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अब FIR और पुलिस रिकॉर्ड से हटेगा जाति का उल्लेख और राजनीतिक अथवा सामाजिक उद्देश्यों से जाति के नाम पर रैलियों, सभाओं पर प्रतिबंध

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जाति-आधारित पहचान के उल्लेख पर सख्त कदम उठाए हैं। सरकार ने आदेश जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि अब FIR, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड, गवाहों के बयान और अन्य कानूनी दस्तावेजों में किसी भी व्यक्ति की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा।

हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि पुलिस रिकॉर्ड या गिरफ्तारी दस्तावेजों में जाति का उल्लेख करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। अदालत ने इसे भेदभाव को बढ़ावा देने वाला बताया और कहा कि “जाति का महिमामंडन असंवैधानिक ही नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी भी है।”
अदालत ने अपवाद स्वरूप यह छूट दी कि केवल अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज अपराधों में जाति का उल्लेख किया जा सकता है, क्योंकि यह उस कानून के दायरे में आवश्यक है।

यूपी सरकार का आदेश

हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सभी जिलाधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और विभागीय अधिकारियों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए। आदेश के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं—

  • FIR और गिरफ्तारी मेमो से जाति कॉलम हटेगा।

  • आरोपी, गवाह या पीड़ित की पहचान के लिए जाति की जगह अब केवल माता-पिता का नाम लिखा जाएगा।

  • थानों, सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक स्थानों पर लगे नोटिस बोर्ड, साइनबोर्ड और वाहनों से जाति-आधारित नाम, नारे और प्रतीक हटाए जाएंगे।

  • वाहन पर जाति संबंधी स्टिकर या बोर्ड लगे पाए जाने पर मोटर व्हीकल अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी।

  • सोशल मीडिया पर जाति का महिमामंडन करने वाले पोस्ट और अभियानों पर नजर रखी जाएगी और आवश्यक होने पर कानूनी कार्रवाई होगी।

  • राजनीतिक अथवा सामाजिक उद्देश्यों से जाति के नाम पर रैलियाँ और सभाएँ आयोजित करने पर रोक लगाई जाएगी।

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प्रशासनिक बदलाव

प्रदेश सरकार ने यह भी निर्देश दिया है कि पुलिस मैनुअल और Standard Operating Procedures (SOPs) में संशोधन कर इस व्यवस्था को स्थायी बनाया जाए। साथ ही, Crime and Criminal Tracking Network and Systems (CCTNS) पोर्टल से जाति संबंधी कॉलम हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

सामाजिक महत्व

कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कदम समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को कम करने में मदद करेगा। अब न तो गिरफ्तारी दस्तावेज़ों में जाति का उल्लेख होगा, न ही पुलिस रिकॉर्ड में। इससे पुलिसिया कार्रवाई और न्यायिक प्रक्रिया जाति से प्रभावित नहीं होगी।

अपवाद

हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले मामलों में जाति का उल्लेख कानून के तहत अनिवार्य होने के कारण किया जाएगा।