योगी सारस्वत: घुमक्कड़ी बेहतर इंसान बनाती है।
घुमक्कड़_जंक्शन पर आज मिलवाते हैं आपको ग्रेटर नोएडा निवासी घुमक्कड़ योगेन्द्र सारस्वत से, ये अपनी नौकरी के साथ घुमक्कड़ी को भी अंजाम दे रहे हैं, इन्होंने अस्थमा जैसे रोग को धता बताते हुए घिया-विनायक एवं सतोपंथ-स्वर्गरोहणी जैसे कठिन ट्रेक भी किए। आईए उनसे ही सुनते हैं उनकी कहानी………
1 . आप अपनी शिक्षा दीक्षा , अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह कैसा समय था ?
उत्तर : मेरी पैदाइश और बचपन की यादें उत्तर प्रदेश के अलीगढ जनपद के छोटे से गाँव सिकतरा सानी में है। किसान परिवार में छह भाई -बहनों के बीच हालाँकि अभाव रहा लेकिन प्यार और सदभाव के रहते कभी महसूस नहीं हुआ। इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गाँव से करीब तीन किलोमीटर दूर एक विजयगढ़ नाम के कसबे में हुई। गाँव में हर घर से कोई न कोई इंजीनियर -या सरकारी नौकरी में कार्यरत है तो मेरे गाँव को पढ़ाकुओं का गाँव माना जाता था लेकिन अब व्यवस्था बदल रही है।
2 . वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन -कौन हैं ?
उत्तर : इंटरमीडिएट करने के बाद झाँसी के राजकीय पॉलिटेक्निक से मैकेनिकल इंजिनीरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया और फिर इंडस्ट्री में नौकरी शुरू कर दी। पहली नौकरी प्रोजेक्ट इंजीनियर की थी जिसमें मुझे बंगाल सहित पूरा उत्तर पूर्व का भाग मिला था। दो काम थे , पहले सीमेंट प्लांट लगवाना और दूसरा मशीन अगर खराब हो जाए तो सही करने के लिए जाना। लेकिन मैं , जो बचपन से अस्थमा का मरीज था , इस नौकरी में ज्यादा दिन नहीं चल पाया और बीमार रहने लगा। इसके बाद कुछ दिन हीरो मोटर्स में नौकरी की , लेकिन वो भी नहीं चल सकी। इस बीच मैं जामिया मिलिया विश्वविद्यालय , दिल्ली से उच्च शिक्षा प्राप्त करता रहा और अब ग्रेटर नॉएडा के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत हूँ। गाँव में भरा पूरा परिवार है , माँ -बाप , भाई भाभी बच्चे। सभी भाई बहनों की शादी हो चुकी है और दूर दूर स्थापित हो चुके हैं। मैं वर्तमान में गाजियाबाद में पत्नी और दो बेटों के साथ रहता हूँ। बेटे अभी चौथी और दूसरी क्लास में पढ़ते हैं !
3 . घूमने की रूचि आपके भीतर कहाँ से जाग्रत हुई ?
उत्तर : घुमक्कड़ी की बात की जाए तो पहला शौक जो जाग्रत हुआ था वो झाँसी से पॉलिटेक्निक डिप्लोमा करते हुए हुआ। थोड़ा मजेदार बात है – हमारे हॉस्टल के सामने से “जगन ट्रेवल्स ” की बस निकलती थी शाम के समय। ये बस आगरा -ग्वालियर होते हुए जयपुर तक जाती थी और दूसरी तरफ खजुराहो , कानपुर , लखनऊ भी जाती थी। तो हॉस्टल का लगभग हर छात्र इनकी केबिन में बैठकर इन जगहों पर घूम ही आता था। सुबह पहुंचकर -शाम को वापस , और नाश्ता -खाना पीना सब बस वालों की तरफ से ही होता था। आप पूछ सकते हैं ऐसे कैसे ? कारण ये था कि अगर बस वाला बिठाकर नहीं ले जाता था तो हॉस्टल वाले लड़के उसकी बसों के कांच -खिड़कियाँ तोड़ देते थे। हाँ , बस उनकी एक शर्त हुआ करती थी कि हमें केबिन में बैठकर जाना होगा। मुफ्त में बुराई भी क्या है? तो जी इस तरह झाँसी से जयपुर , खजुराहो , लखनऊ , ग्वालियर आदि जगहें घूम लीं और वहीँ से शौक जाग्रत होने लगा घूमने का।
4 . किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं , ट्रैकिंग एवं रोमांचक खेल भी क्या सम्मिलित है ? कठिनाइयां भी बताएं ?
