छत्तीसगढ के नवीन जिले -2012
जनता के सपनों को पूरा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्यारह वर्ष पहले विकास की अनेक नयी उम्मीदों के साथ नये छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया था। क्षेत्रीय असंतुलन को दूर कर सभी क्षेत्रों को सामाजिक-आर्थिक प्रगति का फायदा समान रूप से पहुंचे और सुशासन के साथ देश के प्रत्येक इलाके का समग्र विकास हो, वर्ष 2000 में अटल जी के नेतृत्व में देश के मानचित्र में छत्तीसगढ़ के साथ झारखण्ड और उत्ताराखण्ड राज्यों के अस्तित्व में आने का भी यही उददेश्य था। अटल जी आजाद भारत के उन गिने-चुने आदर्शवादी नेताओं में हैं, जिन्होंने राष्ट्र की प्रगति के लिए सुशासन के सिध्दांतों को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। सुशासन यानी अच्छा शासन तभी संभव है, जब सरकार जनता के ज्यादा से ज्यादा नजदीक हो, ताकि जनता उसे कभी भी और कहीं भी आसानी से अपने दु:ख-दर्द और अपनी जरूरतों के बारे में बता सके। सुशासन तभी सार्थक होता है, जब उसे जनता तक पहुंचाने के माध्यम यानी प्रशासन का विकेन्द्रीकरण हो। इस दृष्टिकोण से नये छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में विगत आठ वर्षो में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। राज्य के सभी 146 विकासखण्डों को तहसील का दर्जा देना, नगरपालिका परिषदों की संख्या 27 से बढ़ाकर 32 और नगर पंचायतों की संख्या 73 से बढ़ाकर 126 तक पहुंचाना और जिलों की संख्या 16 से बढ़ाकर 18 तक पहुंचाना, छत्तीसगढ़ को सुशासन की राह पर आगे बढ़ाने के लिए उठाए गए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदमों में से हैं। राज्य का निर्माण हुआ तब वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2006 तक प्रदेश में राजस्व जिलों की संख्या केवल 16 थी। इसी तरह तहसीलों की संख्या 98 थी।
राज्य सरकार ने वर्ष 2007 में बस्तर संभाग के नक्सल हिंसा पीड़ित दो बड़े इलाकों- बीजापुर और नारायणपुर को जिले का दर्जा दिया। वर्ष 2008 में उन्होंने सभी 146 विकासखण्डों को तहसील बना दिया। अब नये वर्ष 2012 का आगमन प्रदेश में नौ नये जिलों के निर्माण से हुआ है, जो छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा के लिए निश्चित रूप से एक शुभ संकेत है। राज्य में जिलों की संख्या अब 27 हो गयी है। वर्तमान 146 तहसीलों में से 44 तहसीलें इन नये जिलों में आ गयी है। वास्तव में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा गठित ये नये जिले छत्तीसगढ़ में सुशासन का पर्याय बनेंगे। इसका श्रेय निश्चित रूप से डॉ. रमन सिंह और उसके सरकार को दिया जाना चाहिए। बालोद, गरियाबंद, मुंगेली, बेमेतरा, सुकमा, बलरामपुर, बलौदाबाजार, सूरजपुर और कोण्डागांव जिलों की मांग इन क्षेत्रों के लाखों लोगों का वर्षो पुराना सपना था। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए डॉ. रमन सिंह ने 15 अगस्त 2011 को राजधानी रायपुर में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इन्हें जिले का दर्जा देने की घोषणा की और उनकी सरकार ने सिर्फ चार महीने के भीतर देखते ही देखते इन नये जिलों को आकार देकर एक जनवरी 2012 से प्रदेश के मानचित्र को भी एक नया आकार दे दिया। निश्चित रूप से राज्य के इन सभी नये जिलों की अपनी प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक खूबियां हैं। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है। इस नजरिए से प्रदेश के अन्य जिलों की तरह ये नये जिले भी कृषि प्रधान जिले हैं, जहां खेती के साथ-साथ लघु और कुटीर उद्योगों के विकास की भी अपार संभावनाएं हैं। इनमें से प्रत्येक नये जिले की जनता में अपने नवगठित जिले के नवनिर्माण के लिए नयी आशाओं के साथ नये उत्साह की झलक देखी जा रही है। वर्षो और दशकों बाद उनका सपना साकार जो हो रहा है।
बालोद – मिसाल के तौर पर लगभग 105 वर्ष पुराने दुर्ग जिले को विभाजित कर वर्ष 2012 में बनाए गए बालोद जिले की मांग वर्ष 1956 से हो रही थी। उस क्षेत्र के लोकप्रिय आदिवासी नेता लाल श्याम शाह ने उन दिनों तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलकर उनके सामने यह मांग रखी थी। बहरहाल नया छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लाल श्याम शाह के इस सपने को पूरा किया है। करीब 55 वर्ष बाद यह सपना पूरा हुआ है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि वर्ष 1907 में जब दुर्ग जिले का निर्माण हुआ था, उस वक्त तत्कालीन बालोद (संजारी) को 251 गांवों के साथ एक तहसील का दर्जा दिया गया था।
नये बालोद जिले के निर्माण के साथ ही उसके पूर्ववर्ती दुर्ग जिले का तीसरी बार विभाजन हुआ है। ज्ञातव्य है कि 70 के दशक में दुर्ग जिले को विभाजित कर आज के राजनांदगांव जिले का गठन किया गया था। अब वर्ष 2012 में दुर्ग जिले का फिर पुनर्गठन करते हुए दो नये जिले बालोद और बेमेतरा बनाए गए हैं। बालोद जिले में पांच तहसीलें- डौंडी, गुरूर, डौण्डीलोहारा, बालोद और गुण्डरदेही को शामिल किया गया है, वहीं बेमेतरा जिले में भी पांच तहसीलें- नवागढ़, बेरला, बेमेतरा, साजा और थानखम्हरिया शामिल हैं। जिला बनाने से पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बालोद क्षेत्र की जनता को विकास की दृष्टि कई सौगातें दी हैं, जिनमें कृषि आधारित उद्योग के रूप में वर्ष 2009 में शुरू किए गए मां दंतेश्वरी सहकारी शक्कर कारखाना भी शामिल है, जिससे इस क्षेत्र में गन्ने की खेती के प्रति किसानों का रूझान बढ़ने लगा है। नये बालोद जिले में कुल 687 राजस्व ग्राम और 16 वन ग्राम हैं। राज्य सरकार ने दो राजस्व अनुविभागों, पांच विकासखण्डों, पांच तहसीलों, 393 ग्राम पंचायतों, 6 नगर पंचायतों और दो नगर पालिका परिषदों के साथ इस नये जिले का गठन किया है। भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) द्वारा संचालित दल्लीराजहरा की प्रसिध्द लौह अयस्क की खदानें भी नये बालोद जिले में आ गयी है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विशेष पहल के फलस्वरूप भारत सरकार ने दल्लीराजहरा-रावघाट-जगदलपुर रेल लाईन निर्माण के लिए विभिन्न चरणों में सर्वेक्षण आदि की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इस रेल लाईन के बन जाने पर बालोद जिले के आर्थिक विकास में और भी तेजी आएगी। साथ ही यह जिला रेल लाईन के जरिए राज्य के जगदलपुर (बस्तर) से सीधे जुड़ जाएगा। सिंचाई सुविधा की दृष्टि से बालोद में जल संसाधन विभाग के चार मुख्य जलाशय हैं, जिनमें लगभग नब्बे वर्ष पुराना तान्दुला सिंचाई जलाशय भी शामिल है, जिसका निर्माण