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सिद्धेश्वर से त्रयंबकेश्वर : यात्रा वृत्तांत

किसी की मृदुलता ने अध्ययन काल में हिन्दी की ओर मोड़ दिया था राष्ट्र भक्ति संघ के संस्कारों में पहले ही थे तो निज भाषा के अध्ययन अध्यापन में सहज ही गर्व के साथ जुड़ गया। इस काल में कुछ साहित्यकारों को गहनता से पढ़ने का अवसर मिला जिसने जीवन को बहूत प्रभावित किया उसमें से एक हैं बाबा नागार्जुन जिन्हें 20 वी सदी का सबसे बड़ा यायावर कहा जाता हैं। घुमक्कड़ अज्ञेय के जीवन और कविताओं ने भी सहज प्रभावित किया।

जीवन में प्रारब्ध से बाल्यकाल से ही जो एक अपनेपन की कमी मिला था, उसकी कसक को इन जैसे कवियों ने धार देकर कसक को जीवन के विस्तार में बदलने की प्रेरणा दी। वहीं दूसरी ओर जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करने वालें दो राष्ट्र पुरोधा स्वामी विवेकानंद और श्री गुरूजी के जीवन ने भी भ्रमण से आत्म विस्तार की ही प्रेरणा दी। इसलिए जीवन में जब सहज अवसर मिलता हैं। अज्ञेय की पंक्ति –

“उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका।
ऊषा जाग उठी प्राची में-कैसी बाट, भरोसा किन का!”

को चरितार्थ करते निकल पड़ता हूँ यात्राओं के लिए इन यात्राओं के क्रम में बहूत से सहयात्री भी जुड़ते रहे हैं, किंतु पिछली कुछ यात्राओं से एक अच्छे सहयात्री का भी सानिध्य मिला, जिसने यात्राओं को और दिलचस्प बनाया हैं। मेरा मानना हैं कि ब्रम्हाण्ड से मिलने वाली सारी अच्छी और खराब स्मृतियों को कृतज्ञ भाव से उसे ही समर्पित कर देना चाहिए, इसी भाव के साथ आज बातें करते हैं सिद्धेश्वर छत्तीसगढ़ से घृष्णेश्वर और त्रयंबकेश्वर महाराष्ट्र यात्रा की।

जैसा की भुमिका में ही कहा की मेरी यात्राओं का उदेश्य जहां एक ओर अवचेतन मन में स्थित वेदनाओं का चेतन प्रकृति के तादात्म्य से शमन करना हैं तो दूसरी ओर स्वयं को जानना हैं। स्वयं को जानने का सबसे अच्छा माध्यम हैं भारत की चिती को, उसके आत्म तत्व को, उस स्व को छूना ,जो युगों-युगों से इस देश को विश्व धरातल पर एक अलग अस्तित्व प्रदान करती आयी हैं। जो इस समष्टि में इस राष्ट्र के होने का उद्देश्य हैं। इसलिए पुरानी परिपाटी की यात्रा के स्वरूप को नवीन अनुसंधान के साथ न्युनतम साधनों और सहज उपलब्ध माध्यमों से करने का क्रम प्रारंभ किया हैं। इसलिए पिछली यात्रा की तरह इस बार भी यात्रा दुपहिया वाहन की थी। इस बार थोड़ा और नैसर्गिक होने की दृष्टि से रूकने कि व्यवस्था शिविर (टेंट) लेकर निकले थे।

