\

दशहरे की अनूठी परंपराएँ बस्तर से लेकर कुल्लू तक

भारत में विजयादशमी का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है, इसे किसी न किसी रुप में उत्सवपूर्वक मनाया जाता है। इसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, भारत का एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है। यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और नवरात्रि के नौ दिनों के उपरांत आता है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है क्योंकि यह अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।

प्राचीन काल में वर्षा की अधिकता के कारण चातुर्मास तक कृषि कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य यथा क्षत्रियों की विजय यात्रा एवं वैश्यों की व्यापारिक यात्रा रुकी हुई रहती थी क्योंकि यातायात के साधनों एवं राजमार्गों की बहुतायतता नहीं थी। वर्षा काल के उपरांत इन यात्राओं को पुन: प्रारंभ करने की तैयारी विजयादशमी तक की जाती थी।

क्षत्रिय वर्ग अपने आयुधों एवं औजारों की साज सज्जा एवं स्वच्छता का ध्यान तथा वैश्य वर्ग अपने बही खातों के साथ यातायात के साधनों को दुरुस्त करने की तैयारियाँ आश्विन सुदी प्रतिपदा से प्रारंभ कर आश्विन सुदी विजयादशमी तक पूर्ण कर लिया करते थे। इस काल में विजयादशमी को यज्ञशाला को सुसज्जित कर चतुरंगिणी सेना जिसमें अश्व, गज, रथ एवं पदाति को पंक्ति में खड़ा करके उनकी नीरांजना (आरती) की जाती थी। इसका उल्लेख महाकवि कालिदास अपने रघुवंश महाकाव्य में महाराज रघु की नीराजना विधि का उल्लेख निम्न पद्य में करते हैं –

तस्मै सम्यग्द्युतो वहिनद्युतो वहिनर्वाजिनीराजनाविधौ।
प्रदक्षिणार्चिवर्याजेन हस्तेनैव जयं ददौ। (रघुवंश चतुर्थ सर्ग 24 श्लोक)
तात्पर्य यही है कि विजयादशमी के दिन दिग्विजय यात्रा एवं व्यापार यात्राएं निर्बाध गति से प्रारंभ हो जाया करती थी। इस पर्व पर सभी एक दूसरे से प्रेम भाव से मिलते थे। एक दूसरे के प्रति मनोमालिन्य समाप्त कर सर्व के कल्याण की कामना करते थे।

कालांतर में इस पर्व के साथ के साथ भगवान राम द्वारा रावण वध एवं लंका विजय भी जुड़ गई तथा विजयादशमी की परम्परा का हिस्सा बन गई।

विजयादशम्याः पर्वणः भवतां भवतीनां च सर्वेषां कृते हार्दिक्यः शुभकामनाः। विजयादशमी विजयताम्।।

इसके साथ ही भारत के विभिन्न स्थानों पर दशहरा पर्व मनाने की अनूठी परम्पराएं भी हैं, कहीं अस्त्र शस्त्रों की पूजा के रुप में मनाया जाता है तो कहीं देवी पूजा के रुप तो कहीं रावण का पुतला दहन करने की परम्पराएं हैं। छत्तीसगढ़ अंचल में यह पर्व धूम धाम से मनाया जाता है। यहाँ बस्तर का दशहरा प्रसिद्ध है जिसकी तैयारी दशहरा से 75 दिनों पूर्व प्रारंभ हो जाती है तथा नौ दिनों तक विभिन्न रस्मों को पूरा किया जाता है, जिस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। भारत के विभिन्न स्थानों मनाये जाने वाले दशहरा पर्वों पर एक दृष्टिपात करते हैं

1. कुल्लू दशहरा (हिमाचल प्रदेश)


कुल्लू का दशहरा भारत के सबसे प्रसिद्ध दशहरा उत्सवों में से एक है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना जाता है। यहां का दशहरा नवरात्रि के दसवें दिन नहीं बल्कि उसके बाद मनाया जाता है और यह पूरे सप्ताह चलता है। कुल्लू का दशहरा अपनी अनूठी देव परंपराओं, भव्य झांकियों और रंग-बिरंगी शोभायात्राओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां रघुनाथ जी की मूर्ति को नगर के बीचों-बीच लेकर जाया जाता है और इसका समापन ब्यास नदी के किनारे पर होता है।

2. मैसूर दशहरा (कर्नाटक)


मैसूर का दशहरा 400 साल पुराना उत्सव है और इसे भव्यता के लिए जाना जाता है। मैसूर का दशहरा विशेष रूप से मैसूर के महल को रोशनी से सजाने और हाथियों की सजावट के साथ निकलने वाली शोभायात्रा के लिए प्रसिद्ध है। यहां विजयदशमी के दिन देवी चामुंडेश्वरी की विशेष पूजा होती है और इसे पूरे कर्नाटक में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। राजा और रानी के शाही ठाट बाट में हिस्सा लेना इस उत्सव को अद्वितीय बनाता है।