उत्तर : घुमक्कड़ी को वर्गीकृत करना मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा क्योंकि मैं हर तरह की घुमक्कड़ी पसंद करता हूँ। इतिहास समेटे किले भी आकर्षित करते हैं तो ऊँची ऊँची पर्वत चोटियां भी। हिन्दू धर्म की आस्था के प्रतीक मंदिर भी बहुत अच्छे लगते हैं तो घने जंगलों के बीच से ट्रेक करना भी अच्छा लगता है। लेकिन अगर अपनी पसंद की ही बात आ जाए तो मुझे ट्रैकिंग करना और पैसेंजर ट्रेन में यात्रा करना हमेशा अच्छा लगता है। ट्रैकिंग का उजला पहलु ये है कि आप उन जगहों को देख पाते हैं जिन्हें या तो लोगों ने देखा ही नहीं या फिर बहुत कम लोगों ने ही देखा है। लेकिन इसके साथ ही ट्रैकिंग न केवल शारीरिक रूप से कष्ट देती है बल्कि मानसिक परेशानियां भी दे जाती है। आप ट्रैकिंग को प्रसव से जोड़ सकते हैं जो पीड़ा के बाद सुखद परिणाम देता है जिससे प्रसन्नता मिलती है। ट्रैकिंग एक एडवेंचर तो है लेकिन खतरों से खेलना भी है और खतरा उस हद तक भी हो सकता है कि इंसान की मौत भी हो जाती है। लेकिन मुझे फिर भी ट्रैकिंग बहुत पसंद है।
5 . उस यात्रा के बारे में बताएं जहां आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा ?
उत्तर : पहली यात्रा! खजुराहो की थी पॉलिटेक्निक के दोस्तों के साथ। अनुभव विचित्र रहा और अनुरोध करूँगा कि इस के आधार पर मेरी इमेज मत बना लीजियेगा । क्यूंकि उस बात को 18 वर्ष होने को हैं और तब मैं 20 -22 साल का युवा हुआ करता था अब 40 साल का आदमी और दो बच्चों का पिता हूँ। हा हा हा! हुआ ये था कि जब हम सात लोग खजुराहो पहुंचे तो हमने होटल का एक ही रूम लिया और कुछ बैड पर सो गए , कुछ ने गद्दा खींचकर नीचे जमीन पर लगा लिया। हमने एक दिन का किराया दिया था। अगले दिन हम पूरा दिन घुमते रहे , रेने फॉल भी गए लेकिन शाम को जब लौट रहे थे तब एक “आईडिया ” दिमाग में आ गया कि होटल का एक दिन का किराया कैसे बचाया जाय। तो हम सात में से चार लोग होटल में गए और तीन पीछे खिड़की के नीचे खड़े हो गए, हमने सारा सामान नीचे फेंक दिया खिड़की से। आराम से रिसेप्शन पर आये और चाभी देते हुए कहा – हम खाना खाने जा रहे हैं , हमारे साथ के लोग आएं तो उन्हें चाभी दे देना और वो साथी अब तक नहीं पहुंचे …. हाहाहा !! मस्ती थी।
6 . घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं ?
