विकास नारदा : घुमक्कड़ी से ही जीवन में नमक है।
1.आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन के शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताए कि वह समय कैसा था?
अपने मुहल्ले की तंग गली में स्कूल से आ कर क्रिकेट खेलना और गली के दोनों किनारे पर बह रही गन्दे पानी की नालियों में गिरी गीली गेंद को बेझिझक उठाना, 24 इंच के बड़े से साइकिल को कैंची मार कर चलते हुए, शहतूत के पेड़ से लाल-लाल शहतूतिआं तोड़ खाने जाना और जो समय पढ़ने-खेलने से बच जाता उसमें चित्रकारी करना।बचपन की एक कटु याद भी आप संग सांझा करना चाहता हूँ ललित जी, छठी कक्षा में किसी दूसरे स्कूल से आई मेहमान अध्यापिका के साइकिल की चाबी के छल्ले का गुम हो जाना और कक्षा के शरारती व बलवान बच्चों द्वारा अपने आप को बचाते हुए, मुझ कमजोर बच्चे को चोर घोषित करना, बगैर किसी को बताए मैं घर छोड़, साइकिल पर सारा दिन घर से दूर जाता रहा और अंधेरा होते ही पुन: घर लौट आया, पर किसी से भी कुछ ना बोल पाया, कई दिनों तक अंदर ही अंदर घुटता रहा!
2. वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन है?
@ कॉलेज की पढ़ाई के बाद अपने ख़ानदानी व्यवसाय थोक दवा विक्रेता के कारोबार से जुड़ गया, और मज़े की बात बताता हूँ कॉलेज के दिनों में मुझे बाड़ी-बिल्डिंग का ऐसा जुनून लगा कि किताबें हाथों में भारी लगने लगी और लोहे के भारी-भरकम डमवल हल्के! कसरत करने की ऐसी हद कि पानी भी चबा कर पीता था, क्योंकि मुझे ताकतवर बनना था। परिवार में मेरे पिता डाक्टर कृष्ण गोपाल नारदा, माता श्रीमती संगीता नारदा, पत्नी भावना नारदा, बेटी अनन्या, बेटा प्रथमेश और दो छोटी बहनें है जिनकी शादी हो चुकी है और वे अपने घर-परिवार में मस्त व व्यस्त हैं।
3. घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
@ घुमक्कड़ी का बीज मुझ में मेरी पत्नी ने ही बोया, विवाह के तीन साल बाद 2003 सन् में हमारी विवाह वर्षगाँठ 2 अक्टूबर आने को थी, तो श्रीमती ने सुझाया कि चलो इस बार अपनी वर्षगाँठ बाहर घूमते हुए मनाते है और हम निकल पड़े एक सप्ताह के लिए कुल्लू-मनाली और आज तक 2017 आ गया, हमने फिर कभी अपने विवाह की सालग्रिह घर में नही मनाई, हर बार कहीं ना कहीं घूम ही रहे होते है जी।
4. घुमक्कड़ी से आप क्या समझते है?
@ सबसे पहली बात घुमक्कड़ी ने मुझ अन्तर्मुखी को “बहिमुर्खी ” बनना दिया, जो कल तक बड़े शहर में ऊँची इमारतों की लिफ्ट में चढ़ने का संकोची, सीढ़ियाँ ही चढ़ पड़ता था, आज घुमक्कड़ी की वजह से हवाई जहाज भी चढ़ गया। हर समय पीछे-पीछे रहने वाला विकास नारदा, आज घुमक्कड़ी की वजह से ही नेतृत्व करने का सामर्थ्य रखता है और आत्मविश्वास इतना कि अकेला ही हिमालय की दुर्गम पदयात्राएँ कर जाता है जी।
5. उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
@-कॉलेज के दिनों में हमारा टूर मनाली-मणिकर्ण के लिए गया और भून्तर से आगे पार्वती नदी के किनारे इतने बड़े-बड़े पहाड मैने अपने में पहली दफा देखे थे और देखते ही इनसे उम्र भर के लिए मुहब्बत हो गई। बस की खिड़की से सिर बाहर निकाल, इन बेहद ऊँचे पहाडों को अपनी स्मृति में बांध रहा था और वीडियो कोच उस बस में “त्रिदेव” फिल्म चल रही थी, गाना चल रहा “ओए-ओए, तिरछी टोपी वाले बाबू भोले भाले….!” ललित जी, जब भी मैं इस गीत को सुनता हूँ तो वो वर्षों पुरानी स्मृति मुझे पुन: याद आ जाती है। तब से पहाड मेरी कमजोरी बन गया, देश के किसी भी प्रांत में घुमक्कड़ी के लिए जाऊँ तो प्राथमिकता वहाँ के पहाड़ी क्षेत्र को ही देता हूँ।
6. घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठातें हैं?
