मल्हार का पुरातत्व एवं भारतीय इतिहास विषय पर त्रि दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 10 से 12 अगस्त को रायपुर में
छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय द्वारा प्रो कृष्णदत्त बाजपेयी जन्मशती स्मृति में त्रि दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 10 से 12 अगस्त 2018 को राजधानी रायपुर में किया जा रहा है। इस संगोष्ठी का मुख्य विषय “मल्हार का पुरातत्व एवं भारतीय इतिहास” रखा गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय द्वारा प्रो कृष्णदत्त बाजपेयी जन्मशती स्मृति में त्रि दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 10 से 12 अगस्त 2018 को राजधानी रायपुर में किया जा रहा है। इस संगोष्ठी का मुख्य विषय “मल्हार का पुरातत्व एवं भारतीय इतिहास” रखा गया है।
इस संगोष्ठी में भारत के विभिन्न राज्यों के पुराविद एवं उपस्थित होंगे तथा शोधार्थियों द्वारा शोधपत्र का वाचन किया जाएगा। संगोष्ठी का आयोजन घड़ी चौक स्थित महंत घासीदास संग्रहालय रायपुर के प्रेक्षागृह में होगा।
ज्ञात हो कि मल्हार छत्तीसगढ़ का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है। मल्हार में ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का इतिहास सजीव हो उठता है। कौशाम्बी से दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट की ओर जाने वाला प्राचीन मार्ग भरहुत, बांधवगढ़, अमरकंटक, खरोद, मल्हार तथा सिरपुर होकर जगन्नाथपुरी की ओर जाता था।
मल्हार के उत्खनन में ईसा की दूसरी शती की ब्राम्ही लिपी में आलेखित एक मृणमुद्रा प्राप्त हुई है, जिस पर गामस कोसली या (कोसली ग्राम की) लिखा है।
कोसली या कोसल ग्राम का तादात्यम मल्हार से 16 किमी उत्तर पूर्व में स्थित कोसला ग्राम से स्थित जा सकता है। कोसला गांव में पुराना गढ़ प्राचीर तथा परिखा आज भी विद्यमान है, जो उसकी प्राचीनता को मौर्यो के समयुगीन ले जाती है। वहां कुषाण शासक विमकैडफाइसिस का एक सिक्का भी मिला है।
उत्तर भारत से दक्षिण-पूर्व की ओर जाने वाले प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारण मल्हार का महत्व बढ़ा। यह नगर धीरे-धीरे विकसित हुआ तथा वहां शैव ,वैष्षव तथा जैन धर्मावालंबियो के मंदिरो, मठो मूर्तियों का निर्माण बड़े पैमाने में हुआ।
मल्हार में चतुर्भज विष्णु की एक अद्वितीय प्रतिमा मिली है। उस पर मौर्याकालीन ब्राम्हीलिपि में लेख अंकित है। इसका निर्माण काल लगभग ई.पूर्व 200 है।
मल्हार तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र से विशेषतः शैव मंदिरों के अवशेस मिले है जिनसे इस क्षेत्र में शैवधर्म के विशेष उत्थान का पता चला |
पांचवी से सातवी सदी ईस्वीं तक निर्मित शिव, कर्तिकेय, गणेश, स्कन्द माता, अर्धनारीश्वर आदि की उल्लेखनीय मूर्तिया यहाँ प्राप्त हुई है।
एक शिल्लापट पर कच्छप जातक की कथा अंकित है। शिल्लापट पर सूखे तालाब से एक कछुए को उड़ा कर जलाशय की और ले जाते हुए दो हंस बने है। दूसरी कथा उलूक-जातक की है | इसमें उल्लू को पक्षियों का राजा बनाने के लिए सिंहासन पर बैठाया गया।
सातवी से दसवी शती के मध्य विकसित मल्हार की मूर्तिकला में उत्तर गुप्त युगिन विशेषताएँ स्पष्ट परिलक्षित है। मल्हार में बौद्ध स्मारकों तथा प्रतिमाओं का निर्माण इस काल की विशेषता है|