जानिए शिवरात्रि का क्या रहस्य है
हिन्दू पंचाग के अनुसार एक साल में बारह शिवरात्रि होती है। शिवरात्रि प्रत्येक हिन्दू महीने की कृष्ण चतुर्दशी जो हर महीने का अंतिम दिन होता है उसी दिन मनाई जाती है। लेकिन माघ महीने की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के बतौर पर मनाया जाता है। पूरे भारत वर्ष में इसी दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
एक और मान्यता के अनुसार जब समुंद्र-मंथन से कालकूट विष निकला। उसे भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए इसी दिन अपने कंठ में धारण कर लिया था और तभी से इसी दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है।
महाशिवरात्रि का पावन पर्व भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती जी के विवाह के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भारत में भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। जिस रात भगवान शिव और पार्वती जी का मिलन हुआ उसी रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त एक कहानी और है जिसे लोग कम जानते हैं। शिव पुराण के अनुसार दुनिया की शुरुआत में शिव सागर से भगवान विष्णु प्रकट हुए। इसके बाद उनकी नाभि से एक कमल खिला जिससे ब्रह्मदेव प्रकट हुए। लेकिन जब इन दोनों का जन्म हुआ तब ये दोनों ही नहीं जानते थे की ये कौन है और कहा से आये है?
बात-बात पर दोनों के बीच में लड़ाईयां होने लगी। भगवान और विष्णु और ब्रह्मदेव दोनों ही महाशक्तिशाली थे। इसके कारण इन दोनों के मध्य युद्ध शुरू हो गया कि कौन महान है। इन दोनों के मध्य यह युद्ध तकरीबन 10 हजार सालो तक चला, लेकिन इन दोनों में से किसी ने भी हार नहीं मानी।
तभी अचानक एक विशाल अग्निस्तंभ उन दोनों के बीच में आ खड़ा हुआ।
दिव्य अग्नि को देख दोनों ही आश्चर्यचकित रहे गए। इसके बाद अचानक से एक आकाशवाणी हुई. कि जो भी इस दिव्य अग्नि के अंत को पा लेगा वो महान माना जाएगा। दोनों ही इसके अंत को पा लेने के लिए निकल गए।
लेकिन दोनों को ही उस दिव्य अग्नि के अंत को नहीं पा सके। दोनों का ही अहंकार चुरचुर हो गया। दोनों ने वापस आकर उस दिव्य अग्नि को प्रणाम किया और दर्शन देने का आग्रह किया। तब उस दिव्य अग्नि के अंदर से पहली बार भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि कोई भी महान नहीं है. बल्कि तीनों देव एक समान है। इस कथा के अनुसार इसीलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।