,रायपुर, छत्तीसगढ़