निजी भूमि खरीदी में भूमि स्वामी की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य
रायपुर, 04 जनवरी 2018/ राजस्व मंत्री श्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 की उपधारा – 6 में हुए संशोधन के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस संशोधन के बाद केवल केन्द्र सरकार अथवा राज्य शासन अथवा उनके उपक्रमों द्वारा ही सार्वजनिक निर्माण और विकास योजनाओं के लिए अधिसूचित क्षेत्रों में आपसी सहमति से निजी व्यक्ति की भूमि खरीदी जा सकेगी।
उन्होंने आज यहां न्यू सर्किट हाऊस में मीडिया प्रतिनिधियों को यह जानकारी दी। इस अवसर पर गृह मंत्री श्री रामसेवक पैकरा, वन मंत्री श्री महेश गागड़ा, आदिम जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप और राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष श्री जी.आर. राना भी उपस्थित थे। श्री पाण्डेय ने यह भी बताया कि क्रय नीति के तहत विक्रेता (किसान) अर्थात् भूमि स्वामी की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। विक्रेता अथवा किसान की सहमति के बिना शासन द्वारा भी जमीन नहीं खरीदी जा सकेगी। राज्य शासन और केन्द्र सरकार की विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए शासकीय भूमि उपलब्ध नहीं होने पर सरकार को निजी भूमि खरीदने की जरूरत पड़ती है। श्री पाण्डेय ने बताया कि इस प्रकार की विकास परियोजनाओं के लिए अधिसूचित क्षेत्रों में निजी व्यक्तियों से आपसी सहमति के आधार पर सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली जमीन किसी भी सूरत में किसी अन्य निजी व्यक्ति या निजी संस्था को नहीं दी जाएगी। शासन द्वारा जिस जमीन की खरीदी होगी, उसके लिए विक्रेता को लगभग तीन गुना मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि भू-अर्जन अधिनियम के तहत भूमि अर्जित करने के लिए प्रक्रियाओं को पूर्ण करने में कम से कम दो से तीन साल का समय लग जाता है, जबकि आपसी सहमति पर आधारित क्रय नीति के तहत एक माह से दो माह के भीतर ही भूमि अंतरण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
श्री पाण्डेय ने बताया कि भू-अर्जन अधिनियम और क्रय नीति के मुआवजें में अंतर है। क्रय नीति के तहत किसान को अधिक राशि मिलेगी। उदाहरण के लिए किसी जमीन का बाजार मूल्य अगर एक हजार है तो जहां भू-अर्जन प्रक्रिया में जमीन का मूल्य एक हजार रूपए, तोषण राशि एक हजार रूपए और 12 प्रतिशत अतिरिक्त राशि अर्थात् 240 रूपए को मिलाकर कुल 2140 रूपए मिलेंगे, जबकि क्रय नीति में जमीन की कीमत एक हजार रूपए और तोषण राशि एक हजार रूपए के साथ 50 प्रतिशत अतिरिक्त राशि अर्थात् एक हजार रूपए मिलाकर कुल तीन हजार रूपए मिलेंगे। श्री पाण्डेय ने बताया कि क्रय नीति में भू-अर्जन अधिनियम का उल्लंघन नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भू-अर्जन अधिनियम में पारदर्शिता सहमति और उचित प्रतिकर मुख्य उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति आपसी सहमति से क्रय नीति में भी होती है।
श्री पाण्डेय ने आज यहां न्यू सर्किट हाउस में बताया कि आम जनता की सुविधा के लिए राज्य शासन के विभिन्न विभागांे, सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थाओं को सड़क, सिंचाई बांध आदि विभिन्न अधोसंरचनाओं के निर्माण और विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए समय-समय पर निजी भूमि की जरूरत होती है। भारत शासन द्वारा पुराने भू-अर्जन अधिनियम 1894 को निरस्त कर उसके स्थान पर नवीन भू-अर्जन अधिनियम लाया गया है, जिसका नाम भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 है। छत्तीसगढ़ राज्य में भूमि-प्रबंधन, भू-राजस्व संहिता 1959 के प्रावधानों के तहत किया जाता है। इस संहिता की धारा 165 की उपधारा-6 के प्रावधानों के अनुसार अधिसूचित क्षेत्रों में आदिवासी व्यक्ति से गैर आदिवासी व्यक्ति को भूमि का अंतरण पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार के नवीन भू-अर्जन अधिनियम 2013 के तहत अधिसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन करना संभव नहीं है। इससे अधिसूचित क्षेत्रों में सार्वजनिक विकास और निर्माण परियोजनाओं का क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाएगा। इसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। नवीन भू-अर्जन अधिनियम 2013 में निजी भूमि अर्जन के लिए कई तरह की प्रक्रियाएं हैं। जिनको पूर्ण करने में काफी समय लग जाता है और कार्य की लागत भी बढ़ जाती है। प्रभावित भू-धारकों को समय पर मुआवजा भुगतान भी नहीं हो पाता और परियोजनाओं को समय पर पूर्ण करने में कठिनाई होती है। छोटी-छोटी विकास परियोजनाओं के लिए भी भू-अर्जन में काफी समय लग जाता है। ऐसी स्थिति में अनुसूचित क्षेत्रों में केन्द्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के अधीन विकास कार्योें को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ विधानसभा में विधेयक लाकर भू-राजस्व संहित की उप धारा- 6 में संशोधन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस संशोधन से जनहित के विकास कार्यों में तेजी आएगी। श्री पाण्डेय ने कहा कि आपसी सहमति से क्रय नीति के तहत
श्री पाण्डेय से यह पूछा गया कि भू-राजस्व संहिता में संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी, तो उन्होंने बताया कि विकास और निर्माण कार्यों के लिए शासकीय भूमि उपलब्ध नहीं होने पर आपसी सहमति से खरीदी नीति के तहत शासन द्वारा आदिवासियों की जमीन गैर अधिसूचित क्षेत्रों में तो खरीदी जा सकती है, लेकिन अधिसूचित क्षेत्रों में सड़क, पुल-पुलिया, सिंचाई परियोजना जैसे जनहित के कार्यों के लिए शासन द्वारा भी निजी जमीन नहीं खरीदी जा सकती। भू-राजस्व संहिता में संशोधन के बाद केवल केन्द्र सरकार अथवा राज्य शासन अथवा उनके उपक्रमों द्वारा ही विकास योजनाओं के लिए आपसी सहमति से निजी व्यक्ति की भूमि खरीदी जा सकती है। श्री पाण्डेय ने यह भी बताया कि क्रय नीति के तहत विक्रेता (किसान) की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। बिना सहमति के शासन द्वारा भी जमीन नहीं खरीदी जा सकेगी। उन्होंने यह भी बताया कि गैर अधिसूचित क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।