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सक्रियता और संकल्प सफलता की कुंजी

उमेश चौरसिया

अकर्मण्यता, निराशा, आलस्य और शिथिलता – ये सभी उद्भव, विकास और उन्नति के सबसे बड़े बाधक तत्व हैं। अनेक लोग कर्म किये बिना, केवल निरर्थक बोलते रहते हैं। बड़ी बातें, बड़े दावे, बड़ी प्रतिज्ञाएँ। केवल बातें करने, दावे करने या केवल प्रतिज्ञा बोल देने से कुछ नहीं होने वाला। जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक है- ‘सक्रिय- संकल्पित कर्म और विचार की क्रियान्विति ।

स्वामी विवेकानन्द ने सम्पूर्ण विश्व के समक्ष उपनिषद् का यह सूत्र प्रतिपादित किया “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान्निबोधत ।।” अर्थात ‘उठो! जागो ! और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!!’ वास्तव में जीवन में सफलता के लिए इसी सूत्र को अपनाने की सर्वाधिक आवश्यकता है।

‘उठो!’ – अर्थात केवल बातें मत करो, केवल विचार की घोषणा मत करो, बल्कि अपने जीवन के लिए श्रेष्ठ – सार्थक लक्ष्य को चुनो और कुछ कर्म करने के लिए तैयार हो जाओ। ‘जागो !’ – अर्थात लक्ष्य प्राप्ति के लिए किन प्रयत्नों की आवश्यकता है, कौनसी योजना उपयुक्त होगी, मार्ग में आने वाले अवरोध और उन्हें दूर करने के उपाय क्या रहेंगे, इन सब के प्रति सचेत रहो, चैतन्य रहो। ‘लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!!’ –अर्थात एक बार लक्ष्य तय कर लिया, जीवन का सार्थक मार्ग चुन लिया, आगे बढ़ने की योजना बना ली, तो फिर बिना रूके, बिना थके, चाहे कितनी भी बाधाएँ आ जाएँ, सबको पार करते हुए निराशा और आलस्य को दूर रखते हुए आगे बढ़े चलो, बढ़े चलो। यदि हमने जीवन में इस सूत्र को अपना लिया तो जीवन – ध्येय में सफलता सुनिश्चित ही है ।

भारत के अनेक ऐसे नेता थे, जिनके मातृभूमि के प्रति प्रेम, श्रद्धा, समर्पण और आजादी के लक्ष्य के लिए दृढ़ संकल्प ने ही हमें स्वाधीनता दिलायी है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने दृढ़ संकल्प के कारण ही असंभव लगने वाले ‘आजाद हिन्द फौज’ जैसे विशाल संगठन को खड़ा किया और विश्व के कई देशों को समर्थन में तैयार कर भारत की स्वतंत्रता में महती भूमिका निभाई । नेताजी भी स्वामी विवेकानन्द के अनुयायी थे।

साधारण व्यक्तित्व वाले वैज्ञानिक प्रो. नारायण मूर्ति अपने दृढ़संकल्प के बल पर ही भारत के सबसे बड़े सूचना तकनीक प्रतिष्ठान ‘इन्फोसिस’ के संस्थापक बने और एशिया के पचास सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्तियों में स्थान हासिल किया। साधारण गरीब परिवार में पले डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता के कारण ही भारत के पहले सेटेलाइट एस.एल.वी.-3 और ‘अग्नि’ व ‘पृथ्वी’ जैसी शक्तिशाली मिसाइलों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर ‘मिसाईल मैन’ बन गए ।

सार्थक कर्म के प्रति निष्ठा के कारण ही उन्हें भारत के राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। चौंतीस वर्ष की अल्पायु में ही जे. आर. डी. टाटा ‘टाटा एण्ड सन्स’ के अध्यक्ष बन गये, जिसने चौदह कम्पनी से शुरू करके आज 95 से अधिक कम्पनियों का विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया है। यह सब ध्येय के प्रति कर्मनिष्ठा का ही परिणाम है।

ऐसे अनेकों उदाहरण होंगे जिनकी सफलता के पीछे यही सूत्र है – ‘उठो! जगो ! और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!!’ स्वामी विवेकानन्द कहते हैं-“हम तोते की तरह कई बातें बोलते रहते हैं, पर उन्हें कभी करते नहीं। केवल बातें करना और कुछ न करना – यह हमारी आदत हो गई है। इसका कारण क्या है ? शारीरिक क्षीणता। इस प्रकार का क्षीण मस्तिष्क कुछ भी करने में अक्षम है। हमें इसे सशक्त बनाना है।” अभी भी समय है। बातें करना छोड़कर अपने जीवन का सार्थक लक्ष्य निश्चित करो और उसे पाने के लिए सजगता के साथ निश्चय पूर्वक आगे बढ़ो। सफलता प्रतीक्षा कर रही है।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी हैं।

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