भारतवर्ष के अमृतकाल मे वंदे मातरम की प्रासंगिकता
विश्व इतिहास मे नारों का अपना इतिहास रहा हैं, कभी कभी तो एक नारा पूरे आंदोलन को बदल के रख देता हैं। इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण हैं, जैसे स्वराज मेरा जन्मसिद्धह अधिकार हैं, गरीबी हटाओ आदि आदि। वर्तमान के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे भी हमने देखा होगा की कैसे कुछ नारे “एक हैं तो सेफ हैं” या “बटेंगे तो कटेंगे” पूरे चुनाव मे हावी रहा, और विशेषज्ञ ऐसा बताते हैं की इसका प्रभाव चुनावफल पर भी पड़ा। आज इस लेख के माध्यम से आपको अमृतकाल मे उस अद्वितीय नारा की प्रासंगिकता पर विचार साझा करूंगा जिसको अभी भी विश्व इतिहास मे अजूबा माना जाता हैं; जिसके वजह से भारतवर्ष का इतिहास तो प्रभावित हुआ ही तथा जिसने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा और दशा दोनों बदल दी।
वैसे तो भारतवर्ष अति प्राचीन संस्कृति हैं परंतु भारत ने 15 अगस्त 2022 को स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले 25 वर्षों (2047 तक) को “अमृतकाल” का नाम दिया। यह काल भारत को एक विकसित, आत्मनिर्भर, और वैश्विक नेतृत्वकर्ता राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से निर्धारित किया गया है। इसमें युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे राष्ट्र ने इन 75 सालों मे बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं परंतु अभी विश्व मे भारतवर्ष का नाम बड़े मान – सम्मान के साथ लिया जाता हैं। हम अभी विश्व मे पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मे आते हैं और छाती ठोंक कर कहते हैं जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेंगे। रोड के मामले मे विश्व मे अपना दूसरा स्थान हैं तथा रेलवे तंत्र मे अपना तीसरा स्थान हैं। शक्तिशाली सेना के मामले मे भी हम चौथी स्थान पर हैं तथा गेहूं और चावल उगाने के मामले मे अपना दूसरा स्थान हैं। फिल्म बनाने मे अपना राष्ट्र प्रथम स्थान पर हैं तथा दूध उत्पादन मे हम पूरे विश्व मे अव्वल हैं। चाहे वह ऑटोमोबाइल का क्षेत्र हो या अंतरिक्ष अभियान हो हमारा भारतवर्ष हर जगह अपने अमृतकाल मे अपने आप को सिद्ध कर रहा हैं।
“जन गण मन” अपना राष्ट्रगान हैं तो ‘वंदे मातरम’ भारतवर्ष का राष्ट्रीय गीत हैं जिसे बंकिमचंद्र चटोपाध्याय द्वारा नवंबर 1876 मे लिखा गया था। इस गीत को 1882 में बंकिमचंद्र जी ने अपने उपन्यास “आनन्द मठ” में अन्तर्निहित गीत के रूप में गाया हैं। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। जो सन्यासी विद्रोह को दर्शाता हैं। यह गीत इस महीने यह अपना 150 वर्ष पूर्ण कर लिया हैं। सन् 2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण में “वन्दे मातरम्” को दुनिया के शीर्ष 10 सबसे लोकप्रिय गीतों में दूसरे स्थान पर रखा गया। इस सर्वेक्षण में 155 देशों और द्वीपों के लोगों ने भाग लिया था, जहां लगभग 7,000 गीतों में से वोटिंग के जरिए चयन किया गया था। “वन्दे मातरम्” को इसकी सांस्कृतिक और प्रेरणादायक ताकत के लिए व्यापक सराहना मिली, जो इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनाता है।
इक्कीसवी शताब्दी मे हम देख रहे हैं वैश्वीकरण अपनी उच्चतम अवस्था पर हैं और इसके वजह से कई विदेशी ताकतों ने भारत के विश्व मे बढ़ते साख को गिराने के प्रयत्न मे लगी हुई हैं। हमारे कुछ युवा भाई बहन भी उसके जाल मे फसकर अपनी आध्यात्मिक ताकत और शक्ति को दरकिनार कर पश्चिमीकरण और अमेरिकीकरण का अंधाधुन नकल कर रहे हैं। हम अपने वस्त्र ,भोजन और संस्कृति मे कमी निकालने लगे हैं और दूसरे संस्कृति से बिना आधार का तुलना करने लगे हैं। ऐसे समय मे “वंदे मातरम” का विचार हमारे समाज के लिए बहुत प्रासंगिक हो जाता हैं जो; हमे इन सब नकारात्मक विचारों से निकालकर अपने संस्कृति पर आत्मविश्वास करना सीखा सकती हैं; और अपनी सज्जन शक्ति के जागरण का काम कर सकती हैं।
