स्वातंत्र्य वीर सावरकर की दृष्टि में हिन्दुत्व और अखंड भारत की संकल्पना

वीर विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख विचारक, क्रांतिकारी, और लेखक थे। उनकी विचारधारा, जिसे उन्होंने “हिन्दुत्व” के रूप में परिभाषित किया, भारतीय राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकता की नींव बन गई। सावरकर का हिन्दुत्व न केवल धार्मिक पहचान तक सीमित था, बल्कि यह एक व्यापक राजनीतिक और सांस्कृतिक दर्शन था, जो भारत को एक सशक्त, एकीकृत, और अखंड राष्ट्र के रूप में देखता था। उनकी “अखंड भारत” की संकल्पना में भारत की भौगोलिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक एकता को पुनर्स्थापित करने का सपना निहित था।
सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ। उनके जीवन का प्रारंभिक काल ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों से भरा रहा। उन्होंने “अभिनव भारत” संगठन की स्थापना की और लंदन में “इंडिया हाउस” के माध्यम से क्रांतिकारी विचारों को प्रचारित किया। उनकी पुस्तक The Indian War of Independence, 1857 ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को एक राष्ट्रीय विद्रोह के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने उन्हें ब्रिटिश सरकार का प्रमुख शत्रु बना दिया। सावरकर को 1910 में गिरफ्तार किया गया और उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई, जहां वे 1911 से 1921 तक अंडमान की सेलुलर जेल में रहे।
इन वर्षों में सावरकर ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, और राष्ट्रीयता पर गहराई से चिंतन किया। जेल से रिहाई के बाद, वे हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता बने और हिन्दुत्व के विचार को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। उनकी पुस्तक Hindutva: Who is a Hindu? (1923) में हिन्दुत्व को एक सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान के रूप में परिभाषित किया गया, जो केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं थी, बल्कि भारत की सभ्यता, संस्कृति, और इतिहास को समेटती थी।
सावरकर का हिन्दुत्व दर्शन
सावरकर का हिन्दुत्व धार्मिक संकीर्णता से परे एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण था। उन्होंने हिन्दुत्व को तीन मूलभूत तत्वों पर आधारित किया:
राष्ट्र (पितृभूमि): सावरकर के अनुसार, भारत वह पवित्र भूमि है जहां हिंदुओं के पूर्वजों ने अपनी सभ्यता का निर्माण किया। यह भौगोलिक एकता भारत की राष्ट्रीय पहचान का आधार है।
जाति (सामान्य वंश): हिन्दुत्व में सावरकर ने भारतीयों को एक साझा वंश और सांस्कृतिक विरासत से जोड़ा, जो हिंदू, जैन, बौद्ध, और सिख जैसे विभिन्न समुदायों को एकजुट करता है।
संस्कृति (सभ्यता): सावरकर ने भारतीय संस्कृति को वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, और अन्य सांस्कृतिक ग्रंथों के माध्यम से परिभाषित किया, जो भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक हैं।
सावरकर का हिन्दुत्व धार्मिक पूजा-पद्धतियों से अधिक सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता पर केंद्रित था। उनके लिए, हिन्दुत्व एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जो भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने और एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखता था। उन्होंने हिंदुओं को संगठित करने और उनकी सामाजिक-राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने पर जोर दिया, ताकि भारत एक सशक्त और एकीकृत राष्ट्र बन सके।
अखंड भारत की संकल्पना
सावरकर की अखंड भारत की संकल्पना उनके हिन्दुत्व दर्शन का एक अभिन्न अंग थी। उनके लिए, भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सभ्यता थी, जिसका विस्तार हिमालय से हिंद महासागर तक और सिंधु नदी से बर्मा तक था। सावरकर ने भारत को एक अखंड इकाई के रूप में देखा, जिसमें विभिन्न धर्म, भाषाएं, और संस्कृतियां एक साझा राष्ट्रीय पहचान के अंतर्गत एकजुट थीं।
ऐतिहासिक आधार
