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यूनेस्को ने दीपावली को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया

नई दिल्ली, 10 दिसंबर 2025: संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भारत के सबसे प्रिय और जीवंत त्योहार दीपावली को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) की सूची में शामिल कर लिया है। यह घोषणा यूनेस्को की 19वीं अंतर-सरकारी समिति की बैठक में की गई, जो हाल ही में आयोजित हुई। इस फैसले को भारत सरकार और सांस्कृतिक विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय गौरव का क्षण बताते हुए सराहा है, जो भारतीय परंपराओं को वैश्विक पटल पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दीपावली, जिसे ‘प्रकाश का त्योहार’ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदायों द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय, बुराई पर अच्छाई की जीत और समृद्धि की कामना का प्रतीक है। यूनेस्को की इस मान्यता के बाद, दीपावली अब उन 700 से अधिक अमूर्त धरोहरों में शामिल हो गई है, जो मानवता की सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने के लिए चुनी जाती हैं। संगठन ने अपनी आधिकारिक घोषणा में कहा कि दीपावली न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सामाजिक बंधनों को मजबूत करने, पारंपरिक शिल्पकला को प्रोत्साहित करने और पर्यावरणीय सद्भाव को बढ़ावा देने वाली जीवंत परंपरा है।

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दीपावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
दीपावली का इतिहास प्राचीन भारतीय ग्रंथों से जुड़ा हुआ है। रामायण के अनुसार, यह वह दिन है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, और नगरवासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए थे। इसी तरह, महाभारत में पांडवों की वापसी और भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध भी इस त्योहार से जुड़ा है। जैन धर्म में यह भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि सिख परंपरा में गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई का स्मरण किया जाता है।

भारत में दीपावली की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। घरों की साफ-सफाई, रंगोली बनाना, मिठाइयां बनाना और पटाखों के साथ रोशनी का त्योहार – ये सभी तत्व इसकी अमूर्त धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। यूनेस्को ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि यह त्योहार लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि महिलाएं घर की सजावट और पूजा-अर्चना में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। साथ ही, यह पारंपरिक कला जैसे दीये बनाना, चंदन की मूर्तियां और लोक नृत्य को जीवित रखता है।

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भारत सरकार और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
भारत सरकार की संस्कृति मंत्री ने ट्विटर (एक्स) पर पोस्ट करते हुए कहा, “यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का वैश्विक मान्यता है। दीपावली अब न केवल हमारा, बल्कि पूरी मानवता का त्योहार है।” प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इसकी बधाई दी, और कहा कि यह ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को मजबूत करता है।

सांस्कृतिक विशेषज्ञ डॉ. रीमा देसाई ने बताया, “यूनेस्को की यह सूची न केवल संरक्षण का माध्यम है, बल्कि वैश्वीकरण के दौर में सांस्कृतिक पहचान को बचाने का प्रयास भी। दीपावली जैसे त्योहार पर्यावरण संरक्षण को भी प्रेरित करते हैं, जैसे कि मिट्टी के दीयों का उपयोग।” हालांकि, कुछ पर्यावरणविदों ने पटाखों के उपयोग पर चिंता जताई है, और सुझाव दिया कि इस मान्यता का उपयोग हरित दीपावली को बढ़ावा देने के लिए किया जाए।

वैश्विक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
यह मान्यता भारत के लिए गर्व का विषय तो है ही, लेकिन इससे वैश्विक पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी वृद्धि होगी। अब दीपावली को दुनिया भर में स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके उत्सव को प्रोत्साहित किया जाएगा। यूनेस्को के अनुसार, इस सूची में शामिल होने से धरोहरों का संरक्षण और प्रचार आसान हो जाता है। भारत के अन्य त्योहार जैसे कुंभ मेला और योग पहले से ही इस सूची में हैं, और अब दीपावली इस कड़ी को मजबूत करेगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारतीय डायस्पोरा को भी मजबूत करेगा, जो अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों में दीपावली को भव्यता से मनाते हैं। यह फैसला निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, और आने वाले वर्षों में दीपावली की रोशनी पूरी दुनिया को रोशन करेगी।