वर्ष 1907 में शुरू होकर 1921 में पूर्ण हुआ। नये बालोद जिले का राजस्व क्षेत्रफल लगभग दो लाख 78 हजार हेक्टेयर है। यहां 44 हजार 613 हेक्टेयर में आरक्षित और 30 हजार 298 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र हैं। यह नया जिला भी छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों की तरह कृषि प्रधान जिला है। बालोद जिले में एक लाख 75 हजार 545 हेक्टेयर खरीफ और 86 हजार 303 हेक्टेयर में रबी फसलों की खेती जाती है।
गरियाबंद – पैरी नदी के आंचल में हरे-भरे सघन वनों और पहाड़ियों के मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से सुसज्जित नये गरियाबंद जिले का निर्माण 690 गांवों, 306 ग्राम पंचायतों और 158 पटवारी हल्कों को मिलाकर किया गया है। जमीन के ऊपर बहुमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ यह नया जिला अपनी धरती के गर्भ में अलेक्जेण्डर और हीरे जैसी मूल्यवान खनिज सम्पदा को भी संरक्षित किए हुए है। गिरि यानी पर्वतों से घिरे होने (बंद होने) के कारण संभवत: इसका नामकरण गरियाबंद हुआ। पहले यह रायपुर राजस्व जिले में शामिल था। नये गरियाबंद जिले की कुल जनसंख्या पांच लाख 75 हजार 480 है। लगभग चार हजार 220 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्रफल वाले इस जिले में दो हजार 860 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र और एक हजार 360 वर्ग किलोमीटर राजस्व क्षेत्र है। नये गरियाबंद जिले का कुल वन क्षेत्र लगभग 67 प्रतिशत है। इस नये जिले में वन्य प्राणियों सहित जैव विविधता के लिए प्रसिध्द उदन्ती अभ्यारण्य भी है। इस अभ्यारण्य के नाम से वन विभाग का उदन्ती वन मण्डल भी यहां कार्यरत है। यहां खेती का रकबा एक लाख 35 हजार 823 हेक्टेयर है। धान यहां की मुख्य फसल है। वैसे जिले के देवभोग और मैनपुर क्षेत्र में उड़द, मूंग, तिल, अरहर और मक्के के भी खेती होती है। इस अंचल के लोगों की यह मान्यता है कि पुरी के भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए चावल इस जिले के देवभोग क्षेत्र से भेजा जाता था। देवभोग के चावल की लोकप्रियता आज भी बरकरार है।
गरियाबंद जिले का गठन पांच तहसीलों (विकासखण्डों) फिंगेश्वर (राजिम), गरियाबंद, छुरा, मैनपुर और देवभोग को मिलाकर किया गया है। जिले में चार नगर पंचायत गरियाबंद, छुरा, फिंगेश्वर और राजिम शामिल हैं। इस नये जिले की उत्तर-पूर्वी सीमा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले से और उत्तर-पश्चिमी सीमा रायपुर जिला लगी हुई है। इसके दक्षिण में राज्य का धमतरी जिला लगा हुआ है, जबकि पूर्व और दक्षिण में इसकी सरहद ओड़िशा राज्य के नुआपाड़ा और नवरंगपुर जिले से लगती है। नया गरियाबंद जिला मुख्य रूप से आदिवासी बहुल जिला है। विशेष पिछड़ी कमार और भुंजिया जनजाति के लोग भी यहां निवास करते हैं। राज्य शासन द्वारा इनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए कमार विकास अभिकरण और भुंजिया विकास अभिकरण का गठन करने के बाद कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। गरियाबंद जिले में कमार जनजाति की जनसंख्या 13 हजार 459 और भुंजिया जनजाति की जनसंख्या मात्र तीन हजार 645 है। छत्तीसगढ़ के महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर स्थित