यात्रा होलिका दहन के पुर्व रात्री प्रांरभ की ।दोनों यात्रियों के अनुकुलता आदि के आधार पर उस दिन निकलने के बाद अधिकतम राजनांदगांव के आसपास तक ही जा पाये ।पहला अनुभव था शिविर में रूकने का इसलिए शिविर हेतु स्थान खोजने पर एक नदी का किनारा मिला ,जहाँ एक ओर अंत्येष्टि क्रिया का स्थान था, थोड़ा मन बना कर दोनों ने मिलकर शिविर डाला और सो गये। साथी की थकान अधिक थी तो वह तुरंत ही सो गया। मेरे लिए यह परिक्षा का अवसर था कल यात्रा आगे बढानी हैं इसलिए साथी को उठा भी नहीं सकता था और स्वयं को सहज नींद आ नहीं रही थी। जैसे तैसे रात्री के कुछ घंटे कटे ब्रम्ह मुहुर्त आया पीछे मंदिर था वहां की घंटी बजी तो संस्कारित मन को सांत्वना मिली और कुछ घंटे सोने का अवसर मिला प्रातः नित्य क्रिया आदि करके वहां से आगे बढ़े स्नान योग्य जगह नहीं थी तो स्नान आगे के लिए छोड़ दिया। जैसा की पहले ही बताया न्युनतम साधनों से यात्रा करने की योजना होती हैं इसलिए एक सामान्य सा वाहन और उसमें कुछ व्यक्तिगत सामान किंतु इस बार कुछ सामान शिविर का भी था जो न्युनतम में भी थोड़ा अधिक था और तब बार बार एक प्रचलित लोकोक्ति ध्यान आ रहा था की “यात्रा सुगम करनी हैं तो सामान कम रखिए”।

हमारी यात्रा आगे बढ़ी राजनांदगांव से नागपुर की ओर चल पड़े होलिका दहन का दिन था स्थान – स्थान पर होली का वातावरण था, कहीं होलिका दहन की तैयारी थी, कहीं छोटे बच्चें, विद्यालय, महाविद्यालय के छात्र गृह ग्राम आदि जाने के पुर्व अपने प्रिय जनों के साथ होली खेल लेने की चहल कहमी में लगे थे। कहीं कोई पहला रंग अपने प्रिय और प्रियतम को समर्पित करने की कवायद में लगा था। ये सारी बातें यात्रा को सहज ही आनंददायी बना रही थी। यात्रा में कुछ सामान के कारण कष्ट था वह इस रंगोत्सव की चहलकदमी से दूर हो जा रहा था। स्नान हम किए नहीं थे घरों पर स्नानागार में या यदा कदा नदी नालों के किनारे अनुकूल स्थान पर स्नान करने के स्वभाव को आज के समय में अनुकूल स्नान के स्थान मिलना कठिन ही हैं। बड़ी मसक्कत के बाद एक अनुकुल स्थान सुंदर नदी पर बने एनिकट का मिला ,जहाँ पर स्नान करके हम फिर आगे बढ़े ,होलिका दहन की रात्री लगभग 10 बजे हम अकोला पहूंचे। आज होलिका दहन की रात्री थी, इसलिए विश्राम गृह खोजकर वहीं विश्राम का प्रबंध किया। अपनी परम्पराओं का निर्वहन हम कहीं भी रहे वहाँ करना हमारा कर्तव्य हैं। इस भाव के साथ अकोला में रात्री होलिका दहन में सहभागी हूए।

दूसरे दिन प्रातः होली की राख से होली प्रारंभ कर हम निकल गये घृष्णेश्वर के लिए बीच में शेगांव था महाराष्ट्र में जिन कुछ प्रमुख संतों को भगवान दत्तात्रेय का अवतार माना जाता हैं उनमें से एक गजानंद महाराज हैं जिनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि एवं समाधिस्थ शेगांव है ।युवा काल में ही देश के प्रमुख संतों, सिद्ध पुरुषों को पढ़ने और उनके प्रमुख केंद्रों के दर्शन की अभिलाषा थी तो मैंने अपने सहयात्री से चलने का आग्रह किया ।थोड़े अनमने ढंग से वो तैयार हो गया किंतु शेगांव पहूंच कर वहाँ की जागृत चेतना ने उसे संतोष दिया की एक अच्छे स्थान आयें।

