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योग का उद्भव विकास एवं विश्व को भारत की देन

भारत सदैव से सांस्कृतिक आध्यात्मिक एव भौतिक रुप से विश्व गुरु रहा है। जब पाश्चात्य देशों में लोगों को कपड़े पहनने का सहूर नही था तब भारत में शिल्पकार ढाका की मलमल और कोसा शिल्क बना रहे थे। जब पाश्चात्य देश के लोग पैरों में चिथड़े बांध कर घूम रहे थे तब भारत में शानदार और सुंदर जूते चप्पलों का अविष्कार हो चुका था। जिसके प्रमाण हजारों साल पुराने मंदिरों के शिल्प से प्राप्त होते हैं। जब उन्हें पाषाण भेद ज्ञात नहीं था तब भारत के शिल्पकार पुरुष, स्त्री तथा नपुंसक पाषाणों का भेद जान चुके थे और उनका स्थापत्य शिल्प में प्रयोग कर रहे थे। जब पाश्चात्य जन आहार विहार निद्रा एवं मैथुन तक ही सीमित था तब भारत में वेद जैसे श्रुतियों पर चिंतन एवं शास्तार्थ हो रहा था। श्रुति को स्मृति में संजोने के लिए लिपि का अविष्कार हो रहा था।

भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान विज्ञान के स्तर पर समृद्ध रहा है। विश्व को भारत ने बहुत कुछ दिया है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण देन है, योग एवं आयुर्वेद। योग शारीरिक उद्यम से स्वास्थ्य प्रदान करता है तो आयुर्वेद औषधि के रुप में यौगिक क्रियाओं का सहायक बनकर सकारात्मक परिणाम देता है। मानव समाज को भारत की यह सर्वश्रेष्ठ देन है। आर्यभट्ट द्वारा शुन्य का अविष्कार और संख्यात्मक दशमलव प्रणाली का अविष्कार तथा अंकों की गणना भी भारत की देन है।

प्राचीन ग्रंथ: वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, भगवद गीता जैसे ग्रंथ न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि उनमें गहरे दार्शनिक और नैतिक सिद्धांत भी समाहित हैं। आर्यभट्ट: खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने पाई (π) के मूल्य की सटीक गणना की और पृथ्वी की परिधि मापी। वराहमिहिर: प्राचीन खगोल विज्ञानी और गणितज्ञ वराहमिहिर ने भी खगोल विज्ञान और मौसम विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय संगीत और नृत्य: शास्त्रीय संगीत (संगीत) और नृत्य की परंपराएँ जैसे भरतनाट्यम, कथक, और ओडिसी विश्व भर में लोकप्रिय हैं। मसाले: भारतीय मसालों का व्यापार प्राचीन काल से होता आ रहा है और उन्होंने वैश्विक खानपान में एक अलग ही स्वाद और विविधता लाई है। भारतीय व्यंजन: भारतीय भोजन की विविधता और पौष्टिकता विश्व भर में सराही जाती है।

विश्व को इन सब देनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योग एवं आयुर्वेद ही है, जो मनुष्य को जीवन जीने, स्वस्थ रहकर मेधा का विकास कर स्वकल्याण से जनकल्याण तक का मार्ग प्रशस्त करती है। वृक्षों की महत्ता को हमारे मनिषियों ने समझकर वृक्षायुर्वेद की रचना की, जिसमें वृक्षों का महत्व बताया तथा वृक्ष किस तरह मानव जीवन के उत्थान में सहायक हो सकते हैं, यह भी बताया। इसके साथ ही कृषि कार्य को महत्वपूर्ण जानकर आगामी पीढी के मार्गदर्शन के लिए सस्यवेद नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की, जिसमें कृषि कार्य में लगे हुए किसान की समस्याओं का समाधानकारक उपाय बताया गया है।

योग संस्कृत शब्द “युञ्ज” से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है जोड़ना या मिलाना। यह शरीर, मन, और आत्मा की एकता की साधना है। योग शारीरिक व्यायाम (आसन), श्वास नियंत्रण (प्राणायाम), ध्यान (ध्यान) और नैतिकता (यम-नियम) के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करने का मार्ग है।

योग के आदि गुरु भगवान शिव माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं और योगिक परंपराओं के अनुसार, शिव ने योग की प्रथम शिक्षा सप्तऋषियों को दी थी। ये सप्तऋषि थे: अत्रि, भृगु, कश्यप, वशिष्ठ, अंगिरस, पुलस्त्य, मरीचि, भगवान शिव ने योग की विधाओं और ज्ञान को सप्तऋषियों को सिखाया, जिन्होंने फिर इसे पूरी दुनिया में फैलाया। इस प्रकार, योग का ज्ञान पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में पहुंचा और विभिन्न योगिक परंपराएं विकसित हुईं।