देश का प्रसिध्द तीर्थ राजिम भी अब रायपुर जिले से नये गरियाबंद जिले में शामिल हो गया है, जो भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव के प्रसिध्द मंदिरों के लिए भी अपनी खास पहचान रखता है। माघ पूर्णिमा का परंपरागत राजिम मेला राज्य शासन के सहयोग से अब ‘राजिम कुंभ’ के नाम से भी देश-विदेश में प्रसिध्द हो गया है। इसके अलावा नये गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड (तहसील) में ग्राम कोपरा स्थित कोपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर स्थित कर्णेश्वर महादेव और पंचकोशी महादेव सहित विकासखण्ड छुरा में ग्राम कुटेना में सिरकट्टी आश्रम, जतमई माता का मंदिर ओर घटारानी का पहाड़ी मंदिर तथा जल प्रपात भी इस जिले की सांस्कृतिक और नैसर्गिक पहचान बनाते हैं। पैरी नदी पर निर्मित सिकासार जलाशय सहित उदन्ती अभ्यारण्य, देवधारा (मैनपुर) और घटारानी के जल प्रपात यहां सैलानियों को यहां आकर्षित करते रहे हैं। सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व की दृष्टि से देखा जाए तो नये गरियाबंद जिले को अनेक प्रसिध्द हस्तियों की जन्म भूमि और कर्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। इस जिले की राजिम नगरी में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने राष्ट्रीय जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। सन्त कवि पवन दीवान ने अपनी ओजस्वी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की पहचान बनायी। वह आज भी साहित्य और आध्यात्म के माध्यम से समाज सेवा में लगे हुए हैं। राजिम प्रसिध्द कहानीकार और उपन्यासकार स्वर्गीय श्री पुरूषोत्तम अनासक्त की भी रचना भूमि रही है। विकास की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण गरियाबंद को जिले का दर्जा मिलने पर अब वहां जनता की तरक्की और खुशहाली का नया दौर शुरू होने जा रहा है।
मुंगेली – राज्य सरकार ने बिलासपुर जिले को पुनर्गठित कर नये मुंगेली जिले का निर्माण किया है। इस नये जिले का गठन मुंगेली, पथरिया और लोरमी तहसीलों को मिलाकर किया गया है। नये जिले में कुल 669 गांव और 149 पटवारी हल्के हैं। इस नये जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल एक लाख 63 हजार 942 हेक्टेयर है। नवगठित मुंगेली जिले की कुल जनसंख्या चार लाख 72 हजार है। आगर नदी, मनियारी, रहन और शिवनाथ नदी के आंचल में फैले इस नये जिले में अचानकमार, टाईगर रिजर्व सहित मदकूद्वीप जैसे ऐतिहासिक स्थल भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र हैं। नये जिले में पांच पुलिस थाने- मुंगेली, लोरमी, पथरिया, जरहागांव, लालपुर सहित तीन पुलिस चौकियां भी हैं। नये जिले में पांच कॉलेज, 36 हायर सेकेण्डरी स्कूल, 71 हाई स्कूल, 269 मिडिल स्कूल, 711 प्राथमिक शालाएं, तीन कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय और 387 आंगनबाड़ी केन्द्र कार्यरत हैं। इनके अलावा मुंगेली और पथरिया में मिनी आई.टी.आई. कार्यरत हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत नये जिले में 512 उचित मूल्य दुकाने संचालित हो रही है। जिले में चार कृषि उपज मण्डी और 32 राईस मिल भी कार्यरत है। बैंक सेवाओं की दृष्टि से इस जिले में भारतीय स्टेट बैंक, इलाहाबाद बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंदौर सहित सहकारिता के क्षेत्र में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की शाखाएं संचालित हो रही हैं।
