लैला टिपटॉप छैला अंगूठाछाप: ‘राधे’ और ‘कुछ खोना है कुछ पाना’

लेखक

हाल ही में रिलीज हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘लैला टिपटॉप छैला अंगूठा छाप की पूरी कास्टिंग ही छत्तीसगढ़ी  संगी गीत ‘कुछ खोना है कुछ पाना…’ की धुन के साथ-साथ चलती है और यह एहसास कराती है कि यही है हमारा छत्तीसगढ़: हरा भरा, सुनेहरा जहाँ मानव का मानवता के साथ-साथ प्रकृति के सभी जीवों से प्रेम है. गीत उस समय आता है जब फिल्म का मुख्य किरदार राधे (करण खान) अपना गाँव छोड़कर मुंबई जाता है. वो बस में जगह न मिलने पर ऊपर छत पर बैठकर कुछ मुसाफिरों के साथ अपने दुःख को कम करने व सुख बांटने के लिए गाता है.फिल्म में राधे का किरदार निभाने वाले करण खान ने फिल्म से पहले काफी एड फिल्में और एलबम शूट किए है जिस वजह से फिल्मों में अभिनय से पहले  ही उन्होंने किसी भी किरदार में ढलने के लिए आर्हताएं  अर्जित कर ली. इस कृति में उनका अभिनय पक्ष मुखरता से समाने आया है एवं अभिनेता ने अनपढ़ ग्रामीण युवक के किरदार के साथ न्याय बरता है. यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि पूरी फिल्म में करण एवं उसके पिता के किरदार ने जान फूंक दी. राधे (करण) पूरी फिल्म के दौरान अपनी गति बनाए हुए है तथा सभी सीन में उनका अभिनय फबता है.

रानी का किरदार निभाने वाली शिखा चिताम्बरे में अभी अभिनय सीखने की काफी गुंजाइश है. भाव-भंगिमाओं से लेकर डॉयलॉग डेलिवरी तक, सभी में वे नवसिखवा सरीखी प्रतित होती हैं. इस फिल्म ने यह साबित कर दिया है कि केवल छोटे कपड़े पहनने से खराब अभिनय से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं होती. शिखा फिल्म में फाईनल अभिनय नहीं, अपितु रिहर्सल करती हुई लगती है. शिखा के अभिनय को देखने पर ‘मैं टूरा अनारी. .’ की ही ललक मिलती है. या कहा जाए की शिखा अभी उस किरदार से उबर ही नहीं पाई है. मुम्बईया बाला से लेकर ग्रामीण महिला के अभिनय में वे लगातार ओव्हर- एक्टिंग से बाज नहीं आती है.

दोनों भाईयों के किरदार अता करने वाले अभिनेताओं का एक्टिंग-क्वार्डिनेशन हास्य के साथ साथ आत्मियता का भी एहसास कराता है.

फिल्म में दर्जनों ऐसे दृश्य हैं जिनको देखने के बाद वास्तविकता और काल्पनिकता एक जैसी लगने लगती है और सच और झूठ में फर्क करना बड़ा बोझिल व बोरिंग काम हो जाता है. राधे (करण खान) को बंबई की जेल में दी जाने वाली फांसी जिस अतिश्योक्ति पूर्ण माहौल में टलती है इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि या तो निर्देशक भारत की न्यायायिक व्यवस्था से अनभिज्ञ है अथवा उसका मजाक उड़ा रहा है. बॉलीवुड से लौटे निर्देशक सतीश जैन ने कोर्ट बंद होने के बावजूद महज तीन घंटे में ही फांसी का टलना इतने बचकाने अंदाज में प्रदर्शित किया है कि ज्यादातर दर्शकों के लिए यह पचा पाना  नामुमकिन सा है. शायद कई दर्शक इस दृश्य को देखने के बाद ये कहने से बाज न आएं कि- ये क्या बकवास है?