शेगांव से पुनः महाराष्ट्र की आंचलिकता, ज्वार, बजारे, गेहूं, गन्ने के लहलहाते खेत, पारम्परिक रसवंती (गन्ना रस) के सुंदर केन्द्र, बैल गाडीयों में विक्रय होते कंलिदर जहां पारम्परिक वेश में धोती- टोपी पहने पुरूष और महाराष्ट्रियन साड़ी पहनी स्त्री के आत्मीय सम्बंधों की बानगी, मार्ग में पर्व निमित्त चल रही यात्राओं में एक रंग कि साड़ी पहनी सीर पर तुलसी के गमले लेकर चलती स्त्रियों और धोती कुर्ता पहने भगवा पताका धारी पुरूषों उनमें कोई यात्रा प्रमुख या उस यात्रा का प्रमुख व्यक्ति जो संत नामदेव आदी कि परम्परा का पोशाक धारण किए हाथ में वीणा धारण किए इन सबके पीछे सुंदर पालकीयों का दृश्य, ऐसी अनेक यात्राओं में से कुछ यात्रायें पेड़ों के झरोखों के बीच विश्राम करती ऐसे लग रही थी मानों एक दो रंगी पक्षियों का समुह अपनी लम्बी यात्रा के मध्य विश्राम करने बैठा हो, इन यात्राओं का अनुशासन क्रमबद्धता भी अद्भुत ही थी।

इन विषयों के साथ ही मराठी सामाज की अन्य सहज आंचलिक विशेषताएं, तेल और मीर्च की अधिकता से भरे वडा पाव, मिस्ल पाव, पोहे, पुरनपुणी, लहसुन मीर्च का ठेचा, मराठी कडही, तेल तैरते बैंगन की भाजी आदि का आनंद और इसमें रंगोत्सव की धुन मानों सोने में सुहागा हो। इन बातों के साथ ही मार्ग में कहीं रूकने पर स्थानीय लोगों को यात्रा की जानकारी मिलने पर वहां के लोगों का दो अनजान युवकों के लिए अपनापन इस आनंद में चार चांद लगा रहा था।

इन सब बातों के बीच ही हम संध्या काल की आरती के समय घृष्णेश्वर पहूंचे, वातावरण में आरती के स्वर गुंज रहे थे ऐसा प्रतित हो रहा था मानों भगवान भक्त की आगवानी इन स्वरों में कर रहे हो। यात्रा के एक पडाव पुर्ति और एक आलौकिक वातावरण के बीच द्वादश ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव का दर्शन किया। यह दर्शन अपने आप में एक आंनद और ऊर्जा का परिचायक था। कितना आनंद आता हैं अपनी इच्छित लक्ष्य को पाकर वह अवर्णनीय हैं। तीर्थ में ही रात्री विश्राम किया ,प्रातः पुनः दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ रात्री मुखौटे से दर्शन हुए थे तो जो स्पर्श दर्शन कि एक कसक रह गयी थी वह महादेव ने प्रातः स्पर्श दर्शन से पुर्ण कर दी।

इसके उपरांत शिवालिक सरोवर के दर्शन किए । वहां से हम चले विश्व धरोहर ऐलोरा की गुफाओं के दर्शन के लिए यह गुफा और यहाँ का स्थापत्य अपने आप में अद्वितीय हैं। कैसे किसी निर्माण को पीढीयों तक चलाया गया होगा। कैसे चट्टानों को काट कर यह निर्माण कार्य पुर्ण किया गया होगा ,आज हजारों वर्ष बाद भी इस तकनीकी युग में इस गुफा का स्थापत्य, निर्माण और निर्माण प्रक्रिया आवाक करने वाली हैं। यह गुफा भारतीय सनातन हिन्दू जीवन के तीन प्रमुख मार्गों के समन्वय का भी स्थान हैं जहां एक ओर शैव, वैष्णव शक्तिआदि पुजा पद्धति के प्रमाण है तो वहीं दूसरी ओर जैन और बौद्ध मार्ग से सम्बन्धित गुफाएं हैं। लगभग ऐसे ३२ प्वाइंट वहां है जिसे आप स्थुल तौर पर ही भ्रमण करेंगे तो एक दिन लग जायेगा सुक्ष्मता की तो बात ही छोड़ दिजिए।