बेमेतरा – दुर्ग जिले का पुनर्गठन कर राज्य शासन द्वारा बनाया गया बेमेतरा जिला शिवनाथ, सुरही, हाफ और संकरी नदी के आंचल में 697 गांवों और 334 ग्राम पंचायतों के साथ दो हजार 855 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। नये जिले में सात नगरीय निकाय- नगर पालिका परिषद बेमेतरा और नगर पंचायत साजा, थानखम्हरिया, मारो, देवकर, परपोड़ी और बेरला शामिल हैं। जिले के सभी 697 आबाद गांवों का विद्युतीकरण हो चुका है। बेमेतरा जिले में किसान लगभग दो लाख 35 हजार हेक्टेयर में खेती करते हैं। मुख्य रूप से इस जिले में धान के साथ-साथ दलहन-तिलहन, गन्ना और गेहूं की खेती हो रही है। नये जिले की कुल जनसंख्या सात लाख 95 हजार 334 है। इसमें सात लाख 21 हजार की आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। जिला मुख्यालय बेमेतरा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर हाफ नदी के किनारे ग्राम बुचीपुर में चौदहवीं शताब्दी का प्रसिध्द महामाया मंदिर इस नये जिले के गौरवशाली इतिहास का साक्षी है। बेमेतरा जिले में कुल एक हजार 385 शैक्षणिक संस्थाएं संचालित हो रही है। इनमें पांच कॉलेज, 63 हायर सेकेण्डरी स्कूल, 59 हाई स्कूल, 411 मिडिल स्कूल, 845 प्राथमिक शालाएं और दो तकनीकी शिक्षण संस्थाएं शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ का बस्तर राजस्व संभाग क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के दक्षिणी राज्य केरल सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों से भी बड़ा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बस्तर संभाग के इस विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल को देखते हुए वहां वर्ष 2007 में बीजापुर और नारायणपुर जिलों का गठन किया था। उन्होंने अब वहां दो और नये जिले सुकमा और कोण्डागांव की स्थापना की है। अब इस राजस्व संभाग में जिलों की संख्या सात हो गयी है।सुकमा – शबरी नदी के तट पर स्थित सुकमा जिला न केवल बस्तर संभाग बल्कि छत्तीसगढ़ के भी दक्षिणी छोर का सबसे आखिरी जिला है। इसकी सीमाएं ओड़िशा और आन्ध्रप्रदेश से लगी हुई है। यह नया जिला पूर्ववर्ती दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) जिले को पुनर्गठित कर बनाया गया है। नये सुकमा जिले में तीन तहसीलें छिंदगढ़, सुकमा और कोन्टा को शामिल किया गया है। यह नया जिला भी संघन वन प्रांतों से परिपूर्ण है। यहां के ग्राम रामाराम स्थित चिटमिटिन माता के मंदिर में हर साल वार्षिक मेले का आयोजन होता है। सुकमा जिले छिन्दगढ़ तहसील में दुरमा जल प्रपात और ग्राम नेतानार में शबरी नदी के किनारे शिव मंदिर भी दर्शनीय है। नवगठित सुकमा जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल तीन लाख 33 हजार 530 हेक्टेयर है। इसमें 27 हजार 776 हेक्टेयर का वन क्षेत्र भी शामिल है। नये जिले में कुल 43 ग्राम पंचायतें और तीन नगर पंचायत क्षेत्र सुकमा, कोन्टा और दोरनापाल शामिल हैं। जिले में कुल एक हजार 025 बालौदा आंगनबाड़ी केन्द्रों का भी संचालन किया जा रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अंतरिम आंकड़ों के अनुसार नये सुकमा जिले की कुल जनसंख्या लगभग दो लाख 49 हजार 841 है। इनमें एक लाख 22 हजार 447 पुरूष और एक लाख 27 हजार 393 महिलाएं शामिल हैं। सुकमा जिले में 725 प्राथमिक शालाओं सहित 212 मिडिल स्कूलों, 19 हाईस्कूलों, 12 हायर सेकेण्डरी स्कूलों, दो कॉलेजों, 101 आश्रम शालाओं और 25 छात्रावासों का संचालन किया जा रहा है। जिले में कुल 18 साप्ताहिक हाट बाजार लगते हैं।