उत्तर : भगवान की कृपा से पैसे का लालची मैं नहीं रहा कभी। मेरा मन्त्र कुछ इस तरह का है – Enjoy each & Every moment of your life !! शाम छह बजे तक घर पहुँच जाता हूँ और शनिवार -रविवार भी घर होता हूँ। इस पूरे समय में बच्चों के साथ बच्चा बनकर मस्ती मारता हूँ। मेरे घर में अच्छी बात ये है कि किसी को भी फिल्म देखने या सास बहू के सीरियल देखने का शौक नहीं है तो टीवी बहुत कम चलता है और मैं ही देख लेता हूँ न्यूज़ वगैरह । तो जो भी समय होता है वो बच्चों के साथ खेलने और मस्ती करने में व्यतीत होता है। दूसरी बात कि अगर मैं कहीं ऐसी जगह घूमने जा रहा हों जो जगह बच्चों के मतलब की है और सुरक्षित है तो मैं पूरे परिवार के साथ ही यात्रा करता हूँ। मेरी धर्मपत्नी अच्छी पढ़ी -लिखी है और पहले टीचिंग की है लेकिन अब नहीं करती। दो कारण हैं -पहला उनके चार मेजर ऑपरेशन हो चुके हैं और दूसरा वो बच्चों को समय देना चाहती हैं।
7 . आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइये कि आपने ट्रेवल ब्लॉग लेखन कब और क्यों प्रारम्भ किया ?
उत्तर : घूमना रुचियों में ऊपर ही आएगा तो इसके अलावा मुझे पढ़ना हमेशा पसंद आता है। इतिहास , साहित्य , राजनीती कुछ भी। दूसरी पसंद -मुझे अलग अलग भाषाएं सीखना अच्छा लगता है और ये शायद बचपन से ही है। 8 वीं में उर्दू सीख ली थी , गाँव से करीब तीन किलो मीटर दूर एक मस्जिद में जाया करता था उर्दू सीखने के लिए ! हिंदी , अंग्रेजी , उर्दू के अलावा जापानी और पश्तो ( अफगानी ) भाषा सीखी हुई है। हंगेरियन भाषा भी सीखी थी लेकिन उसके पेपर में फेल हो गया था तो छोड़ दी। ब्राह्मण होने के कारण संस्कृत स्वतः ही पढ़नी आ जाती है। 🙂 🙂
आपके प्रश्न के दूसरे हिस्से पर आता हूँ – भले में साइंस और इंजीनियरिंग का छात्र रहा हूँ लेकिन राजनीति मेरा प्रिय विषय , प्रिय टाइमपास रहा है। घर परिवार दक्षिणपंथी विचारधारा से होने के कारण वो कीटाणु कहीं गहरे तक घुसे हुए हैं। तो इसी के चलते कभी कभी दैनिक जागरण के पाठकनामा में “पत्र ” लिखा करता था। किसी वरिष्ठ सहयोगी ने दैनिक जागरण समाचार पत्र के ब्लॉग पोर्टल “जागरण जंक्शन ” से परिचय कराया तो वहां राजनीतिक -सामाजिक -साहित्य विषयों पर ब्लॉग लिखने लगा। वहां से 2012 की एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला जिसमें एक फ़ोन मिला था। तब तक कुछ यात्रा लेखकों के ब्लॉग भी पढ़ चुका था जिन्होंने प्रभावित किया। तो इस तरह से ये यात्रा 2013 में शुरू हो गई लेकिन ट्रेवल ब्लॉग्गिंग पर 2015 से थोड़ा ध्यान देना शुरू किया और आपके आशीर्वाद से बेहतर परिणाम मिल रहे हैं।
मेरे लिए ब्लॉग कोई कमाई का माध्यम नहीं है बल्कि मैं ये सोचता हूँ कि मेरे ब्लॉग से किसी को अपना यात्रा प्लान बनाने में सही जानकारी और रास्ते का दिशा निर्देश मिल सके। अच्छा लगता है जब कोई कहता है कि आपका ब्लॉग पढ़कर ही हम “फलां ” जगह गए।
8 . घुमक्कड़ी ( देशाटन , तीर्थाटन , पर्यटन ) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है ?
उत्तर : देशाटन हिन्दू मतलब भारतीय संस्कृति का प्रारम्भ से ही एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। आप मुझसे बेहतर जानते हैं कि आदि शंकराचार्य जी ने देशाटन के माध्यम से ही धर्म को उसकी ऊंचाइयों पर पहुँचाया। प्रमुख मंदिर दूर और दुर्गम जगहों पर बनाये, हो सकता है , कोई और इस विषय में कुछ और सोचता हो लेकिन मैं मानता हूँ कि ये सब इंसान को प्रकृति के और करीब लाने का एक माध्यम था। घुमक्कड़ी आपको सिर्फ नई जगह ही नहीं दिखाती अपितु घुमक्कड़ी के माध्यम से आप बेहतर इंसान बनते हैं , इंसानी जरूरतों और उसके दुःख सुख को समझने लगते हैं। अगर एक पंक्ति में कहूं तो घुमक्कड़ी आपको एक बेहतर और बढ़िया सोच का इंसान बनाती है।
9 . आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी , अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएं की और उन यात्राओं से क्या सीखने को मिला ?