@ घुमक्कड़ी के दौरान परिवार के संग सामंजस्य बिठाने का सवाल ही नही पैदा होता, क्योंकि घूमना परिवार के संग ही तो होता है केवल पर्वतारोहण को छोड़ कर। मैने घुमक्कड़ी के लिए सारे समय-सारणी निर्धारित की हुई है, प्रत्येक वर्ष की शुरुआत मैं अपने साढू़ भाई विशाल रतन जी के संग हिमालय में शीतकालीन ट्रैकिंग से करता हूँ। फिर बच्चों के सालाना पेपर खत्म होते ही फिर से निकल पड़ता हूँ बीबी-बच्चों को संग लेकर। वर्ष के जून महीने के अंत में पंजाब में हम व्यापारी चार छुट्टियाँ कर लेते हैं और मैं अपने माता-पिता, बीबी-बच्चों और दोनों छोटी बहनों-बहनाईयों व भानजा-भानजियों को साथ ले पर्वतीय क्षेत्र में निकल पड़ता हूँ ठंड तलाशने, जुलाई-अगस्त आते ही पर्वतारोहण के कीड़े जाग उठते हैं, तो फिर से साढू़ साहिब के साथ हिमालय की किसी चोटी पर ग्रीष्मकालीन ट्रैकिंग और फिर आता सितम्बर-अक्तूबर हमारे विवाह की वर्षगाँठ, जो हमेशा घूमते हुए ही मनाई। ललित जी, ये सब टूर तो फ़िक्स है जिनका निर्वाह मैं कई वर्षों से लगातार करता आ रहा हूँ। इनके अलावा पूरे वर्ष में कई सारे एक दिवसीय भ्रमण भी होते हैं आस-पास के, जिनका कोई लेखा-जोखा नही।
7. आपकी अन्य रुचियों के साथ तीन घुमक्कड़ों के नाम बताइए जिनके घुमक्कड़ी लेखन ने आपको प्रभावित किया?
@ ललित जी, सच बोलूँ तो 6 महीने पहले मुझे अहसास हुआ कि मैं एक घुमक्कड़ हूँ, जबकि 15 वर्षों से लगातार भारत-भ्रमण पर हूँ। यह अहसास तब हुआ जब फेसबुक पर घुमक्कड़ी दिल से नामक ग्रुप से जुड़ा और देश के कई सारे घुमक्कड़ों से रुबरु हुआ, फेसबुक पर भी मैं सिर्फ 3 साल पहले ही प्रकट हुआ था। धीरे-धीरे फेसबुक पर अपनी यात्राओं के खिंचे चित्र डाल, उन्हें शब्द देने लगा। जो धीरे-धीरे मेरी चित्रकथाओं के रुप में विस्तार कर गए। घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप में ही मैं ब्लॉग लेखन नाम से परिचित हुआ और इसी ग्रुप में एक फेसबुक मित्र ने मेरा ब्लॉग भी बना दिया जिसे मैं धीरे-धीरे चलाना सीख गया। अब उसी ब्लॉग पर अपनी यात्राओं की साप्ताहिक चित्रकथाओं को धारावाहिक के रुप में शब्दों से सजाता हूँ । मेरे ब्लॉग का नाम – मेरा घुमक्कड़ ग्रंथ है।
जहाँ तक तीन घुमक्कड़ों के नाम बताने का प्रश्न है, मैं सदी के महान घुमक्कड़ “महापंडित राहुल सांस्कृतयान जी” के नाम से अभी पिछले साल ही परिचित हुआ हूँ जी, यात्रा-वृतांत लेखन क्षेत्र में मैं बिल्कुल नया पाठक और लेखक हूँ। कुछ समय बाद ही इस प्रश्न के साथ न्याय कर पाऊँगां जी, बाकी घुमक्कड़ी के अलावा अन्य रुचियों से मेरा व्यक्तित्व बेहद धनवान है। जिनमें मुख्य रुचियाँ बाँसुरी वादन और ताईक्वानडों (कोरियन मार्शल आर्ट) है, जिसमें मैं ब्लैक-बैल्ट हूँ।
8. क्या आप घुमक्कड़ी को जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं…?