भारतवर्ष मे अभी इतने बड़े और शक्तिशाली शैक्षणिक संस्थान हैं जिनमे हमारे समाज का बहुत बड़ा अर्थ का निवेशिकरण होता हैं तथा इनमे से प्रशिक्षण लेकर हमारे युवाओ की बहुत बड़ी संख्या विदेशों मे जाकर अपनी सेवाए देते हैं। हमे इन सभी युवाओ पर गर्व भी हैं की भारत के युवा अभी विश्व के प्रतिस्थित संस्थानों का नेतृत्व करते हैं; हमारे युवा विदेशों मे एक अच्छे डॉक्टर ,इंजीनियर तथा राजनेता बनकर भी अपना नाम कमा रहे हैं परंतु सोचिए अगर यह युवा अपने ऊर्जा और समय का सदपयोग कर भारतवर्ष के लिए वहा रहकर या भारतवर्ष मे ही रहकर हमारे राष्ट्र के उत्थान मे सहयोग करे तो भारत की 2047 तक क्या स्तिथि होंगी और “वंदे मातरम” मे ऐसी शक्ति हैं जिसका सही समय पर सकारात्मक इस्तेमाल करके युवाओं मे राष्ट्र प्रेम जागृत किया जा सकता हैं।
अमृतकाल मे मुख्य स्तंभों मे आत्मनिर्भर भारत की बात होती हैं; तो हमे यह याद रखना होगा की आत्मनिर्भरता का मार्ग त्याग, राष्ट्रभक्ति और समर्पण के माध्यम से ही पाया जा सकता हैं। इसको हम स्वदेशी आंदोलन तथा ‘वोकल फॉर लोकल’ से जोड़ कर भी देख सकते हैं। इसके साथ हमे यह भी याद रखना होगा की कभी भी हम दूसरों की नकल करके आत्मनिर्भर नहीं बन सकते हमे अपनी शक्ति, अपना अनोखापन पहचानना पड़ेगा तब जाकर हमारी दूसरों पर से निर्भरता खत्म होंगी और तब हम अपने पैरों पर खड़ा हो सकते हैं। स्वामी विवेकानंद और उनकी पश्चिम की शिष्या निवेदिता कहती हैं- “भारतवर्ष की सच्ची छवि बनो, पश्चिम की कमजोर नकल नहीं” हमारी सभ्यता हमारी आत्मा में है, इसे पश्चिम की नकल से नहीं बदला जा सकता। हमें अपनी संस्कृति को समझना और इसे आत्मसात करना होगा । युवाओं को अपनी सृजनात्मकता और नवाचार के माध्यम से उद्योगों, विज्ञान, तकनीकी, और कृषि में नए आयाम स्थापित करने होंगे। वंदे मातरम का संदेश आत्मनिर्भरता की इस भावना को प्रोत्साहित करता है।
वंदे मातरम भारत की संस्कृति, एकता और परंपरा का प्रतीक है। इस गीत के प्रत्येक शब्दों को बारीकी से समझे तो उसमे भारतीयता और उसकी मूल भाव प्रदर्शित होती दिखती हैं। उदाहरण के तौर पर इसके प्रथम पंक्ति को देखिए – “वन्दे मातरम् ! सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्, शस्यश्यामलाम् मातरम्” इसमे मलयजशीतलाम्, को देखिए इसका भाव यह हैं की ‘मल पर्वत या चंदन के पेड़ से बहने वाले मंद शीतल वायु’ यानि ऐसा भाव सिर्फ भारत मे ही कल्पना किया जा सकता हैं,इसमे सबकुछ अपनापन लगता हैं। अभी के कुछ समय मे ऐसी स्थिति भी बन रही हैं जहा हमे देखने को मिलता हैं की कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए या सिर्फ अपना हित ध्यान मे रखकर भारत देश को तोड़ने का काम कर रही हैं चाहे वह कश्मीर का विषय हो या पंजाब का विषय हो; हमे समझना होगा की हमारी पद्धहती, पूजा पाठ के तरीके, वेशभूषा, भाषा, भोजन अलग हो सकता हैं परंतु हम सभी भारत माता की संतान हैं, हमारे पूर्वज इसी भूमि के रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था इसलिए हम सबका यह दायित्व बनता हैं की इसकी एकता और अखंडता को कभी ठेस न पहुँचने दे। हमे पूरे विश्व को “अनेकता मे एकता” का पाठ पढ़ाना हैं और मिलजुलकर आगे बढ़ना हैं। और वंदे मातरम के माध्यम से यह सबकुछ संभव हैं इस नारे मे भारतीयता की अपार झमता हैं जो कठोर हृदय को भी पिघला सकती हैं । इसी प्रकार भारतवर्ष के युवा इसके माध्यम से अपने सांस्कृतिक गौरव को समझ सकते हैं और दुनिया के सामने भारत की विविधता और समृद्धि को प्रस्तुत कर सकते हैं।
