एक प्रश्न पुलवामा हमले के आरोपी के साथ सहानुभूति रखने वालों के लिये : राजीव रंजन प्रसाद
एक ख्यातिनाम वकील ने पुलवामा हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादी के लिये कहा था – “सेना के जवानों ने उसे अकारण थप्पड मारा था इसलिये आतंकवादी बन गया”।
उनके इस बयान का प्रयोग अनेक देसी वामपंथी बुद्धिजीवियों और पाकिस्तान की मीडिया ने यह बताने के लिये किया कि कश्मीर में आतंकवाद का कारण क्या है? न्यूजीलैण्ड में हुई आतंकवादी घटना को इसी आलोक में देखिये।
ऑस्ट्रेलियन आरोपी ब्रेंटन टैरंट ने दो इबादतगाहों में हमला कर चालीस से अधिक हत्या की जिसके पीछे उसका तर्क था कि – ‘एब्बा एकरलैंड का बदला लेने के लिए यह हमला किया जा रहा है’।
एब्बा एकरलैंड केवल बारह वर्ष की बालिका थी जो वर्ष 2017 में स्टॉकहोम में हुए एक आतंकवादी हमले में मारी गयी थी, आतंकवादी रख्मत अकिलोव ने आह्लेंस डिपार्टमेंट स्टोर में बियर की लॉरी भिड़ा दी थी। इस आतंकवादी घटना में एब्बा सहित पाँच लोगों की जघन्य हत्या की गयी थी।
मेरा प्रश्न पुलवामा हमले के आरोपी के साथ सहानुभूति रखने वालों के लिये है कि एब्बा की हत्या क्या ब्रेंटन टैरंट को आतंकवादी होने का कारण मुहैय्या कराती है? क्या इस तरह उसे सैंकडों लोगों की जान लेने का लाईसेंस मिल जाता है? हत्यारे अपने मानसिक पागलपन का कोई भी कारण सामने रखें वह भर्त्सनायोग्य ही है।
हम सभी जानते हैं कि ब्रेंटन टैरंट की आतंकवादी सोच के पीछे एककिस्म की नस्लीय सोच भी थी। हम सभी जानते हैं कि भटके हुए युवक नहीं बल्कि खाये-अघाये और धन-पोषित आतंकवादी कश्मीर के खूनखराबे के पीछे का यथार्थ हैं।
हम सभी जानते हैं कि कोई रमन्ना कोई गणपति किसी किस्म की क्रांति-फ्रांति नहीं कर रहा बल्कि उनकी खून की होली खेलने के पीछे पूरा अर्थशास्त्र है।
इस सबके बाद भी हमारा भारत एक विचित्र देश है। यहाँ नक्सली हत्या पर हत्या करते फिरते हैं और यहाँ की कथित बौद्धिजीविक जमात, हत्यारों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने के लिये सामाजिक आर्थिक कारण और तर्क सामने रखती है।
कंधे पर एके-सैंतालीस बांध कर बेगुनाहों से जीवन का अधिकार छीनने के लिये सडक पर निकला दैत्य “भटका हुआ नौजवान” बना दिया जाता है।
ठकर कर सोचिये!! वामपंथी उग्रवादी हों अथवा देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय आतंकवादी सभी को अपने पक्ष में खड़ी “भारत तेरे टुकडे होंगे” चीखने वाली आवाजें कैसे हासिल हो जाती हैं?
जवानों की मौत पर जाम टकराने वाले कुकुरमुत्तों की तरह ऊग रहे नव-मीरजाफर कौन हैं? क्या हमें इस पर विमर्श नहीं करना चाहिये? हत्या और आतंकवाद का कोई सम्मान जनक स्थान कभी नहीं हो सकता, चाहे वे किसी भी तरह के कारण का कैसा भी झुंझुना बजा रहे हों।
इसके साथ ही साथ आतंकवाद के समर्थन में खडी कुछ चतुर आवाजों की विवेचना कीजिये, आपको स्वयं अहसास होगा कि माओवादियों तथा आतंकवादियों का शहरी नेटवर्क कार्य कैसे करता है।