सफ़र एक डोंगी में डगमग – लेखक – डॉ राकेश तिवारी
पुस्तक टिप्पणी : घुमक्कड़ मनुष्य की शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक क्षमता की कोई सीमा नहीं। ये तीनों अदम्य इच्छा से किसी भी स्तर तक जा सकती हैं और चांद को पड़ाव बना कर मंगल तक सफ़र कर आती हैं। घुमक्कड़ी करना भी कोई आसान काम नहीं है, यह दुस्साहस है जो बहुत ही कम लोग कर पाते हैं। मैं ऐसे घुमक्कड़ को ईश्वर की विशेष रचना मानता हूँ। जो किताबों से नहीं अनुभवों से सीखते हैं। पहले मैं विदेशियों द्वारा की गई दुस्साहसिक यात्राओं के वृतांत पढ़ता था। सोचता था कि ऐसी यात्रांए सिर्फ़ विदेशी ही कर सकत हैं। परन्तु ऐसी ही एक दुस्साहस भरी भारतीय घुमक्कड़ की कथा “सफ़र एक डोगीं में डगमग” है। यह कथा पांच दशक पूर्व एक युवा राकेश तिवारी द्वारा के दिल्ली के बोट क्लब में बोटिंग करने के कारण 1969 को प्रारंभ होती है। बोट क्लब में नाव नहीं चल पाने से उपजा नाव चलाने का संकल्प उनकी दिल्ली से कलकत्ता तक की डोंगी यात्रा का कारक बनता है।
दिल्ली से लौटने के बाद लखनऊ में गोमती के किनारे नाव की डांड संभालने और उसे खेने के अभ्यास इस दुस्साहसी यात्रा की मजबूत नींव बनता है। उसके बाद लेखक ने नाव यात्रा प्रारंभ करने से पहले की कठिनाईयों का सहज वर्णन किया है। जिसमें आशंकाओं, कुशंकाओं एवं संभावनाओं के साथ मंत्री जी द्वारा किए गए शुभारंभ से डोंगी 1976 में ओखला हेड से अपने लम्बे सफ़र पर निकल पड़ती है। आखिर दिल्ली यमुना से प्रारंभ होने वाली यात्रा यमुना में जल न होने के कारण सकीर्ण नहर दिल्ली से आगरा तक डोंगी का मार्ग बनती है, उसके पश्चात चंबल नदी में डोंगी पहुंच खुली हवा में सांस लेती है और लेखक की यात्रा आगे बढ़ती है। मैं गोनारी खेंचना, किलवारी संभालना इत्यादि मल्लाही शब्दों से इस वृतांत के माध्यम से ही परिचित हुआ।
एक बात की ओर विशेष ध्यान दिलाना चाहुंगा कि दिल्ली से यात्रा प्रारंभ होने के साथ जिन-निन इलाकों से नदी में डोंगी ने सफ़र तय किया, चर्चा में उसी भाषा का प्रयोग बखूबी से किया गया है। दिल्ली की पंजाबी, हरियाणवी से लेकर बंगाली भाषा तक के वार्तालाप को देशज भाषा में ही लिखना इस यात्रा वृतांत को महत्वपूर्ण बनाता है। अगर लेखक स्थान विशेष का उल्लेख न करे तब भी इसे पढ़ते वक्त वार्तालाप की भाषा से ही जाना जा सकता है कि डोंगी अभी किस क्षेत्र में सफ़र कर रही है। अपने घुमक्कड़ी अनुभव से कह सकता हूँ कि जितनी यात्रा सहज यात्रा वृतांत में दिखाई देती है, उतनी सहज हुई नहीं होगी। लेखक चाह कर भी दो सौ पृष्ठों में समूची यात्रा को समेट नहीं सकता।
लेखक ने यात्रा मार्ग में आने वाले नगरों एवं उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन कर पाठकों का ज्ञान वर्धन किया है। दिल्ली से इनके सहयात्री श्याम कुमार शर्मा बनते हैं और चम्बल नदी में इन्हें छोड़ कर चले जाते हैं, अगले सहयात्री के आते तक लेखक मगरमच्छों एवं घड़ियालों के साथ बागियों के बीच का सफ़र अकेले तय करते हैं। इस दौरान उनसे चम्बल के बागियों से भेंट रोमांचकता की पराकाष्ठा है। बागियों द्वारा आवाज देकर किनारे पर बुलाना एवं पूछताछ करके दूध पताशों से स्वागत करना। इस यात्रा में पाठक को भी कदम-कदम नए अनुभव प्राप्त होते हैं।
नदी मार्ग से हजारों किलोमीटर का सफ़र छोटी सी डोंगी में सहज नहीं है। बिना छत की साधारण सी डोंगी एवं उसके सवार पर मौसम के सभी बदलाओं का असर होता है। धूल, लूह, वर्षा, ठंड आदि के प्रभाव से चमड़ी का जलकर उखड़ना और उसकी पीड़ा को सहन करना, कोई घुमक्कड़ों से ही सीख सकता है। इस यात्रा की महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि लेखक ने दिल्ली से लेकर कलकत्ता तक डोंगी को स्वयं ही चलाया। अब अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि 62 दिनों की इस यात्रा में नदी में कितने बार चप्पू चलाए गए होगें। इस कार्य के लिए मानव देह और मस्तिष्क का बलवान होना आवश्यक है। लेखक ने यात्रा के दौरान प्रकृति का वर्णन भी सुंदर शब्दों में किया है। यात्रा के दौराना लेखक का साथ तीन यात्री देते हैं जिसमें पहला नाम श्याम कुमार शर्मा दूसरा नाम चंदू एवं तीसरा नाम अभय का आता है जो कलकत्ता तक साथ निभाता है।
इस यात्रा में नाव खेते हुए लेखक की दृष्टि आस पास के वातावरण, रहन सहन, पहनाव, भोजन, भाषा बड़ी नदियों की सहायक नदियों के मिलन पर लगातार बनी रहती है और उनकी डायरी में भी दर्ज होती रहती है। कलकत्ता पहुंचने पर इनका पिताजी की फ़टकार के साथ स्थानीय निवासियों द्वारा जोरदार स्वागत होता है। सड़क मार्ग से चलने वाले अन्य साधनों की अपेक्षा जल मार्ग से लम्बी यात्रा करने का अदम्य साहस इन्हें सेलीब्रेटी बनाता है। यात्रा वृतांत लेखन साहित्य की एक विधा है, राकेश तिवारी जी लेखन सरस और सरल है। जबरिया विद्वता झाड़ने के लिए क्लिष्ट शब्दों नहीं घुसेड़ा गया है। देशज भाषा का इस्तेमाल इस पुस्तक को विशिष्ट बनाता है। इस यात्रा वृतांत को पाठक एक ही बैठकी में पढ़ना चाहेगा।
पुस्तक – सफ़र एक डोंगी में डगमग (अजिल्द), लेखक – राकेश तिवारी, प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ – 200, मूल्य – 200/-