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विश्व पर्यावरण दिवस और प्रकृति के प्रति हमारा कर्तव्य

रेखा पाण्डेय (लिपि)

पर्यावरण अर्थात वह सभी मौलिक तत्व और परिस्थितियां एवं वातावरण जो हमारे चारों ओर विद्यमान हैं। प्रकृति एवं प्राकृतिक शक्तियों का वह समुच्चय जिसमें भौतिक, जैविक, सामाजिक, सांस्कृतिक इत्यादि का अत्यंत सुसंगठित तालमेल होता है। प्रकृति ,पर्यावरण और मानव का परस्पर अटूट संबंध है। मानव की चेतना, संवेदना अर्थात बुद्धि-विवेक से प्रकृति के महत्व को समझा जा सकता है। मानवीय क्रियाकलापों का पूर्ण प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है। इनमें असन्तुलन होते ही पर्यावरण मे दुष्प्रभाव स्वमेव ही दृष्टिगोचर होने लगता है।

इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण कोविड काल में देखने मिला। जब मानव ने अपने को घरों में समेट लिया था। तब प्रकृति के सुंदर स्वरूप के दर्शन हुए। कहते हैं प्रकृति स्वयं ही अपना श्रृंगार करती है। नदियाँ स्वच्छ हो गईं, समस्त पर्यावरण में मानव का अनावश्यक हस्तक्षेप बन्द होने से वातावरण शुद्ध हो गया था। पर्यावरण प्रदूषण का कारण स्पष्ट है कि मनुष्यों ने अपने भौतिक विकास के लिए जाने- अनजाने में पर्यावरण को प्रदूषित किया है।

पर्यावरण पंचतत्व भूमि, गगन, वायु, अग्नि, जल से निर्मित जगत है। जो अभिन्न और परस्पर आश्रित एवं सन्तुलित हैं जिसमें मानव जीवन का अस्तित्व और विकास सम्भव हुआ। प्रकृति के संसाधनों का दोहन, ग्लोबल वार्मिंग, परमाणु हथियारों का प्रयोग, विकास के लिए किए गए अविष्कारों से पर्यावरण प्रदूषण चुनौती के रूप में खड़ा है। जल प्रदूषण, वायु, मृदा और ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण और जैव विविधता को क्षति पहुँच रही अतः इसकी सुरक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ पर्यावरण के प्रति प्रत्येक व्यक्ति को उसके उत्तरदायित्वों का बोध करने उद्देश्य से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।

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सर्वप्रथम स्वीडन ने 1968 में संयुक्त राष्ट्र को इस तरह का सम्मेलन आयोजित करने का सुझाव दिया। 1969 में संयुक्त राष्ट्र ने तीन वर्ष बाद स्वीडन में पर्यावरणीय मुद्दों पर आधारित एक सम्मेलन में आयोजित करने की सहमति व्यक्त की। इस सम्मेलन का नेतृत्व कनाडाई राजनायिक मौरिस स्ट्रॉन्ग ने किया। इन्होंने तेल और खनिज उद्योग में काम किया था। अंततः चार वर्षों की तैयारियों और 30,000,000 डॉलर खर्च करने के बाद 1972 में यह सम्मेलन हुआ जिसमें विश्वभर के नेताओं ने भाग लिया। तब WED बनाया गया।

मौरिस स्ट्रांग ने समुद्री प्रदूषण, मानव जनसंख्या वृद्धि और ग्लोबल वार्मिंग के विषय पर चर्चा की। फिर दो वर्ष पश्चात 1974 में पहला विश्व पर्यावरण दिवस स्पोकन, वाशिंगटन में मनाया गया। पहले WED को ’केवल एक पृथ्वी’ के नारे के साथ मनाया गया। इस सम्मेलन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने भी भाग लिया था। इसका उद्देश्य पर्यावरण  के प्रति जागरूकता बढ़ाना एवं पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना था।

19 नवम्बर1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। 1987 को प्रत्येक वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी के लिए अलग अलग देश को चुना गया। WED पर्यावरण संबंधी विभिन्न समस्याओं जैसे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, अवैध वन्य जीव व्यापार, सतत उपभोग, समुद्र स्तर में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा जैसे विषयों के प्रति जागरूकता बढ़ाने एवं समस्याओं के निराकरण के लिए एक मंच के रूप में विकसित हुआ है। WED उपभोग पैटर्न और राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में बदलाव लाने को प्रेरित करता है।

