सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी विपिन चंद्र पाल का पुण्य स्मरण
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में दो प्रकार की विभूतियाँ हुईं हैं। एक वे जिन्होंने स्वयं संघर्ष किया और बलिदान दिया एवं दूसरे वे जिन्होंने स्वयं तो संघर्ष किया ही साथ ही क्रांतिकारियों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की। सुविख्यात क्राँतिकारी विभूति विपिन चंद्र पाल ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी है जिन्होंने बंगाल में स्वाधीनता संग्राम की गति तेज की और स्वयं भी तीखा संघर्ष किया।
उन दिनों कांग्रेस और अन्य संस्थाओं में भारतीय जनों में स्वत्व जगाने की बात तो आ गई थी और गीत वंदेमातरम भी सार्वजनिक रूप से गाया जाने लगा था। फिर भी सारा जोर नागरिक अधिकार और समानता के व्यवहार पर था और जब क्राँतिकारियों के शस्त्र गरजने लगे तो अहिसंक आँदोलन कारियों ने थोड़ी दूरी बनाई। तभी अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल विभाजन का निर्णय लिया। तब दोनों धाराएँ समीप आईं। इसके अग्रणी नेताओं में विपिन चंद्र पाल हैं।
उनका जन्म 7 नवंबर 1858 को बंगाल के हबीबगंज जिले में हुआ । यह क्षेत्र अब बंगलादेश में है। विपिनचंद्र पाल आरंभ से ही एक संकल्पवान जीवन जीने के लिये जाने जाते हैं। वे जो निर्णय कर लेते थे उस पर अंतिम क्षण तक अटल रहते थे। भारतीय गरिमा और स्वतंत्रता के लिये उन्होंने दोनों प्रकार के संघर्ष किये। वे अहिसंक आँदोलन में सक्रिय हुये और क्राँतिकारी आँदोलन में भी।
स्वतंत्रता संघर्ष के साथ उन्होंने भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के लिये एक सशक्त सामाजिक अभियान भी चलाया। उनकी स्पष्टवादिता इस आक्रामक संघर्ष से परिवार में मतभेद बढ़े तो उन्होंने परिवार से नाता तोड़ लिया। वे अपनी धुन और संकल्प के पक्के थे। तब उन्होंने गाँधी जी के भी कुछ विचारों का विरोध किया था।
वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र सेवी नेता होने के साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व ओजस्वी वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक के साथ उनकी जोड़ी सुप्रसिद्ध थी। इन त्रिदेव कहा जाता था “लाल, बाल, और पाल।
इन त्रिदेवों ने पूरे भारत में भ्रमण कर अपने ओजस्वी विचारों और अभिव्यक्ति के चलते अंग्रेजों की नींव हिला दी थी। त्रिदेवों के इस समूह को “गरम दल” की संज्ञा दी गई। विदेशी विचारों, वस्तुओं और वस्त्रों के वहिष्कार करने का आव्हान सबसे पहले इन्ही त्रिदेवों ने किया था इसका आरंभ करने वाले विपिन चंद्र पाल ही थे।
इनमें ब्रिटेन में तैयार उत्पादों, विदेशी मिलों में तैयार कपड़ों की होली सबसे पहले विपिन चंद्र पाल जी के आव्हान पर ही जलाई गई। इसके अतिरिक्त उनके आँदोलन में औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि थे। जीवन भर राष्ट्रहित के लिए संघर्ष करने वाले पाल का 20 मई 1932 को निधन हो गया। भारत सरकार ने उन की स्मृति में सन १९५८ में डाकटिकट जारी किया है।
लेखक पत्रकार एवं सुप्रसिद्ध टिप्पणीकार हैं।