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कठोपनिषद में यम और नचिकेता का संवाद

आचार्य ललित मुनि

कठोपनिषद भारतीय दर्शन की एक अत्यंत गूढ़ और प्रेरणादायक रचना है, जिसमें यमराज और बालक नचिकेता के बीच हुआ संवाद आत्मा, मृत्यु, मोक्ष और ब्रह्मविद्या जैसे गंभीर विषयों पर प्रकाश डालता है। यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा से सम्बद्ध है और मुक्ति के ज्ञान का एक अत्यंत उच्च स्तर पर विवेचन करता है। नचिकेता की सत्यनिष्ठा, जिज्ञासा और वैराग्य इसे एक अद्वितीय आध्यात्मिक ग्रंथ बनाते हैं। इस संवाद की कथा और दर्शन को क्रमबद्ध और संदर्भ सहित विस्तार से समझें।

1. कथा का प्रारंभ: नचिकेता का आत्म-समर्पण

ऋषि वाजश्रवस् ने स्वर्गलोक की प्राप्ति के लिए विश्वजित यज्ञ का आयोजन किया और अपनी सम्पत्ति का दान किया। लेकिन यह दान मात्र एक औपचारिकता बन गया, क्योंकि वे बूढ़ी, निर्बल और दुर्गुणयुक्त गायों का दान करने लगे। यह देखकर उनका पुत्र नचिकेता, जो 8–12 वर्ष का तेजस्वी और सत्यप्रिय बालक था, चकित हो उठा।

नचिकेता ने सोचा:

“हीन गौओं का दान देकर पिता कौन-सा पुण्य प्राप्त करेंगे?”

वह बार-बार अपने पिता से प्रश्न करने लगा:

“कस्मै मां दास्यसि?” (हे पिताजी! आप मुझे किसे दान करेंगे?)

पुनः पूछे जाने पर वाजश्रवस् क्रोधित होकर बोले:

“मृत्यवे त्वा ददामि” (मैं तुझे मृत्यु को दे दूँगा।)

नचिकेता ने इसे पितृ आज्ञा मानकर स्वीकार किया और मृत्यु के लोक यानि यमलोक की ओर प्रस्थान किया।

2. यमलोक में प्रतीक्षा और यमराज का स्वागत

नचिकेता जब यमलोक पहुँचा, तब यमराज वहाँ उपस्थित नहीं थे। नचिकेता ने तीन दिन और रात बिना अन्न-जल के यम के द्वार पर प्रतीक्षा की। जब यम लौटे तो उन्होंने अपने घर में अतिथि का समुचित सत्कार न कर पाने को बड़ा अपराध माना।

यमराज ने नचिकेता से क्षमा मांगी और उसे तीन वरदान देने का वचन दिया — एक-एक प्रत्येक दिन के लिए।

3. नचिकेता के तीन वरदान

(1) पहला वरदान – पिता की प्रसन्नता

“स्वस्ति मेऽस्तु पिता मे स्यादुपरि मेनृर्त्यतां मन:”

नचिकेता ने यम से पहला वर माँगा कि जब वह पिता के पास लौटे तो वे क्रोध त्याग कर प्रसन्न हो जाएं और उसे देखकर संतोष का अनुभव करें।
(संदर्भ: कठोपनिषद, 1.1.11)

फल: यमराज ने वरदान दिया कि वाजश्रवस् पुत्र को देखकर प्रसन्न होंगे और उनके हृदय में कोई चिंता नहीं रहेगी।

(2) दूसरा वरदान – स्वर्ग की अग्निविद्या

नचिकेता ने दूसरा वरदान माँगा — वह अग्निविद्या जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके। यमराज ने उसे वह यज्ञ बताया जिससे मनुष्य स्वर्ग लोक प्राप्त कर सकता है।

यह अग्नि-विद्या बाद में “नचिकेताग्नि” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
(संदर्भ: कठोपनिषद, 1.1.14–19)

फल: यमराज ने यज्ञ की विधि सिखाई और कहा कि जिसने इसे जान लिया, वह पुनर्जन्म से मुक्त होकर स्वर्ग में प्रतिष्ठित होता है।

(3) तीसरा वरदान – आत्मा और मृत्यु का रहस्य

यह सबसे गूढ़ प्रश्न था, जो इस संवाद का केंद्र बिंदु है।

नचिकेता ने यम से पूछा:

“एतद्विदित्वा मुनयो मोदन्ते — कृपया मुझे वह ज्ञान दीजिए जो मृत्यु के पार सत्य को प्रकट करता है।”
(कठोप. 1.1.20)

4. यम की परीक्षा और नचिकेता की दृढ़ता

यमराज नचिकेता की जिज्ञासा की गहराई को परखना चाहते थे। उन्होंने उसे कई सांसारिक सुखों का प्रस्ताव दिया — दीर्घायु, धन, रथ, कन्याएँ, संगीत आदि।

पर नचिकेता अडिग रहा। उसने कहा:

“अव्ययेन तु मा मोघं कुरु — इन क्षणभंगुर सुखों से मुझे संतोष नहीं है।”

5. यम द्वारा आत्मा और ब्रह्मविद्या का उपदेश

यमराज ने आत्मा के स्वरूप और ब्रह्मज्ञान का विवेचन करते हुए नचिकेता को गूढ़ उपदेश दिया:

(i) आत्मा का स्वरूप:

“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
(आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है; यह नित्य, शाश्वत और अजर-अमर है।)
(कठोप. 1.2.18)

(ii) श्रेय और प्रेय का विवेक:

मनुष्य के जीवन में दो मार्ग होते हैं:

  • श्रेय: कल्याण का मार्ग

  • प्रेय: प्रिय वस्तुओं का मार्ग

“श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यं एतः…”
(ज्ञानी व्यक्ति श्रेय का चयन करता है, जबकि मूढ़ प्रेय में फँस जाते हैं)
(कठोप. 1.2.1–2)

(iii) आत्मा का रूपक – रथ रूपक:

  • शरीर = रथ

  • आत्मा = रथी (स्वामी)

  • बुद्धि = सारथी

  • मन = लगाम

  • इंद्रियाँ = घोड़े

“आत्मानं रथिनं विद्धि…”
(यह उपमा आत्मा को जानने के लिए अत्यंत उपयोगी है)
(कठोप. 1.3.3–9)

(iv) आत्मज्ञान की प्राप्ति:

यह ज्ञान केवल गुरु, ध्यान, संयम और वैराग्य से संभव है।

“नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो…”
(यह आत्मा न तो वाक्पटुता, न बुद्धिमत्ता से प्राप्त होती है; यह उसी को प्राप्त होती है जो इसे प्राप्त करना चाहता है।)

6. नचिकेता को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति

यमराज के उपदेश को नचिकेता ने पूर्ण श्रद्धा और तल्लीनता से सुना। अंततः उसे आत्मा का बोध हुआ।

“नचिकेता मृत्यु के पार सत्य को जान गया।”
— यही इस उपनिषद का चरम संदेश है: मृत्यु के भय के पार जाकर आत्मा के नित्य स्वरूप का ज्ञान ही मोक्ष है।

कठोपनिषद न केवल आत्मा और मृत्यु के रहस्य को उद्घाटित करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए साहस, जिज्ञासा, वैराग्य और गुरु-शरण अनिवार्य हैं।

नचिकेता एक आदर्श साधक है — जिसने यम जैसे मृत्यु के देवता से भी सत्य को जानने की जिद की और अंततः ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर अमरत्व का अनुभव किया।