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2020 में थीम जैव विविधता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर आधारित थी। जिसका नारा ‘प्रकृति के लिए समय’ था। इसका उद्देश्य प्रकृति में हो रही पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों की हानि एवं विलुप्त होने के संकट से बचाना था। ताकि पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बना रहे। प्रत्येक वर्ष भिन्न-भिन्न विषयों पर ध्यानआकर्षित कर उस दिशा में कार्यनीतियों को निर्धारित कर ठोस कदम उठाए जाते रहे हैं। जो प्रत्येक व्यक्ति समुदाय, शासन-प्रशासन को कार्यान्वित हेतु प्रेरित करता है।

2025 में विश्व पर्यावरण दिवस प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने की दिशा में केंद्रित है क्योंकि वर्तमान में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग पूरे विश्व के लिए चुनौती बनकर विकराल समस्या के रूप में सामने आ रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण पूरी दुनिया में फैल चुका है। इस समस्या के निवारण के लिए व्यापक स्तर पर अभियान और नीतियों की आवश्यकता है। मनुष्य के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं से लेकर गांव एवं शहरों की  गलियों, सड़कों, नदियों, तालाबों, पहाड़ों, जंगलों, धार्मिक स्थलों एवं समस्त पर्यटन स्थलों में सर्वत्र प्लास्टिक का ही उपयोग एवं इससे फैला प्रदूषण दिखाई देता है। ऐसा प्लास्टिक जो कभी गलता नहीं और जलने से जहरीली गैस उत्पन्न करता है और पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं की मृत्यु का कारण बन रहा है। जिससे जैव विविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र में संकट का कारण भी बन रहा है।

प्रदूषित पर्यावरण, औद्योगिकी करण,  नगरीकरण, धरती का बढ़ता तापक्रम, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, पिघलते ग्लेशियर, बढ़ता समुद्र जल स्तर, रासायनिक  पदार्थों के उपयोग ने पूरी धरती को संकट में डाल दिया है। सर्वसुविधा युक्त  मानी जाने वाली प्लास्टिक ने समस्त जीवितों के जीवन को खतरे में डाल दिया है क्योंकि इसका प्रतिकूल प्रभाव कृषि से लेकर प्रत्येक क्षेत्र में पड़ रहा है।

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भारत में केंद्रीय पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसे राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन के लिए एक अभियान “एक राष्ट्र एक मिशन प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें” के रूप में प्रारंभ किया है। इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक जागरूकता और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति कार्यवाही को प्रोत्साहित करना है। “प्लास्टिक से बढ़ता खतरा फैलता प्रदूषण” इस वर्ष की थीम है। जिसमें प्लास्टिक के उपयोग, प्लास्टिक के अपशिष्ट के उपयोग उत्पादन में कमी करना, प्लास्टिक कचरे का पृथक्करण, संग्रहण, पुनर्चक्रण के माध्यम से प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करना, एकल प्लास्टिक उपयोग के लिए दीर्घकालिक विकल्पों के विकास को प्रोत्साहन प्रदान करता है।

यह अभियान भारत में पर्यावरण के लिए जीवन शैली के साथ पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के लिए भारत की अटूट प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वृक्षारोपण एवं वृक्षों की सुरक्षा करना, पर्यावरण के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग कम से कम करना, स्वच्छताअभियान, शिक्षा, जागरूकता अभियान द्वारा अनुकूल जीवन शैली की ओर प्रेरित करने की आवश्यकता है।

“धरती को स्वर्ग बनाना है, तो वृक्षों को बहुत लगाना है।

यह धरती अपनी माता है, इसे रहने योग बनाना है।

पर्यावरण से सबका नाता है,जीवन सबको भाता है।

जन अभियान चलाना है, हमें जागरूकता फैलाना है।

प्रदूषण को हटाना  है, हमें विश्व पर्यावरण दिवस मनाना है।

स्वच्छता अभियान शरू करो,प्लास्टिक जीवन से दूर करो।”

 

छत्तीसगढ़ निवासी लेखिका हिन्दी विषय की प्राध्यापक हैं।