फिल्म की कमजोर एडिटिंग बताती है कि लंबा अनुभव रखने वाले निर्माता निर्देशक सतीश जैन भी छत्तीसगढ़ी फिल्म को तकनिकी रुप से वो समृद्धि नहीं दे पाए जिसकी अपेक्षा उनके छत्तीसगढ़ आगमन के बाद से दर्शकों ने की थी.

इन सबके बीच एक पक्ष जिसका जिक्र करना यहां जरुरी है वो है फिल्म का संगीत. सुनील सोनी का संगीत आपको सुकून के साथ साथ उत्साह, रोमांच, हंसी मजाक सभी आवश्यक रसानुभूति अपनी धुनों एवं गायकी के आलापों से एक साथ देता है. सुनील का संगीत ही एक ऐसा हिस्सा है जो फिल्म देखने को प्रेरित तो करता ही साथ ही बांधे भी रखाता है. आरंभ में संगी गीत ‘कुछ खोना है कुछ पाना…’ का संगीत अनुज शर्मा अभिनित फिल्म ‘रघुबीर’ में संगी गीत से हुबहु उठाया गया है: बस बोल बदल दिए गए है. इसके बावजूद वह एकदम से ताजगी का एहसास कराता है और श्रोता को भावनात्मक रुप से अपने से सीधे तौर पर जोड़ता है. फिल्म की ज्यादातर शुटिंग बेमेतरा के एक गांव में हुई है जहां फिल्माए होली के फाग एवं ददरी छत्तीसगढ़ के मिट्टी की खुशबू बिखरते हैं और होली के पूर्व ही लोगों के लिए होली मनाने का मिजाज भी तैयार करते है.

होली के दृश्य में फिल्माए गीत ‘कलयुग में दारु…’ ‘फाग’ का पुट लिए हुए है तो वहीं अंग्रेजी सभ्यता से आकर्षित एवं प्रभावित मुंबईया बाला रानी (शिखा चिताम्बरे) एवं छत्तीसगढ़ के गांव का ‘टूरा’ राधे (करण) दोनों पर फिल्माए ‘यू हेव टॉट मी द लेसन ऑफ लव’ गीत में गीतकार-संगीतकार एक नए प्रयोग के साथ छौलीवुड में सामने आए हैं. यह गीत भी प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है जिसमें ‘लैला’ अंग्रेजी में गाती है तो ‘छैला’ छत्तीसगढ़ी में. . संगी धुन पर आधारित ‘कुछ खोना है कुछ पाना…’ गीत न सिर्फ कबीर, रहीम, नानक एवं उन सरीखे अन्य दार्शनिकों, महात्माओं की साखी,सबदों व दोहों की याद दिलाता है बल्कि पूरे फिल्म का सिगनेचर ट्युन भी प्रतीत होता है. पूरी फिल्म के दौरान ये धून दृश्यों के साथ-साथ चलती हुई महसूस होती है. यूं कहा जाए कि कमजोर निर्देशन वाली इस फिल्म की डूबती नैय्याको उम्दा संगीत और अभिनय ने ही उबार लिया है.

– कहानी

छत्तीसगढ़ का ग्रामीण युवक राधे अपनी शादी न होने के कारण गांव में सुनाए जाने वाले तानों से बचने के लिए घर छोड़ कर मुंबई चला जाता है. जहां उसे गलतफहमी के कारण कोर्ट द्वारा फांसी की सजा हो जाती है. इसके बाद अमिर पिता की एक लौती पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित लडक़ी रानी के पिता की मौत के कारण वसियत में मिलने वाले रुपए पाने के लिए राधे से शादी करती है. इसके बाद राधे की फांसी टलने के बाद राधे रानी  को 6 माह की करार के तहत गांव आने का आग्रह करता है. यहां से राधे व रानी के बीच धीरे-धीरे प्रेम पनपता है और दोनों हंसी खुशी एक दूसरे के साथ रहने लगते हैं.


बिकास के शर्मा – लेखक युवा पत्रकार हैं.

email- bikashksharma@gmail.com

2 thoughts on “लैला टिपटॉप छैला अंगूठाछाप: ‘राधे’ और ‘कुछ खोना है कुछ पाना’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *