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महाराष्ट्र में तीन-भाषा नीति पर मचा घमासान, हिंदी को लेकर राजनीति गरमाई

महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किए जाने के फैसले ने राज्य की राजनीति में उबाल ला दिया है। जहां सत्तारूढ़ भाजपा इस निर्णय को राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक कदम बता रही है, वहीं विपक्षी दल इसे मराठी अस्मिता पर हमला करार दे रहे हैं।

विपक्ष एकजुट, मराठी पहचान की कर रहा है बात

इस निर्णय के विरोध में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे सबसे मुखर आवाज़ बनकर उभरे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर “हिंदी थोपने” का आरोप लगाते हुए कहा कि महाराष्ट्र की संस्कृति और भाषा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उनके साथ इस बार शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के नेता उद्धव ठाकरे भी खड़े हैं। उद्धव ने कहा कि “यह केवल भाषा का मुद्दा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के अधिकारों और स्वाभिमान का सवाल है।”

कांग्रेस भी इस मुद्दे पर क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी है। विधानसभा में कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार ने आरोप लगाया कि भाजपा “राज्य की सत्ता और पहचान को व्यवस्थित तरीके से कमजोर कर रही है।”

बीजेपी की सावधानी, लेकिन समर्थन जारी

भाजपा ने इस मुद्दे पर सावधानी बरतते हुए एक संतुलित रुख अपनाया है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “हर महाराष्ट्रवासी को मराठी आनी चाहिए, लेकिन एक ऐसी भाषा भी होनी चाहिए जो पूरे देश को जोड़ सके, और हिंदी उस भूमिका को निभा सकती है।”

मुंबई में फिर उठा मराठी बनाम गैर-मराठी का सवाल

मुंबई, जो मराठी और गैर-मराठी मतदाताओं के बीच लंबे समय से राजनीतिक खिंचाव का केंद्र रही है, एक बार फिर इस बहस के केंद्र में आ गई है। हाल ही में नवी मुंबई में एमएनएस कार्यकर्ताओं ने सरकार के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया और सरकारी आदेश की प्रतियां जलाईं। वहीं, एक हाउसिंग सोसाइटी में मराठी और गुजराती निवासियों के बीच विवाद तब और बढ़ गया जब एक मराठी परिवार को मांसाहारी भोजन करने पर ताने मारे गए। एमएनएस कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और मराठी परिवार के समर्थन में खड़े हुए।

भाषा से जुड़ी राजनीति का पुराना इतिहास

महाराष्ट्र में भाषा से जुड़ी राजनीति कोई नई बात नहीं है। 1960 में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के बाद जब महाराष्ट्र और गुजरात का गठन हुआ था, तब से मराठी पहचान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विषय रही है। शिवसेना की स्थापना भी मराठी मानुष की सुरक्षा के नाम पर हुई थी। पार्टी ने बैंकों, दुकानों और कार्यालयों में मराठी को अनिवार्य करने जैसे कदम उठाए थे।

अब, जब केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा फार्मूले को लागू किया जा रहा है, तो भाषा एक बार फिर राजनीति के केंद्र में आ गई है। इसके तहत 2025-26 से कक्षा 1 में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाना अनिवार्य किया जाएगा, जबकि अन्य कक्षाओं में इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।

जहां एक ओर सरकार इसे सभी भारतीयों के लिए समान संवाद का माध्यम बनाने की दिशा में पहल बता रही है, वहीं विपक्ष इसे मराठी भाषा और पहचान पर सीधा हमला मान रहा है। आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में यह मुद्दा प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

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