@ जी हां ललित जी, घुमक्कड़ी के बिना जीवन ही क्या? जैसे बिन रविवार के सप्ताह, जैसे बिन फूलों के बंसत, जैसे बिन कोयल के सावन, जैसे बिन नमक के आचार। जीवन में नमक ही घुमक्कड़ी से है जी, अरे घुमक्कड़ी तो वो गोंद है जो हमे नये-नये रिश्तों के संग जोड़ जाती है, पल में ऐसा रिश्ता बना देती है, चाहे तो उन्हें उम्र भर निभा लो। घर से काम, काम से घर तो वो रुका हुआ पानी है, जो सड़ने लग जाता है। यात्राओं सी नदी बन बहते रहो उस समुद्र की ओर जिसे घुमक्कड़ सागर कहते हैं।
9. आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ-कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने को मिला?
@ मैं रोमांच हासिल करने ही तो हर बार हिमालय देव की शरण में जाता हूँ, हिमालय से रोमांच यानि ट्रैकिंग की शुरुआत मैने 2013 में 38 साल की उम्र में आरंभ की, जब मैं अपने साढू़ भाई विशाल रतन जी के साथ ऐसे ही मुँह उठा कर नव वर्ष के आगमन समय धौलाधार हिमालय में जमी हुई करेरी झील देखने चढ़ गया और बर्फ में फंस गया, बीच रास्ते में हमने एक गुफा में आग जला कर अपनी जान बचाई और सुबह वापस नीचे उतरे.
ऐसे हर बार ही प्रत्येक ट्रैकिंग पर हिमालय देव मुझे रोमांच के शिखर पर ले जाते हैं और इन सभी पदयात्राओं में मैं सबसे रोमांचक यात्रा अपनी लमडल झील की यात्रा को कहूंगा, कोई जानकारी नही ट्रैक के विषय में और चल दिया अपने छोटे भाई को ले कर हिमालय में, रास्ता भूल जंगल में खो जाना, अंधेरा होने से एक दम पहले भेड़े चराने वाले गद्दी का मुझे चमत्कारिक ढंग से मिलना और अपने साथ हमें अपने गद्दी डेरे पर ले जाना, छोटे भाई के पैर पर चोट लगने के उपरांत मुझे लेकर गज पास शिखर को पार कर लमडल झील पर ले जाना, मेरे जीवन की वो यात्रा जिसमें मैं हर क्षण नये अनुभव जी रहा था व उम्र भर के लिए गद्दी राणा चरण सिंह और मैं मित्रता के बंधन में बंध गए।
मेरी एक और बुरी आदत है ललित जी, मैं जिस भी यात्रा पर पहली बार जाता हूँ, उस की खोज-छानबीन इंटरनेट पर ज्यादा नही करता, उस स्थान के चित्र-वीडियों देखने से बचता हूँ,क्योंकि मेरी तमन्ना होती है कि जो भी देखूँ उसे मेरी आँखें पहली बार देखे, किसी भी प्रकार की एडवास बुकिंग नही करता, बस बहता सा चल देता हूँ फकीरों की तरह, यह क्या भी किसी रोमांच से कम है, जी।
छतीसगढ़, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व पूर्वी भारतीय प्रदेशों की यात्राएँ अभी मेरी प्रतीक्षा सूची में है, बाकी सब प्रदेशों की मिट्टी चूम चुका हूँ। मैं अक्सर बहुत गर्व से कहता हूँ कि मेरे बेटे ने सात साल की उम्र में ही देश की चारों दिशाओं में स्थापित चार धाम की यात्रा सम्पन्न कर ली।
10. घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश है?