कोण्डागांव – राज्य सरकार ने बस्तर (जगदलपुर) राजस्व जिले को पुनर्गठित कर कोण्डागांव जिले का गठन किया गया है, जिसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल तीन लाख 68 हजार 783 हेक्टेयर है। नये कोण्डागांव जिले में पांच तहसीलों-कोण्डागांव, माकड़ी, फरसगांव, केशकाल और बड़ेराजपुर (विश्रामपुरी) को शामिल किया गया है। इस नये जिले में कुल 548 गांव हैं, इनमें राजस्व गांवों की संख्या 498, वनग्रामों की संख्या 46 और वीरान गांवों की संख्या 04 है। नये जिले में कुल 263 ग्राम पंचायतें और चार नगरीय क्षेत्र- नगरपालिका कोण्डागांव तथा नगर पंचायत फरसगांव, केशकाल और विश्रामपुरी शामिल हैं। कोण्डागांव जिले की शैक्षणिक संस्थाआेंं में कुल एक हजार 341 प्राथमिक शालाएं, 631 मिडिल स्कूल, 63 हाईस्कूल, 47 हायर सेकेण्डरी स्कूल, दो कॉलेज, 51 आश्रम विद्यालय और 64 छात्रावास सम्मिलित हैं। इस नये जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत कुल 268 उचित मूल्य दुकानों का संचालन किया जा रहा है। कोण्डागांव जिले में कुल एक हजार 762 आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार और टीकाकरण सेवाओं का लाभ दिया जा रहा है। इस नये जिले में कुल 27 साप्ताहिक हाट-बाजार हैं। कोण्डागांव जिले में ग्राम कोपाबेड़ा और अमरावती के पुराने शिव मंदिर, ग्राम बड़ेडोंगर का दंतेश्वरी मंदिर, ग्राम गढ़धनोरा के नजदीक गोबराही का प्राचीन शिवलिंग और मान्झिनगढ़ की पहाड़ियों में स्थित देवी का मंदिर जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र हैं।
बलरामपुर – सरगुजा जिले का पुनर्गठन कर राज्य शासन द्वारा बनाए गए बलरामपुर भी छत्तीसगढ़ का एक सीमावर्ती जिला है। इसकी सीमाएं उत्तर में झांरखंड और उत्तर प्रदेश से लगती है। जिले की पूर्वी सीमा भी झारखंड राज्य से लगी हुई है, जबकि दक्षिण में छत्तीसगढ़ के ही सरगुजा और जशपुर जिले की सीमाएं इसका स्पर्श करती हैं। बलरामपुर जिले की पश्चिमी सीमा भी सरगुजा जिले से लगी हुई है। नये बलरामपुर जिले में छह तहसीलें-राजपुर, शंकरगढ़, बलरामपुर, रामचन्द्रपुर और वाड्रफनगर शामिल हैं, जो अपने आप में विकासखंड और जनपद पंचायत भी हैं। जिले में कुल 645 गांव हैं, जिनमें आबाद गांवों की संख्या 642 है। इनमें से 623 गांवों का विद्युतीकरण भी हो चुकी है। इसके अलावा कुल 642 आबाद गांवों में से 634 गांवों में पेयजल की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है। नवगठित बलरामपुर जिले में ग्राम पंचायतों की संख्या 340 और नगर पंचायतों की संख्या 05 है। छत्तीसगढ़ का प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल डीपाडीह अब नये बलरामपुर जिले में आ गया है। पुरातात्विक महत्व का यह स्थान इस नये जिले के शंकरगढ़ विकासखंड में स्थित है। भू-गर्भ से निकलने वाले गर्मपानी के लिए प्रसिध्द तातापानी नामक स्थान भी नये बलरामपुर जिले में आ गया है। इसके अलावा यहां के अन्य दर्शनीय स्थानों में सेमरसोत और तैमोर पिंगला अभ्यारण्य, भड़िया, बैनगंगा और झरिया जल प्रपात और अर्जुनगढ़ की गुफा उल्लेखनीय है।
