शिवनाथ नदी, एक झलक : डा. कामता प्रसाद वर्मा
शिवनाथ नदी सेन्ट्रल प्रोविंसेज एण्ड बरार के पूर्वी राज्यों में स्थित, नांदगांव स्टेट के अंतर्गत पानाबरस जमींदारी एवं कोटगल जमींदारी के मध्य स्थित ग्राम गोड़री के पास की पहाड़ी से निकलती है। यह ग्राम 20.30 अंश उत्तरी अक्षांश एवं 80.37 देशांस पूर्व में स्थित है जो वर्तमान में तहसील कोरची, तथा जिला गढ़ चिरौली महाराष्ट्र के अंतर्गत आता है। छत्तीसगढ़ की सीमा से यह ग्राम लगभग 10 कि.मी. दूरी पर है। कोटगुल तक कच्चा सड़क मार्ग है तथा कोटगुल से ग्राम कोहका लगभग 2 कि.मी. तथा वहा से उदगम स्थल लगभग 1 कि. मी. पगडंडी रास्ते में है। शिवनाथ नदी का मूलत: उदगम गोड़री ग्राम की राजस्व सीमा में आता है। जहा पर दो सिर विहीन प्रस्तर निर्मित अष्वारोही की प्रतिमायें स्थापित है जिन्हें स्थानीय ग्रामवासी लमसेनी-लमसेना के नाम से जानते हैं। आज की स्थित में वस्तुत: उदगम स्थल इसी को मानते हैं जहां से नीचे की तरफ निरंतर पानी का रिसाव होता रहता है। शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी नदी है जिसकी कुल लम्बाइ लगभग 354 कि.मी. है। पानाबरस जमींदारी, कोरचा, जमींदारी के अंतर्गत आती थी जिसका क्षेत्रफल 345 वर्गमील था। इसके उत्तर में अम्बागढ़ चौकी, उत्तर पूर्व में खालसा ग्राम जो कि संजारी तहसील के अंतर्गत था। पूर्व में डोंडी लोहारा, दक्षिण पूर्व में कांकेर राज्य, दक्षिण पषिचम में कोरचा जमींदारी, और पश्चिम में गढ़ चिरौली तहसील जो कि चांदा जिला (महाराष्ट्र) के अंतर्गत आती थी। शिवनाथ नदी का उदगम इसी जमींदारी से हुआ है
जो बाद में उत्तर की तरफ बहकर पाना बरस जमींदारी और चांदा जिला की सीमा बनाती है। इसके बाद पाना बरस और अम्बागढ़ चौकी को विभाजित कर कुछ दूरी पर पूर्व की ओर बहती है। पाना बरस जमींदारी चांदा जिले के गोड़ राजाओं द्वारा अनुमान में दी गइ थी लेकिन इस तथ्य का कोइ प्रमाण नहीं है। दुर्ग जिले के गजेटियर से प्राप्त जानकारी के आधार पर इस जमींदारी के सर्वप्रथम राजा गोविन्द शाह, इसके बाद फत्तेशाह, निजामशाह, भगवान शाह, दुर्गाशाह, शंकर शाह, दौलतशाह, दिलीपशाह, राजशाह और अंतिम शासक दामेशाह थे। शिवनाथ नदी की उत्पति से सम्बंधित कुछ किवदन्तियां भी स्थानीय आदिवासियों में प्रचलित है। एक कथानक के अनुसार शिवा नामक एक गोंड़ युवती का अपहरण बंधोरी पद्धति से विवाह के लिए, एक गोंड़ युवक ने किया था। शिवा द्वारा विवाह से इंकार किये जाने पर युवक ने क्रोधित होकर उसकी हत्या कर दी और शव समीपस्थ गढडे में फेंक दिया। इसी स्थान से शिवनाथ नदी
प्रवाहित होने लगी। इसी किवदंति का एक दूसरा रूप भी प्रचलित है। जिसके अनुसार उक्त गोंड़ युवक अपने भावी श्वसुर के घर लमसेना बनकर रहता था जिससे उनका भावी श्वसुर उसके कार्यों एवं सेवाओं से प्रसन्न होकर अपनी कन्या का विवाह कर देगा किन्तु कन्या के पिता ने नरबलि के रूप में उसे भूमि में गड़ा दिया। जब कन्या शिवा को इसकी जानकारी मिली तो वह उसी स्थान पर सती हो गइ। आदिवासियों में विवाह की इच्छा से भावी श्वसुर के घर रहने वाले पुरूष को लमसेना कहा जाता है। इस प्रकार उपरोक्त दोनों कथानकों में शिवा का विवरण मिलता है। शिवा और उसके भावी पतिनाथ शिवा नाथ से शिवानाथ की उत्पति की कल्पना की जा सकती है।