ध्यान क्या है?
ध्यान एक मानसिक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को एक बिंदु या वस्तु पर एकाग्र करता है। ध्यान का उद्देश्य मानसिक स्पष्टता और आंतरिक शांति प्राप्त करना है। यह व्यक्ति को वर्तमान क्षण में पूरी तरह से उपस्थित होने में मदद करता है।

योग का उद्भव भारत में हजारों वर्ष पूर्व हुआ था, और इसके सिद्धांतों एवं प्रथाओं को विभिन्न ऋषियों एवं आचार्यों ने समय-समय पर विस्तारित एवं परिष्कृत किया। योग का प्रथम उल्लेख वेदों में पाया जाता है, विशेषतः ऋग्वेद में। यहाँ हम कुछ प्रमुख ऋषियों एवं आचार्यों द्वारा योग पर प्रस्तुत विचारों को देखेंगे।

पूर्व आचार्यों और ऋषियों के मत

पतंजलि मुनि
योग के पितामह कहे जाने वाले पतंजलि मुनि ने योगसूत्र की रचना की, जो योग दर्शन का आधारभूत ग्रंथ है। पतंजलि के योगसूत्र का प्रमुख श्लोक है:
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
अर्थात, “योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (नियंत्रण) है।”
यह सूत्र योग के सिद्धांत का सार है, जो मानसिक शांति और ध्यान पर आधारित है।

योगसूत्र के चार अध्याय हैं:
समाधि,
साधना,
विभूति
कैवल्य

भगवद्गीता
महाभारत के भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योग के विभिन्न रूपों (भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग) का उपदेश दिया। भगवद्गीता का एक प्रमुख श्लोक है:
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥ (भगवद्गीता 2.48)
अर्थात, “हे धनंजय, योग में स्थिर होकर, समस्त आसक्ति को त्यागकर, सफल और असफलता में समान भाव से कर्म करो। इस समत्व को ही योग कहा गया है।”

उपनिषद

योग के सिद्धांतों का विवरण विभिन्न उपनिषदों में भी मिलता है, जैसे केन उपनिषद, कठ उपनिषद, और श्वेताश्वतर उपनिषद। श्वेताश्वतर उपनिषद का एक श्लोक है:
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥ (श्वेताश्वतर उपनिषद् 6.23)
अर्थात, “ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा का मूल गुरु के चरण हैं, मंत्र का मूल गुरु का वाक्य है, और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है।”

गुरु गोरखनाथ का योगदान
गोरखनाथ भारतीय योगियों और संतों में एक प्रमुख नाम है। उनका जन्म लगभग 11वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. गुरु गोरखनाथ ने हठयोग की परंपरा को विकसित किया। भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में यात्रा की और अपने योग और ध्यान की विधाओं का प्रचार-प्रसार किया। उनकी शिक्षाएं तांत्रिक, हठयोग और भक्ति योग पर आधारित थीं। गोरखनाथ ने योग और ध्यान को आम जनता तक पहुंचाया और उन्हें आत्मज्ञान के मार्ग पर अग्रसर किया।

योगासन में योगदान
गोरखनाथ का योग में विशेष योगदान है। उन्होंने हठयोग की विधियों का विस्तार किया और उन्हें व्यवस्थित रूप दिया। हठयोग का उद्देश्य शरीर और मन को संयमित करना और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करना है। हठयोग की विभिन्न क्रियाओं में आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्राएँ और षटकर्म शामिल हैं।

आसन: गोरखनाथ ने कई योगासनों का प्रचार-प्रसार किया। उनके अनुसार, आसन से शरीर मजबूत और स्वस्थ बनता है, जिससे ध्यान और साधना में सहायता मिलती है। पद्मासन, भुजंगासन, और शलभासन जैसे आसन उन्होंने विशेष रूप से महत्व दिए।

प्राणायाम: प्राणायाम के माध्यम से गोरखनाथ ने जीवन शक्ति को नियंत्रित करने की विधियाँ सिखाईं। उन्होंने अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करवाया, जो श्वास-प्रश्वास की तकनीकों पर आधारित हैं।

बंधन और मुद्राएँ: गोरखनाथ ने बंधनों और मुद्राओं के महत्व को भी बताया। उन्होंने जालंधर बंध, उद्दियान बंध और मूल बंध का अभ्यास करवाया, जो ऊर्जा को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। उनके अनुसार, मुद्राएँ शरीर और मन को स्थिर करने में सहायक होती हैं।