सूरजपुर – नये सूरजपुर जिले का निर्माण भी सरगुजा जिले को पुनर्गठित कर किया गया है। सूरजपुर जिले की उत्तरी सरहद भी उत्तर प्रदेश से लगी हुई है, इसके अलावा नये जिले की उत्तरी और पूर्वी सरहद छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले से, दक्षिणी सरहद कोरबा जिले से और पश्चिमी सरहद कोरिया जिले से लगी हुई है। सूरजपुर जिले में छह तहसीलों- प्रतापपुर, ओड़गी, भैयाथान, रामानुजनगर और प्रेमनगर शामिल हैं, जो अपने आप में विकासखंड और जनपद पंचायत भी है। नये जिले में कुल 550 गांव, 392 ग्राम पंचायत, एक नगर पालिका परिषद और चार नगर पचांयत क्षेत्र शामिल है। सूरजपुर जिले में कुदरगढ़ की पहाड़ियों में स्थित मंदिर सरगुजा सहित सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ की जनता का प्रमुख आस्था केन्द्र है। इस नये जिले के चांदनी बिहारपुर इलाके में रकसगंडा नामक मनोरम जनप्रपात सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है।
बलौदाबाजार– महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित नये बलौदाबाजार जिले का निर्माण रायपुर जिले को पुनर्गठित कर किया गया है। उल्लेखनीय है कि दुर्ग जिले के बालोद की तरह रायपुर जिले में बलौदा बाजार भी लगभग एक सौ वर्ष पुरानी तहसीलों में से है। बलौदाबाजार तहसील की स्थापना अंग्रेजों के समय सन 1905 में हुई थी। आजादी के बाद सामुदायिक विकासखंडों की योजना शुरू होने पर इस तहसील में छह विकासखंडों-सिमगा, भाटापारा, बलौदा बाजार, कसडोल, पलारी और बिलाईगढ़ की स्थापना की गयी। इसके बाद राज्य शासन द्वारा हाल के वर्षों में प्रशासनिक सुविधा के लिए बलौदा बाजार तहसील को पुनर्गठित कर भाटापारा तहसील का निर्माण किया गया और उसे भी राजस्व अनुविभाग का दर्जा दिया गया। बलौदा बाजार में अपर कलेक्टर का कार्यालय पहले से ही संचालित है, जिसके सम्पूर्ण कार्यक्षेत्र को मिलाकर नये बलौदाबाजार जिले का गठन किया गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग तीन हजार 593 वर्ग किलोमीटर है। नये बलौदा बाजार जिले की जनसंख्या दस लाख से अधिक है। इस जिले में 975 गांव, 495 ग्राम पंचायत, 06 विकासखंड, 03 नगरपालिका परिषद और 03 नगर पंचायत क्षेत्र शामिल हैं। छत्तीसगढ़ के कई प्रमुख आस्था केन्द्र भी अब रायपुर जिले से अलग होकर नये बलौदा बाजार जिले में आ गए हैं। इनमें महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्मभूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी भी शामिल है, जहां राज्य शासन द्वारा कुतुबमीनार से भी ऊंचे जैतखाम का निर्माण तेजी से कराया जा रहा है। इसके अलावा कबीरपंथ का प्रमुख आस्था केन्द्र दामाखेड़ा और महर्षि वाल्मिकी के आश्रम के रूप में प्रसिध्द तुरतुरिया भी नये बलौदा बाजार जिले में शामिल हैं। श्रध्दालुओं के प्रमुख आस्था केन्द्र होंगे। वैसे तो यह कृषि प्रधान जिला है, लेकिन यहां चूना पत्थर के विशाल प्राकृतिक भण्डारों के कारण चार सीमेंट कारखानें भी संचालित हो रहे हैं। क्रमांक-4512
- आलेख-स्वराज्य कुमार