शिवनाथ नदी में अम्बागढ़ के उत्तर में लगभग 3 कि.मी. दूरी पर ग्राम बेलर के समीप एक बांध का निर्माण किया गया है जिसे मांगराबराज के नाम से जाना जाता है। अम्बागढ़ चौकी के आगे ग्राम कन्हरपुरी तथा देवरी के मध्य एक सांकर दहरा नामक इस क्षेत्र का धार्मिक स्थल है जहां पर कइ आधुनिक मंदिर निर्मित हैं। इसके आगे शिवनाथ नदी का महानदी में संगम स्थल ग्राम देवरघटा, तहसील पामगढ़ जिला जाजगीर-चांपा के मघ्य लगभग 12 नदियों का संगम दोनों तरफ से है। इनमें से बायें तरफ से मिलने वाली नदियों की संख्या ज्यादा है जिसमें बगदइ, टेरी, आमनेर, सोनवर्षा, सुरही, हाफ, मनियारी, अरपा, तथा लीलागर नदियां हैं तथा दायें तरफ से मिलने वाली नदियों में खरखरा, तांदुला तथा खारून हैं।
शिवनाथ नदी के किनारे से प्राप्त प्राचीन पुरावशेषों में ग्राम गोड़री, दुरेकला, दुर्ग, नगपुरा, कोडि़या, धमधा, तीतुरगांव, देवकर, सल्धा, सरदा , जोंग, तरपोंगा, मऊ, रोहरा, तरेंगा, गुड़ाघाट, मदकूद्वीप, ताला, दगौरी, पासिद, रामपुर, मटियारी, केसला, डमरू, तथा पैसर आदि ग्राम हैं । इसके अलावा शिवनाथ नदी के किनारे, सिथत मृण्मय किलों में दुर्ग शहर के नयापारा में सिथत बाघेरा ग्राम के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, धमधा शहर के मध्य सिथत महामाया मंदिर एवं चौघडि़या तालाब के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, ग्राम डमरू जिला रायपुर, में विद्यमान मृत्तिका गढ़ तथा रसेड़ा ग्राम के समीप निर्मित मृत्तिका गढ़ की प्राप्ति महत्वपूर्ण हैं जहां से कुषाण काल सें लेकर कलचुरी काल तक के मृण्मय पात्र के टुकड़े प्राप्त हुये हैं । पाषाण उपकरणों की ग्राम मऊ जिला दुर्ग, तरेंगा, मदकू द्वीप, कुम्हारखान तथा उसके आगे कइ ग्रामों में प्राप्ति होती है।
शिवनाथ नदी के किनारे से प्राप्त मंदिरों में शिव मंदिर नगपुरा, 12-13 वीं शताब्दी , धमधा सिथत पुरावशेष 11वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक के , शिवमंदिर सरदा से सोमवंशी कालीन मंदिरावशेष तथा मराठा कालीन सती स्तंभ एवं अन्य प्रतिमायें, ग्राम जांग में परवर्ती काल के पुरावशेष , ग्राम धाबोमी में परवर्ती सोमवंशी शासकों के काल का ईंट तथा प्रस्तर निर्मित मंदिर, ग्राम गुड़ाघाट, पासिद, रामपुर तथा मटियारी में कलचुरीकालीन प्रतिमायें , ग्राम तरेंगा से सोमवंशी कालीन मंदिरों के अवशेष तथा प्रतिमायें एवं ग्राम डमरू से कलचुरी कालीन मंदिर तथा प्रतिमायें प्रमुख हैं। इस प्रकार शिवनाथ नदी के उदगम स्थल की जानकारी, उसके किनारे सिथत पुरास्थल, उसकी सहायक नदियों का संगम स्थल, मृण्मय किले, मृत्पात्र तथा पाषाण उपकरणों की प्राप्ति की जानकारी देना ही इस शोध पत्र का प्रमुख उद्देश्य है।
डा. कामता प्रसाद वर्मा
मुख्य रसायनज्ञ
संचनालय पुरातत्व एवं संस्कृति
रायपुर (छ.ग.)
बहुत अच्छी ऐतिहासिक जानकारियां…
nice,,,,,, hmne sirf dusri lamsena wali hi katha suni thi . banut bahut dhanywad