दर्द : काव्य संग्रह समर्पण से
गम के दरिया में तैरती हुई नदिया को किनारा न मिला
हम कह सकें जिसे अपना ऐसा कोई हमारा न मिला
गुमनाम थी मेरी जिन्दगी तूने इसे क्यूं छेड़ दिया
रो भी सकूँ जिसके कांधे पर ऐसा कोई सहारा न मिला
हमने तो चाहा था कांटो को भी फ़ूलों जितना
पर जो सिर्फ़ हमें चाहे ऐसा वह प्यारा न मिला
तुम्हारी गुस्ताखियाँ चाहें भी तो कैसे भूल पाएंगे हम
हम थे जब तनहाईयों में भटकते तो साथ तुम्हारा न मिला
गम की बिजलियां झुलसा गयी मेरे आशियाने को
दे, दो पल की रोशनी मुझे ऐसा कोई सितारा न मिला
रुह तो जिस्म से जुदा हो गयी तुमसे बिछुड़ते ही
जी सके जिसे देख कर हम नयनों को ऐसा नजारा न मिला
गम के दरिया में तैरती हुई नदिया को किनारा न मिला
सुनीता शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ
हमने तो चाहा था कांटो को भी फ़ूलों जितना
पर जो सिर्फ़ हमें चाहे ऐसा वह प्यारा न मिला
दर्द जैसे शब्दों में ढल गया हो…
धन्यवाद संध्या जी
dhanywad lalit ji…………….. aapne is kawita ko apne blog me rakha… achha laga.
wow ! hamari kawita aapke side me………………… dekhkr achha lga hme. thanks lalit ji
” WOW ! LALIT JI AAPKA BAHUT BAHUT DHANYWAD . “