उत्तर : ऐसे बहुत यात्राएं करी हैं। अभी जून में ही नंदीकुंड-घीया विनायक पास पार किया लेकिन यादगार यात्रा “सतोपंथ -स्वर्गरोहिणी ” की यात्रा मानता हूँ। उसका कारण ये है कि एक तो ये मेरी पहली ट्रैकिंग थी जीवन की और दूसरी बात धार्मिक पक्ष भी इसके साथ जुड़ा था। हम अपने आप को पांडवों के पथ पर आगे चलते हुए प्रसन्न और भाग्यशाली महसूस कर रहे थे। अब तक लगभग उत्तर -पूर्व के सभी राज्य , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , उत्तराखंड , हिमाचल , जम्मू & कश्मीर , बिहार , झारखंड , राजस्थान आदि राज्यों में घूम चूका हूँ लेकिन दक्षिण की तरफ अभी जाना नहीं हो पाया। हर यात्रा से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है और आप नए नए लोगों से और नई नई संस्कृति से परिचय प्राप्त करते हैं।
10 . नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या सन्देश है ?
उत्तर : नए लोगों में जोश है, उत्साह है और बड़ी बात कि उनके अंदर घुमक्कड़ी के लिए कुछ भी कर गुजरने का जो जज्बा है , वो प्रभावित करता है। हालाँकि मैं भी अभी ” लर्निंग स्टेज ” में ही हूँ तो किसी को सलाह देने लायक नहीं समझता। लेकिन एक अनुरोध जरूर करूँगा , चाहे कितना भी घूमिये लेकिन कभी अपने आपको घमंडी मत बनाइये और प्रकृति को नुक्सान मत पहुंचाइये। आखिर सबसे पहले हम इंसान हैं और इंसानियत को सर्वोपरि रखिये, जय हिन्द ।
धन्यवाद योगेंद्र जी, आपका ये छोटा सा पर शिक्षाप्रद साक्षात्कार बहुत लोगों को घुम्मकड़ी के लिए प्रेरित करेगा, बस घुमते रहिये लिखते रहिये और आगे बढ़ते रहिये, शुभकामनायों सहित बधाई
योगेंद्र जी, बड़े से बड़ा घुमक्कड़ हमेशा लर्निंग स्टेज में ही होता है । सीखना ही घुमक्कड़ का ध्येय होता है । जिस दिन से वह सिखाने लगता है, वह मठाधीश हो जाता है । ईश्वर आपकी घुमक्कड़ी को यूं ही बनाये रखे ताकि आपकी लर्निंग स्टेज बनी रहे और हम सब भी लाभान्वित होते रहे ।
काफी कुछ जानती थी योगी के बारे में ओर आज बहुत कुछ और जानने को मिला।घुमक्कड़ी इंसान को भाग्य से ओर प्रयास से मिलती है। और जो बाहर निकलकर अपने सपने पूरे करता है उसका साथ तो कायनात भी देती है। जोरदार स्तम्भ शरू करने के लिए ललित जी की जितनी तारीफ की जाय कम है।
बहुत बढ़िया साक्षात्कार योगी जी आपका… इस लेख से आपके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला …
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ भविष्य में घुमक्कड़ी करते रहे और लिखते भी रहे
बहुत ही अच्छा और सच्चा घुमक्कड़ी साक्षात्कार है पढ़कर आनंद आगया , योगी जी बहुत बहुत शुभकामनाएं की वो एक दिन इसी जज्बे के साथ एवरेस्ट की चोटी तक ट्रेक कर आये
Bahut badhiya bhai ji
बहुत बढ़िया साक्षात्कार योगी जी, वाकई इस साक्षात्कार से आपके बारे में काफ़ी कुछ जानने को मिला !
आपने साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है।