सावरकर ने प्राचीन भारतीय इतिहास से प्रेरणा ली, जिसमें मौर्य, गुप्त, और चोल साम्राज्यों ने भारत को एक विशाल और एकीकृत क्षेत्र के रूप में देखा था। उन्होंने तर्क दिया कि भारत की एकता उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में निहित है, जो विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को एक सूत्र में बांधती है। सावरकर के लिए, भारत का विभाजन (विशेष रूप से 1947 का विभाजन) एक ऐतिहासिक त्रासदी थी, जिसने भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता को खंडित किया।
अखंड भारत का भौगोलिक दृष्टिकोण
सावरकर का अखंड भारत केवल वर्तमान भारत तक सीमित नहीं था। इसमें वर्तमान पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, और तिब्बत जैसे क्षेत्र शामिल थे, जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय सभ्यता का हिस्सा रहे थे। सावरकर का मानना था कि इन क्षेत्रों को सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से पुन: एकीकृत करना भारत की शक्ति और वैभव को पुनर्स्थापित करने के लिए आवश्यक है।
सावरकर का दृष्टिकोण और विभाजन का विरोध
सावरकर ने भारत के विभाजन का कड़ा विरोध किया। उनका मानना था कि भारत का विभाजन न केवल भौगोलिक, बल्कि सांस्कृतिक और सभ्यतागत स्तर पर भी एक विघटन था। उन्होंने मुस्लिम लीग की “दो-राष्ट्र सिद्धांत” की आलोचना की और तर्क दिया कि भारत की सांस्कृतिक एकता सभी धर्मों को समाहित करने में सक्षम है। सावरकर का मानना था कि भारत के मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को भारतीय संस्कृति के साथ एकीकृत होना चाहिए, न कि अलग राष्ट्र की मांग करनी चाहिए।
सावरकर की दृष्टि में चुनौतियां
सावरकर के विचारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके हिन्दुत्व को कुछ लोगों ने सांप्रदायिक और अल्पसंख्यक-विरोधी माना, हालांकि सावरकर ने स्पष्ट किया कि उनका हिन्दुत्व धार्मिक कट्टरता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का दर्शन है। इसके अतिरिक्त, अखंड भारत की उनकी संकल्पना को राजनीतिक और भौगोलिक वास्तविकताओं के कारण अव्यवहारिक माना गया। 1947 के विभाजन और उसके बाद के भू-राजनीतिक परिवर्तनों ने अखंड भारत के विचार को और जटिल बना दिया।
आधुनिक संदर्भ में सावरकर की प्रासंगिकता
सावरकर का हिन्दुत्व और अखंड भारत का विचार आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रासंगिक है। हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों ने सावरकर के विचारों को अपनाया और उन्हें आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। सावरकर की सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय शक्ति पर जोर देने वाली विचारधारा ने भारत में राष्ट्रीयता के नए विमर्श को जन्म दिया है। आज के समय में अखंड भारत की संकल्पना को भौगोलिक एकीकरण से अधिक सांस्कृतिक और आर्थिक एकता के रूप में देखा जाता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और अन्य क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। सावरकर का विचार कि भारत एक सांस्कृतिक इकाई है, क्षेत्रीय सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से आंशिक रूप से साकार हो रहा है।
विनायक दामोदर सावरकर का हिन्दुत्व और अखंड भारत की संकल्पना भारतीय राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकता के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनका हिन्दुत्व केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक सांस्कृतिक और राजनीतिक दर्शन था, जो भारत को एक सशक्त और एकीकृत राष्ट्र के रूप में देखता था। अखंड भारत का उनका सपना भले ही भौगोलिक रूप से पूर्ण न हो सका, लेकिन इसने भारतीय समाज में सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय गौरव की भावना को प्रेरित किया। सावरकर की दृष्टि आज भी भारत के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में जीवित है और यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करती है कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए एक आधुनिक और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में कैसे आगे बढ़ सकता है।