@ घुमक्कड़ कहाँ किसी की सुनते है, बस मेरी तरह सुनाते है अपने अनुभवों व अनुभूतियों को ललित जी। मैं तो उन लोगों को संदेश देना चाहता हूँ जो घुमक्कड़ नही है, कि घुमक्कड़ी के लिए दो बातों का होना बेहद जरुरी है। वो दो प्रचलित बातें अतिरिक्त पैसा और पर्याप्त समय तो है ही, इनसे भी ऊपर की ये दो अमुल्य बातें है, खुद के घुटने और आपके बड़े-बुजुर्ग। घुटने आपको कहीं भी ले जा सकते हैं और बड़े-बुजुर्ग आपके जाने के बाद आपका घर-कारोबार संभाल लेते हैं, यदि इन दोनों में से एक बात भी आपके जीवन से चली जाए, तो घुमक्कड़ी के केवल ख्वाब ही आते हैं। इसलिए जिन के पास ये दोनों बातें कायम है, उन्हें इसका भरपूर फायदा व आंनद उठाना चाहिए जैसे मैं उठाता हूँ, जी।
दोस्तों, सम्पूर्ण भारत बहुत ही खूबसूरत है, इसलिए तो विदेशी यहाँ घूमने आते हैं और मै अपना पासपोर्ट नही बनवाता क्योंकि मुझे पहले अपना देश देखना है।
विकास भाई
मस्त जवाब दिये ।
बेफिक्री से ।
बेहद धन्यवाद….. संतोष मिश्रा जी।
आपके घुमक्कड़ी का तरीका एकदम अलग है, प्रायोगिक है।
बहुत विस्तार से जाना आपको विकास जी आपको सही कहा आपने घुम्मकड़ी जीवन मे नमक जैसी ही है
बढ़िया साक्षात्कार। व्यवसाय, पारिवारिक सामंजस्य के साथ घुमक्कड़ी का बढ़िया तालमेल और इसे एक एडव्हेंचरस कार्य ही कहा जाय, सुंदर जानकारी प्राप्त। भाई जी की प्रस्तुति के बारे में कुछ लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान…
बधाई भाई को..।
सबसे पहले ललित जी का आभार व्यक्त करूँगा जिनके माध्यम से हम काफी घुमक्कड़ व्यक्तियों को जान सके। विकास जी शादी की वर्षगाँठ पर बहुत बहुत बधाई। आज आपके बारे में बहुत कुछ जाना। अच्छा लगा आपसे मिलकर । वैसे आप पहले इंसान देखे जो दवाई के कार्य करते हुए इतना घुम रहे है। नही तो दवाई का कार्य बहुत व्यस्त रखने वाला होता है।
बधाई हो विकास जी…. आपके बारे में पहली बार जानकार अच्छा लगा… ललित सर से दिल से आभार !
बहुत बढ़िया साक्षात्कार ललित जी।
वास्तव में बधाई के पात्र हैं ओर धन्यवाद के भी। क्योंकि आप घुमक्कड़ों के निजी जीवन से हम सबको परिचित करवाते हैं और
विकास नारदा भाई साहब, एक घुमक्कड़ में जो सभी लक्षण होने चाहिए वह सब आपके अंदर हैं, इसीलिए आप एक महान घुमक्कड़ है
ललित भाईजी का बहुत आभार है कि नये घुमक्कड़ों के मार्गदर्शन के लिए, उनकी हौसलाफजायी के लिए ऐसे उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं । नारद भाईजी के साहस का क्या कहना, उनके जीवन में घुमक्कड़ी से आये बदलाव एक मील का पत्थर है । बहुत खूब…
विकास जी आपकी जीवनी का अंश पढ़कर जीवन की गहनता का पता चलता है। बहुत़ ही बेहतरीन जवाबदेही की आपने। मैं तो आपका परमानेन्ट फैन हो गया। जय़ महादेव