रतियावन की चेली पार्वती आइना दिखाती है समाज को : अनुराग चतुर्वेदी
अभी ललित शर्मा जी द्वारा रचित “रतियावन की चेली” नामक कथा पढ़ी। समाज के सर्वाधिक उपेक्षित और तिरस्कृत वर्ग की व्यथा पर हृदय द्रवित हुआ। एक मासुम बच्चे से शुरू हुई यह संघर्ष यात्रा दारूण कथा बन गई मात्र विधाता द्वारा रचित एक अनगढ़ कृति बनने पर, जिस पर की किसी का सर्वथा कोई वश नहीं।
उस मासूम को भी शिक्षा,समानता और अपने जीवन की दिशा चुनने का उतना ही हक था जितना अन्य किसी को परंतु इस तीसरे वर्ग के प्रति समाज के उपेक्षा और कठोर व्यवहार के कारण उसे धकेल दिया जाता है लोगों के अनजाने चेहरों वाली अंधेरी गली में उनका मनोरंजन का एक साधन बनने को, जहाँ उसकी दशा एक भिखारी से ज्यादा कुछ नहीं है।
अपने जैसो के समाज मैं भी उसे उत्पीड़न और शोषण ही मिला, जब तक की उसने अपने व्यवहार से अलग अपना मुकाम ना बना लिया।
“रतियावन की चेली” कहानी समूचे समाज को झिंझोडकर रख देती है
रतियावन की चेली पार्वती आइना दिखाती है समाज के कुछ स्याह पहलुओं को, जहाँ जीवन इतना सरल कभी नहीं रहा।
कालांतर में यह समाज भी धनलोलुपता की भेंट चढ़ता जा रहा जहाँ कुछ उपद्रवी और छद्म बहुरूपिए इनकी बरसों से कमाई प्रतिष्ठा को बसों और रेलों में नीलाम कर इनको समाज के नजरों में और गहराई तक गिरा देते है।
परंतु गांवो में आज भी इन पार्वतीयों की पुछ है, आज भी शादी-ब्याह और जन्म आदी के अवसरों पर लोग इनके आने का इंतजार करते है और इनको बधाइयों और दुआओं के प्रति श्रद्धा भाव रखते है। शायद जीवन संघर्ष से इनकी दुआओं में वैसी ही शक्ति भर जाती है, जैसे वनस्पतियों में जीवन संघर्ष से औषधीय गुणों की वृद्धि होती है।
बहुत बड़ा वर्ग किन्नर समाज के रुप में समाज की मुख्यधारा से अलग थलग
इस पार्वती की कथा के साथ जुड़ाव महसूस करते हुए मुझे अपने घर आने वाली किन्नर लखिया बरबस याद आती है, मेरे जन्म से लेकर आज तक हर तीन चार महीने में प्रगट हो ही जाती है। बंगाल से आई उसकी कहानी भी कमोबेश ऐसी ही रही होगी। आजकल घर आते- माँ से खुश होके कहती है “बबुआ की बियाह में छायगल से कम ना लेब, अउर बहुरिया के हाथ के दलपुरी खाए बिना मरब ना..”
प्रकृति के हाथों पीड़ित ये वर्ग कुछ मांगता है तो बस स्वयं के प्रति थोड़ा सा सद्भाव ताकि इनको स्वयं के इंसान होने पर कुछ भरोसा सा हो जाए। लेखक महोदय द्वारा इस बहिष्कृत समाज की शुधि लेने के लिए समाज को बाध्य करती रचना के लिए में मैं मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।
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वाराणासी
सुंदर विश्लेषण ।
सुंदर प्रस्तुति ⭐ ये पढ़कर *रतियावन की चेली पार्वती * पढ़ने का बरबस मन हो जाता है