यहां से हम त्रयंबकेश्वर के लिए प्रस्थान किए, मार्ग में लगे खेत उसमें बंधे झूले, गन्ने के खेत उससे लगे गन्ने रस कि दूकानें, खेत का ताजा गन्ना और उसका रस, मार्ग में यात्रियों के पानी पिने के लिए रखें नाद (जल पात्र) आदि का आनंद लेते हम सायं तक त्रयंबकेश्वर पहूंचे। पुर्व में एक बार आना हुआ था ,आज पुनः देवगीरी की उन पहाडियों में, इस राष्ट्र की पवित्र नदियों में से एक गोदावरी के उद्गम स्थल और सती अनुसुइया के सतीत्व जिसने त्रिदेव को अपने आंचल से बांध लिया हो इसकी अनुभूति अनुपम थी। वहाँ पहूंचे तो एक स्त्री ने गाड़ी रोका पार्किंग करना हैं क्या हमने कहा हैं आईये बोलकर थोड़े ढलान से अपने सहज सरल सुंदर घर में ले गयी मराठी में अपने बच्चे को कहा पार्किंग करेंगे ये ,हम ठहरे यायावर धीरे से पुछ लिया हमें दर्शन के लिए थोड़ा तैयार होना हैं कुछ व्यवस्था बनेगी क्या उस स्त्री ने अपने पति से पुछा और बता कर चली गयी हां ठीक हैं पति घर पर हैं ,मुह हाथ धोकर तैयार हो जाओं भगवान के भक्त के प्रति यह विश्वास देखकर मन गद्गद हो गया। हम उनके घर पर ही तैयार हूए वहां सामान रखकर दर्शन के लिए बढ गये। हम जैसे ही पहूचें तो सहयात्री हरि जी ने कहा बड़ा खाली खाली लग रहा हैं। पिछली बार जिस स्थान से प्रवेश किए थे वहाँ पहूंचे तो उन्होंने दूसरा मार्ग बताया वहां पहूंचे पर पता चला की बाहर तो ट्रेलर था बाबा के भक्तों की पिक्चर तो यहां चल रही ,हरि जी ने कहा बाबा बोल रहे हैं देखा कितना खाली खाली हैं। घंटो कि प्रतिक्षा जद्दो जहद, भीड़ में जयकारों, लोगों की मनत और कामनाओं, हंसी मजाक, बीच में रात्री सिंगार हेतु दर्शन रूकने इन सब कर्मों के बीच देर रात्रि बाबा के दर्शन हुए ।

रात्रि पुनः तीर्थवास किया प्रातः कुशावर्त तीर्थ के दर्शन किए जहां लोग सफेद कपड़े पहने प्रारब्ध कर्मों कि मुक्ति के लिए, काल सर्प दोष आदि की पुजाओं का क्रम पुर्ण कर रहे थे। कुशावर्ता तीर्थ एक कुंड हैं जहां माना जाता हैं की ब्रम्ह गिरी पर्वत में उद्गम होकर गोदावरी यहीं प्रगट रूप में दिखाई देती हैं। तीर्थ की सुचारू व्यवस्था हेतु एक महिला कानस्टेबल न्युक्त थी ,शरीर दृष्टि से हीस्ट पुष्ट कानस्टेबल माईक के माध्यम से कुंड की व्यवस्था सम्हाल रही थी वो अपने विषय मराठी में रख रही थी वहाँ लोगों कि गतिविधियां और उनके विषय कि बांनगी आनंद दायक थी आंचलिक भाषा में वह कभी लोगों को बिना चप्पल कुंड में जाने कह रही थी, कभी कुंड में वस्त्र धोने मना कर रही थी, कभी महिलाओं को कहा कपड़े बदलना इसकी जानकारी दे रही थी उसके संवाद रोचक भी थे और हिन्दू सामाज के अपने तीर्थ मर्यादाओं के प्रति जागृति कमी को भी बता रहे थे ।