भारत वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं का सामना कर रहा है। “वंदे मातरम” का यह भाव युवाओं को प्रेरित करता है कि वे पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दें और प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित करें। “वंदे मातरम” में मातृभूमि को “सुजलाम् सुफलाम्” शुद्ध जल और शुद्ध फलों से भरपूर के रूप में वर्णित किया गया है तथा ऐसे अनेक पंक्तियाँ हैं जहा पर भारत माता के पुण्यभूमि को स्वच्छ, सुंदर और निर्मल बताया गया हैं । यह हमे प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान के भाव का भी जागरण करती हैं।
वंदे मातरम का एक अर्थ है “माता को नमन तथा वंदे मातरम के संदेश ने न केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं को भी प्रेरित किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने इस गीत को अपनी आवाज़ बनाया सुचेता कृपलानी ने 1947 में संविधान सभा में वंदे मातरम गाया। महिला क्रांतिकारी जैसे सरोजिनी नायडू ने इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। वंदे मातरम के कण कण मे मातृ शक्ति की आराधना हैं जो हमे पल पल याद दिलाती हैं बिना शक्ति के वंदना से हम सफल नहीं हो सकते।
महात्मा गांधी कहते हैं “वंदे मातरम भारत के जनमानस की भावनाओं का प्रतीक है। यह गीत भारत की आत्मा और उसकी स्वतंत्रता की आकांक्षा को व्यक्त करता है।” नेताजी सुभाष चंद्र बोस इसके बारे मे लिखते हैं “वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं है, यह हमारे संघर्ष का उद्घोष है। यह हमें हमारे कर्तव्यों और बलिदान की याद दिलाता है।” लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को वन्दे मातरम् में इतनी श्रद्धा थी की शिवाजी की समाधि के तोरण पर उन्होंने इसे उत्कीर्ण करवाया था। तथा वह कहते हैं “वंदे मातरम वह मंत्र है, जिसने भारत के लाखों लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है।” लाला लाजपत राय अपनी पुस्तक “मेरे निर्वासन की कहानी” मे लिखते हैं “जब भी मैं वंदे मातरम सुनता हूं, यह मेरे भीतर मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम और बलिदान की भावना जाग्रत करता है।”
वंदे मातरम गीत और उसका स्वतंत्रता संग्राम मे नारे के तरह प्रयोग वीर स्वतंत्रता सेनानियों के शरीर मे रक्त के संचार को बढ़ा देता था; आलम यह था की अंग्रेज भी वंदे मातरम से डर कर इसको प्रतिबंधित भी कर दिया था परंतु इतिहास गवाह हैं जब जब किसी प्रशासन का जुल्म बढ़ता हैं तब तब कुछ ऐसे गीत और नारे का उद्भव होता हैं जो पूरी सत्ता के दीवाल को हिलाने का सामर्थ्य रखती हैं अर्थात वंदे मातरम भी अन्याय के खिलाफ न्याय के लिए बिगुल बजाने का सामर्थ्य रखती हैं और जरूरत पड़ने पर अभी भी इसका इस्तेमाल होता दिखाई पड़ता हैं।
संदर्भ-
1.https://x.com/nikhilyogi_/status/1796583455226200261?t=gh6Ic-gsVqAFf4ebAExdnA&s=19 retrieved on 06.12.2024
- https://youtu.be/tzRzAZIDsBY?si=R01hWCv2T6nrOTFS retrieved on11.12.2024
- The Worlds Top TenArchived2006-08-21 at the वेबैक मशीन — BBC World Service 05.12.2024
https://www.bbc.co.uk/worldservice/us/features/topten/profiles/index.shtml
- Collected Works of Mahatma Gandhi, Volume 23,
PUBLISHER : Publications Division, Government of India।
- The Indian Struggle (1920-1942), Subhas Chandra Bose,
PUBLISHER : Orient Longman।
- Bal Gangadhar Tilak: His Writings and Speeches, Page 78।
PUBLISHER: Ganesh & Co. Publishers।
- समग्र वंदे मातरम – मिलिंद सबनीस।
-चंदन कुमार
विद्यार्थी, इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय