संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार संकल्पित
स्कूल शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि संस्कृत विभिन्न भाषाओं की जननी है। इस मायने में संस्कृत एकता का प्रतीक है। श्री अग्रवाल आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में आयोजित तीन दिवसीय विश्व संस्कृत पुस्तक मेले के दूसरे दिन आयोजित समारोह को विशेष अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। समारोह के मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.सी. लाहोटी थे। कर्नाटक राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री श्री व्ही.एस. आचार्य ने समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर आई.ए.आई.टी.आर. के संचालक डॉ. एम.एम. एलेक्स, केनरा बैंक के चेयरमेन श्री एस. रमन विशेष रूप से उपस्थित थे। विश्व संस्कृत पुस्तक मेले का आयोजन केन्द्र सरकार और कर्नाटक सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। यह मेला दस जनवरी तक चलेगा। मेले में छत्तीसगढ़ से संस्कृत विद्वानों, संस्कृत शिक्षकों और विद्यार्थियों का 90 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने भी हिस्सा लिया है। श्री अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में आयोजकों से भविष्य में छत्तीसगढ़ में विश्व संस्कृत पुस्तक मेले का आयोजन करने का आग्रह करते हुए इसके लिए राज्य शासन की ओर से हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।
श्री अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में संस्कृत शिक्षा का विस्तार तेजी से हो रहा है। यहां संस्कृत विद्यालयों की संख्या बढ़ती जा रही है। संस्कृत पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या में लगातार वृध्दि हो रही है। गौरव का विषय है कि छत्तीसगढ़ के संस्कृत विद्यालयों में वनवासी छात्र-छात्राओं की संख्या सर्वाधिक है। श्री अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संस्कृत शिक्षा को सुव्यवस्थित किया जा रहा है। प्राच्य संस्कृत विद्यालय प्रारंभ करने के लिये प्रतिभूति राशि में छूट दी गई है। प्राच्य संस्कृत विद्यालयों के लिये संस्कृत में स्वावलम्बनयुक्त पाठयक्रम बनाया गया है। यह प्रथमा स्तर पर लागू कर दिया गया है। प्राच्य संस्कृत विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क पुस्तक, नि:शुल्क गणवेश तथा छात्राओं को प्रथमा से ही नि:शुल्क सायकल दी जा रही है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा प्रथमा से उत्तर मध्यमा तक की परीक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। प्राच्य संस्कृत उपाधियों की समकक्षता राज्य शासन द्वारा निर्धारित कर दी गई है। श्री अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में प्राच्य संस्कृत की पढ़ाई प्रथमा अर्थात् कक्षा 6 से शुरू होती है। छत्तीसगढ़ राज्य में अब संस्कृत का प्राथमिक स्तर सुनिश्चित कर दिया गया है। इसके अंतर्गत कक्षा 1 से 5 तक प्रवेशिका स्तरीय पाठयक्रम का निर्धारण किया जा रहा है। सामान्य विद्यालयों में कक्षा 3 से कक्षा 5 तक संस्कृत का समावेश किया जा रहा है। प्रदेश के हायर सेकेण्डरी कक्षाओं में संस्कृत को प्रथम भाषा में स्थान दे दिया गया है। प्रथमा स्तर पर अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जा रही है। प्राच्य संस्कृत विद्यालयों को सुविधा सम्पन्न बनाने के लिए अनुदान देने का उपक्रम जारी है।
श्री अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति-संस्कृत भाषा के प्रभाव से समृध्द व सम्पन्न है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में रामगढ़ की प्राकृतिक सुषमा से अभिभूत होकर महाकवि कालिदास ने विश्वप्रसिध्द खण्डकाव्य मेघदूतम् की रचना की थी। रायपुर जिले में स्थित तुरतुरिया नामक स्थान पर आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का निवास रहा है। धमतरी जिले के सिहावा नामक स्थान पर ऋष्यश्रृंग ऋषि का स्थान रहा है। छत्तीसगढ़ का पावन स्थल राजिम जहां पर प्रतिवर्ष कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, वहां लोमश ऋषि का आश्रम है। गौरव का विषय है कि छत्तीसगढ़ भगवान श्रीराम का ननिहाल है। छत्तीसगढ़ ऋषि-मुनियों की पावन भूमि है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा में संस्कृत के मूल शब्दों का प्रयोग दिखाई देता है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ में संस्कृत समृध्द अतीत विद्यमान है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में संस्कृत भाषा की शिक्षा के लिए संस्कृत भारती एवं संस्कृत भाषा के विद्वानों का सहयोग एवं मार्गदर्शन निरंतर प्राप्त हो रहा है। संस्कृत भारती के माध्यम से संस्कृत भाषा के शिक्षकों का प्रशिक्षण एवं संस्कृत की अकादमिक गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है। संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार संकल्पित है।