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अनुच्छेद 370 पर फारूक अब्दुल्ला की ‘गुप्त सहमति’ पर पूर्व रॉ प्रमुख ए.एस. दुलत का खुलासा, विपक्षी नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया

पूर्व रॉ (RAW) प्रमुख ए.एस. दुलत की हालिया किताब ने कश्मीर की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। अपनी पुस्तक में दुलत ने दावा किया है कि नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले का अंदरखाने समर्थन किया था, जबकि सार्वजनिक रूप से उन्होंने और उनकी पार्टी ने इसे “विश्वासघात” बताया था।

दुलत के अनुसार, फारूक अब्दुल्ला ने निजी बातचीत में कहा था, “हम मदद करते, लेकिन हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?” यह बात दुलत की किताब में उद्धृत की गई है, जिसे जगरनॉट पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।

मोदी से मुलाकात के बाद अब्दुल्ला की चुप्पी

किताब में उल्लेख है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने से कुछ दिन पहले ही फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात में क्या बातचीत हुई, यह अब तक रहस्य बना हुआ है। दुलत लिखते हैं, “क्या हुआ, यह कोई नहीं जान पाएगा।”

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद फारूक अब्दुल्ला को सात महीने तक नजरबंद रखा गया था। इस दौरान दिल्ली ने उनके रुख को लेकर अंदरूनी तौर पर स्थिति का आकलन भी किया था। दुलत के मुताबिक, सरकार चाहती थी कि अब्दुल्ला नए बदलाव को स्वीकार करें।

सियासी हलकों में मचा हड़कंप

इस खुलासे के बाद जम्मू-कश्मीर की सियासत में हलचल मच गई है। हैंडवाड़ा के विधायक और पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “दुलत साहब की बात में वज़न है, क्योंकि वे फारूक साहब के बेहद करीबी रहे हैं। उन्हें दिल्ली की ‘अंकल-आंटी ब्रिगेड’ का सदस्य भी कहा जाता है।”

उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी इस दावे को खारिज करेगी और इसे एक और साज़िश बताएगी। “यह पार्टी अक्सर ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने में माहिर रही है। बाहर विरोध, अंदर समझौता — यही इनकी राजनीति का तरीका है।”

लोन ने कहा कि उन्हें इस खुलासे पर कोई हैरानी नहीं हुई। “4 अगस्त 2019 को फारूक साहब और उमर साहब की प्रधानमंत्री से मुलाकात मेरे लिए कभी रहस्य नहीं रही। मैं साफ़ देख सकता हूँ कि फारूक साहब ने कहा होगा — ‘हमें रोने दीजिए, आप अपना काम कीजिए, हम आपके साथ हैं।’ अब लगता है 2024 में मिला राजनीतिक इनाम 2019 की सेवाओं का पुरस्कार है।”

पीडीपी ने भी साधा निशाना

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की नेता इल्तिजा मुफ्ती ने भी इस खुलासे पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि फारूक अब्दुल्ला ने संसद की बजाय कश्मीर में रुककर दिल्ली के फैसले को सामान्य बनाने में भूमिका निभाई।

उन्होंने लिखा, “दुलत साहब जैसे कट्टर अब्दुल्ला समर्थक ने यह बताया है कि फारूक साहब अनुच्छेद 370 हटाए जाने से सहमत थे। पहले से ही शक था कि 2019 में प्रधानमंत्री से मुलाकात में क्या हुआ था। अब यह साफ़ है कि फारूक साहब ने उस अवैध फैसले को वैधता देने का प्रयास किया।”

इस नई जानकारी ने अनुच्छेद 370 की राजनीति को एक बार फिर गरमा दिया है। जहां एक ओर सत्ताधारी पक्ष इस खुलासे को अपने फैसले की स्वीकार्यता के रूप में देख सकता है, वहीं कश्मीरी दलों की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

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