वहां से निकल कर कुछ अन्य प्रमुख स्थानों के दर्शन किए वहाँ के बाजारों में विक्रय हो रहे जंगली और ग्रामीण फलो सामाग्रीयों का आनंद लिया कहीं कोई टोकरी में शहतूत बेच था, कोई अंजीर के फल, तो किसी के टोकरी में स्ट्राबेरी था। इस प्रकार दो प्रमुख ज्योतिर्लिंग की यात्रा के उपरांत हम निकल पड़े घर की ओर इस बार मार्ग में अंगुर के बगीचे और उससे लगे ताजे अंगुरों की दुकान ऐसे लग रही थी मानों हम अंगुर की वादियों में हो।हम धीरे धीरे वापसी कि ओर बढ रहे थे किसी भी यात्रा में सब कुछ सुखद नहीं होता और केवल सुखद यात्रा यादगार भी नहीं होती।

घर वापसी के क्रम में पहला पडाव पुनः अकोला करने के विचार से हम चले थे उसके पहूंचने के पुर्व ही लगभग रात्री ९ बजे गाड़ी एक स्थान पर बंद हो गयी मुख्य मार्ग था पर दूर दूर तक कोई गाड़ी सुधारने का केन्द्र नहीं था। लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद एक मकान दिखा वहाँ भी कुछ उत्तरप्रदेश के प्रवासी मजदूर रहते थे उसमें एक व्यक्ति पास गांव का मिला लेकिन होली का समय वो अपनी धुन में थे कुछ अनुनय विनय के बाद वो तैयार हुआ किंतु एक मानवता के नाते हमारी बहूत मदद की पास के गांव तक हमारी गाड़ी टोचन कि, गाड़ी मिस्त्री तक पहूचाया एक अनजान स्थान पर मानवता के नाते यह सहयोग अविस्मरणीय हैं। देर रात को हम अकोला पहूंचे वहा पुराने की स्थान पर विश्राम किया।

दूसरे दिन फिर हम निकल पड़े। ये दिन पुरी यात्रा में थोड़ा दिक्कतों से भरा रहा एक दो स्थानों पर अनावश्यक परेशानीयों का सामाना करना पड़ा हरि जी और मैं हर एक नयी समस्या के साथ विचार करते थे आज क्या किया हमने प्रातः जो ये सब हो रहा हैं ऐसा करते कुराते हम दोपहर तक नागपूर पहूंचे वहां से निकल कर देर रात तक अपने राज्य की सीमा और संस्कारधानी पहूंच गये वहां विश्राम किया और पुनः दुसरे दिन प्रातः निकल कर अपने कर्मभूमि का स्पर्श किया।

यात्रा में कुछ बातें विशेष ध्यान आयी की छत्तीसगढ़ से नागपुर तक जहाँ पेट्रोल पम्प व्यवस्थित हैं और केन्द्र की योजना अनुसार शौचालय, पेय जल जैसी प्राथमिक व्यवस्था दूरूस्त हैं तो वहीं आगे इसका हाल बहूत बुरा हैं।

महाराष्ट्र सरकार को पर्यटन क्षेत्रों के लिए कार्य करने की आवश्यकता हैं घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हिन्दूओं के प्रमुख तीर्थों में से एक है किंतु कहीं उसका मार्ग में विवरण दूरी आदि का विवरण नहीं हैं। अन्य भी कुछ बातें यात्राओं के लिए उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से बहूत कमजोर हैं।

शालीन साहू
एम. ए नेट (हिन्दी)
बलौदा बाजार (छत्तीसगढ़)

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