षटकर्म: गोरखनाथ ने शरीर की शुद्धि के लिए षटकर्म की विधियाँ भी सिखाईं। इनमें नेति, धौति, बस्ती, त्राटक, नौलि और कपालभाति शामिल हैं। ये क्रियाएँ शरीर के अंदरूनी अंगों की शुद्धि करती हैं और स्वास्थ्य को सुधारती हैं।

उन्होंने हठयोग के माध्यम से योग की साधना को व्यापक रूप से प्रसारित किया। गोरखनाथ का मानना था कि:
आसनं प्रणयं चित्त वृतिनिरोधः।
प्रत्याहारधारणा ध्यान समाधयः॥
हठस्यांगानि वक्तव्यानि साधकेष्वभ्यसाधये॥ (गोरक्षशतक 2)
अर्थात, “आसन, प्राणायाम, चित्त की वृत्तियों का निरोध, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये हठयोग के अंग हैं, जो साधकों के अभ्यास के लिए बताए गए हैं।”

महर्षि दयानंद सरस्वती का योगदान
महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों के ज्ञान को पुनः स्थापित किया और योग की प्राचीन विधियों को पुनर्जीवित किया। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की और योग को वेदों के अध्ययन के माध्यम से प्रचारित किया। उनका मानना था कि:
स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं आतुरस्य विकार प्रशमनं।
अर्थात, “स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य संरक्षण और रोगी का विकार नाश करना।”

बाबा रामदेव का योगदान
आधुनिक युग में, बाबा रामदेव ने योग को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने योग को टेलीविजन और योग शिविरों के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुँचाया। उनके कुछ प्रमुख योगदान हैं:
– योगासन और प्राणायाम का व्यापक प्रचार-प्रसार।
– पतंजलि योगपीठ की स्थापना।
– योग शिक्षा के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा का संयोजन।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का योगदान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करने के लिए अथक प्रयास किए। उनके प्रयासों के कारण, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में कहा: योग केवल व्यायाम नहीं है; यह अपने आप को, विश्व और प्रकृति के साथ एकता की भावना को खोजने का मार्ग है। हमारे जीवन शैली में बदलाव लाने और चेतना उत्पन्न करने में योग हमारी मदद कर सकता है।

शारीरिक लाभ
1. लचीलापन: नियमित योग अभ्यास से शरीर की लचीलापन बढ़ती है।
2. शक्ति: विभिन्न योगासनों के अभ्यास से मांसपेशियों की शक्ति और सहनशक्ति बढ़ती है।
3. संतुलन और समन्वय: योगासन शरीर के संतुलन और समन्वय में सुधार करते हैं।
4. आसन: आसन शरीर के विभिन्न अंगों और प्रणालियों को सक्रिय करते हैं, जिससे रक्त संचार, पाचन और श्वसन प्रणाली में सुधार होता है।
5. दर्द में राहत: योग पीठ दर्द, गठिया, और अन्य शारीरिक समस्याओं में राहत देता है।
6. ऊर्जा और थकान: योग और प्राणायाम अभ्यास से ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और थकान कम होती है।

मानसिक लाभ
1. तनाव कम करना: ध्यान और प्राणायाम तनाव को कम करते हैं और मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
2. संतुलन: योग मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करता है।
3. ध्यान केंद्रित करना: ध्यान मानसिक ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बढ़ाता है।
4. मनोविकारों में सुधार: योग और ध्यान अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक विकारों में सुधार करते हैं।
5. आत्म-जागरूकता: योग आत्म-जागरूकता और आत्म-स्वीकृति को बढ़ाता है।

पतंजलि के योगसूत्र में योग के लाभ
पतंजलि मुनि ने योग के आठ अंगों का विवरण योगसूत्र में दिया है। इन आठ अंगों के अभ्यास से व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि प्राप्त करता है। योगसूत्र में दिए गए आठ अंग निम्नलिखित हैं:
1. यम (नैतिक अनुशासन)
2. नियम (स्वयं अनुशासन)
3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ)
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
5. प्रत्याहार (इंद्रिय संयम)
6. धारणा (ध्यान केंद्रित करना)
7. ध्यान (ध्यान)
8. समाधि (आत्मिक शांति)

पतंजलि के अनुसार, इन आठ अंगों के अभ्यास से व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन, शांति और समृद्धि प्राप्त करता है। योग में विभिन्न आसनों का अभ्यास किया जाता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।

योग का उद्भव और विकास भारत में प्राचीन काल से होता आ रहा है, और यह आज भी विकासशील है। विभिन्न ऋषियों, आचार्यों और आधुनिक योग गुरुओं ने योग को एक व्यापक और सार्वभौमिक विधा के रूप में स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से योग को वैश्विक मान्यता मिली और आज योग दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, योग भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा है और इसे आगे बढ़ाने में सभी का योगदान महत्वपूर्ण है।

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