3. वाराणसी का दशहरा (उत्तर प्रदेश)


वाराणसी में दशहरा उत्सव का खास महत्व है। यहाँ भगवान राम की लीला का मंचन पूरे वर्ष किया जाता है, लेकिन दशहरे के समय यह और भी विशेष हो जाता है। वाराणसी में रामनगर की रामलीला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यहां का उत्सव पारंपरिक तौर-तरीकों के साथ मनाया जाता है और यह भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाता है।

4. कोटा दशहरा (राजस्थान)


कोटा का दशहरा अपनी अनूठी सजावट और स्थानीय परंपराओं के कारण विशेष माना जाता है। यहां के दशहरे का प्रमुख आकर्षण भव्य मेला और विभिन्न प्रकार की झांकियां होती हैं। कोटा में दशहरे के अवसर पर रावण के विशालकाय पुतलों का दहन किया जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं। साथ ही, इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेला भी आयोजित होते हैं।

5. बस्तर दशहरा (छत्तीसगढ़)


बस्तर का दशहरा सामान्य दशहरे से काफी अलग है। यह दशहरा 75 दिनों तक चलता है और इसकी शुरुआत श्रावण मास से होती है। बस्तर के वनवासी समुदाय इस उत्सव में विशेष रूप से भाग लेते हैं और अपनी परंपराओं और लोक संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। यहां के दशहरे का संबंध राजा की शक्ति और देवी दंतेश्वरी की पूजा से है। यह बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

6. दिल्ली का रामलीला मैदान दशहरा (दिल्ली)


दिल्ली के रामलीला मैदान का दशहरा उत्तर भारत के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है। यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है, जो दशहरे का मुख्य आकर्षण होता है। देश के प्रमुख नेता और आम जनता इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं, जिससे इसका सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व और बढ़ जाता है।

7. फ़िंगेश्वर का दशहरा (छत्तीसगढ़)


फिंगेश्वर का दशहरा छत्तीसगढ़ के प्रमुख और भव्य दशहरे में से एक है, जिसकी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। फणिकेश्वर महादेव मंदिर, मौली माता मंदिर और पंचमंदिर जैसे धार्मिक स्थलों की महत्ता इसे विशेष बनाती है। मौली माता की कृपा से यह उत्सव फिंगेश्वर राजघराने द्वारा आयोजित होता है। जिसमें भव्य शोभायात्रा, मंदिरों में विशेष पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। राजमहल को विशेष रूप से सजाया जाता है, और उत्सव का समापन भव्य आतिशबाजी से होता है। फिंगेश्वर का दशहरा ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है, जिसे दूर-दूर से लोग देखने आते हैं।

8. जशपुर का दशहरा (छत्तीसगढ़)


जशपुर का दशहरा उत्सव ऐतिहासिक और रियासतकालीन परंपराओं का प्रतीक है। यहां भगवान बालाजी को क्षेत्र का राजा मानकर नवरात्रि के पहले दिन से दशमी तक विधिवत अनुष्ठान होते हैं। जशपुर राजपरिवार द्वारा बालाजी और कुल देवी मां काली की पूजा वैदिक और तांत्रिक विधियों से की जाती है, जिसमें बकरे की बलि दी जाती है। विजयादशमी के दिन राजा रणविजय सिंह जुदेव की अगुवाई में बालाजी की रथयात्रा निकलती है, शस्त्र पूजा होती है, और नीलकंठ पक्षी को उड़ा कर राज्य की समृद्धि की कामना की जाती है। रावण दहन और भव्य आतिशबाजी के साथ उत्सव का समापन होता है, जिसमें जनजातीय लोग उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

9. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विजयादशमी पर्व


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) दशहरे को विजयदशमी के रूप में मनाता है, जिसे संघ का स्थापना दिवस भी माना जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय और शक्ति की आराधना का प्रतीक है, जो संघ के आदर्शों के अनुरूप है। संघ इस दिन अपने स्वयंसेवकों के लिए शस्त्र पूजा, पथ संचलन (मार्च पास्ट) और शारीरिक प्रदर्शन जैसे कार्यक्रम आयोजित करता है। विजयदशमी को संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में संघ की स्थापना के दिन के रूप में चुना था, इसलिए यह संघ के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सरसंघचालक का वार्षिक उद्बोधन भी होता है, जिसमें देश, समाज और संघ से जुड़े मुद्दों पर मार्गदर्शन दिया जाता है।

इससे ज्ञात होता है कि दशहरा पर्व भारत में प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा है। राजे रजवाड़ों ने अपने शासन में इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया क्योंकि यह अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। यह हमें जीवन में सत्य और धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। इस दिन रावण के पुतले का दहन यह दिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अंत में सत्य की विजय होती है। भारत में हर जगह दशहरा अपने विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है, और यही विविधता इसे विशेष बनाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *