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क्या सच में आती है दूसरे लोक से उड़न तश्तरी?

आचार्य ललित मुनि

गर्मी के दिनों में बाहर जब आंगन में खाटें डलती थी और सारे बच्चे इकट्ठे होते थे, आसमान की तरफ़ देखते थे तारों को दादी के बताए तारों के समूहों को पहचनाने की कोशिशें करते थे, कहीं खटिया, खटोला होता था, तो कहीं हिरणी, कहीं नागफ़नी तो कहीं सतबहनिया तारों का समूह होता था, तारों के समूहों को स्थानीय नामों के जाना जाता था। कहीं ध्रुव तारा तो कहीं सुकुवा भोर होने का संकेत देता था।

इसके साथ ही एक नाम और लिया जाता था, उड़न तश्तरी। जिसे UFO कहा जाता है। किसी ने इसे फ़्लाइंग डिस्क या फ़्लाइंग सासर कहा होगा जिसका हिन्दी अनुवाद उड़न तश्तरी किया गया। तब मैं चाय की तश्तरी जैसी किसी उड़ने वाली तश्तरी की कल्पना करता था। लेकिन मेरी कल्पना के साथ आज भी दुनिया की कल्पना में उड़न तश्तरी बनी हुई, अटूट जिज्ञासा बनी हुई है कि यह होती है कि नहीं।

उड़न तश्तरी की कई कहानियां तो इतनी सही लगती हैं कि मन में सवाल उठता है कि क्या इस ब्रह्माण्ड में हम अकेले हैं? या और कोई भी है जो आसमान के पार, तारों के पास अन्य किसी स्थान पर रहता है। क्या उड़न तस्तरी देखना सिर्फ़ मानव की कल्पना है या सत्य भी है। कहानियां सुनकर एक बार तो लगता है कि मानव की कल्पना और विज्ञान की सीमाओं की मिलावट जैसी कोई चीज है। इस सत्य को जानने के लिए पूरी दुनिया लगी है। कभी कोई समाचार आता है कि कहीं उड़न तश्तरी गिरी है, कभी किसी को उड़न तश्तरी उठाकर ले गयी और छोड़ गई। तरह तरह कथाएं लोक में तैरती है।

UFO शब्द का अर्थ है कोई भी वस्तु जो आकाश में उड़ रही हो और जिसकी पहचान न हो सके। यह जरूरी नहीं कि हर UFO एलियन यान हो, यह कोई मौसम संबंधी घटना, मानव की बनाई कोई वस्तु या नजरों का धोखा भी हो सकता है। इस शब्द का प्रचलन 1947 में शुरू हुआ, जब अमेरिकी पायलट केनेथ अर्नोल्ड ने वाशिंगटन के माउंट रेनियर के पास “तश्तरी जैसी” उड़ती वस्तुओं को देखने का

दावा किया। उनकी यह कहानी मीडिया में “फ्लाइंग सॉसर” के रूप में छाई रही, और यहीं से UFO की आधुनिक कहानी शुरू हुई। जो पूरी दुनिया में फ़ैल गई और आज भी रोमांचित कर रही है।

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कुछ बुद्धिमान लोग भारतीय प्राचीन ग्रंथों में विमानों के उल्लेख को युएफ़ओ से जोड़ने लगे। जब प्राचीन भारतीय ग्रंथों इनका उल्लेख है और देवता एक ग्रह से दूसरे ग्रह में जाने के लिए इसका उपयोग करते थे तो यह निरी कल्पना नहीं हो सकती, क्योंकि भारतीय दर्शन के साथ मिश्र के पिरामिड की कथाओं एवं बाइबिल में आकाश से आने वाली रोशनी का उल्लेख है। इन उल्लेखों को तत्कालीन मानवों द्वारा देखे जाने वाली उड़न तश्तरी ही साबित करने का प्रयास किया जाता है।
आधुनिक मानवों द्वारा उड़न तश्तरी देखने की कुछ कथाएं प्रचलन में है, जैसे 1947 में रोसवेल ने न्यू मैक्सिको में एक अज्ञात वस्तु के दुर्घटनाग्रस्थ होने की खबर दी। इस खबर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। वहां की सेना ने शुरु में इसे फ़्लाइंग डिस्क बताया, लेकिन बाद में दावा किया गया कि यह एक मौसमी गुब्बारा है। इस घटना ने संदेहों को जन्म दिया कि क्या सरकार ने एलियन यान और उसके अवशेष छुपा लिए। Area 51, एक ऐसा गुप्त सैन्य अड्डा है जिसे इस रहस्य से जुड़ा माना जाता है।

रोसवेल के अलावा अन्य कई घटनाएं भी प्रकाश में आई। 1980 में ब्रिटेन के रेंडलशैम वन में सैनिकों ने अजीब रोशनी और त्रिकोणीय वस्तु देखने की बात कही। 1997 में अमेरिका के फीनिक्स शहर में हजारों लोगों ने आकाश में विशाल V-आकार की रोशनी देखी, जिसे “फीनिक्स लाइट्स” के नाम से जाना जाता है। इन घटनाओं का कोई ठोस वैज्ञानिक स्पष्टीकरण आज तक नहीं मिला, जिसके कारण UFO का रहस्य और गहरा गया।

भारत में भी UFO देखने वालों की की कमी नहीं है। 2004 में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थानीय लोगों और वैज्ञानिकों ने अजीब उड़ती वस्तुओं की सूचना दी। 2012 में लद्दाख के पास भारतीय सेना ने “चमकदार पीली गोल वस्तुओं” को देखा, जो रडार पर नहीं दिखीं। क्या ये प्राकृतिक घटनाएँ थीं, जैसे बॉल लाइटनिंग, या कुछ और? जवाब आज भी बाकी है।

विज्ञान UFO देखने को संदेह की नजर से देखता है। अधिकांश उड़न तश्तरी देखने को वैज्ञानिक प्राकृतिक या मानव का बनाया कोई उपकरण मानते हैं। विज्ञान का मानना है कि मौसम संबंधी घटनाएँ जैसे बादल, बिजली, या वायुमंडलीय परावर्तन (जैसे, मृगमरीचिका) अजीब रोशनी का भ्रम पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा मानव द्वारा बनाई गई वस्तुएं जैसे ड्रोन, विमान, उपग्रह, या सैन्य परीक्षण UFO जैसे दिख सकते हैं। 1960 के दशक में U-2 जासूसी विमान को कई बार UFO समझा गया और नजरों का धोखा भी हो जाता है जैसे कैमरा लेंस में परावर्तन या मानव आँख की सीमाएँ भी UFO का भ्रम पैदा कर सकती हैं।

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यहाँ पर प्रश्न उठता है कि क्या उड़न तश्तरी देखने की हर घटना को विज्ञान समझ सका है ? नहीं। कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जिनका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। 2021 में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें 144 UAP (Unidentified Aerial Phenomena, UFO का नया नाम) देखने का उल्लेख था। इनमें से कई को “अज्ञात” श्रेणी में रखा गया, जिसने वैज्ञानिकों और जनता दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया। NASA ने भी 2022 में UAP अध्ययन के लिए एक स्वतंत्र टीम गठित की, जो यह बताता है कि विज्ञान अब इस विषय को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहा।

SETI (Search for Extraterrestrial Intelligence) जैसे कार्यक्रम रेडियो सिग्नल के जरिए एलियन जीवन की खोज कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई पक्का सबूत नहीं मिला। फिर भी, ड्रेक समीकरण (ड्रेक समीकरण एक गणितीय सूत्र है जो यह अनुमान लगाने की कोशिश करता है कि हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) में बुद्धिमान सभ्यता (intelligent civilizations) की कितनी संख्या हो सकती है, जिनसे संपर्क किया जा सकता है।) और फर्मी विरोधाभास (अगर ब्रह्मांड में जीवन के मौजूद होने की संभावना इतनी ज़्यादा है, तो हम अब तक उनसे मिले क्यों नहीं?) जैसे सिद्धांत बताते हैं कि ब्रह्मांड में जीवन की संभावना हो सकती है। अगर ऐसा है, तो क्या UFO देखना उस जीवन का सबूत हैं? या हमारी तकनीक अभी इतनी उन्नत नहीं कि हम इसे समझ सकें?

कालांतर में उड़न तश्तरी देखना केवल वैज्ञानिक चर्चा का विषय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक घटना भी बनी। 20वीं सदी में उड़न तश्तरी ने पॉप संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। हॉलीवुड की फिल्में जैसे E.T., Close Encounters of the Third Kind, और Independence Day ने एलियंस को घर-घर पहुंचाया। भारत में Koi Mil Gaya और PK जैसी फिल्मों ने UFO और एलियंस को देशी रंग दिया।

उड़न तश्तरी की कहानियाँ मानव मन की उत्सुकता और डर को दर्शाती हैं। हम अज्ञात से डरते हैं, लेकिन उसे जानना भी चाहते हैं। सरकारों द्वारा एलियन जानकारी छिपाने की बात, इस डर और उत्सुकता का परिणाम हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि उड़न तश्तरी देखना कभी-कभी सामूहिक भ्रम, तनाव, या अन्य सांस्कृतिक प्रभाव का नतीजा हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, शीत युद्ध के दौरान उड़न तश्तरी देखने वालों की संख्या बढ़ी, क्योंकि लोग अज्ञात हमलों से डरते थे।

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भारतीय संदर्भ में, उड़न तश्तरी को अक्सर पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता है। कुछ लोग रामायण के पुष्पक विमान या महाभारत के युद्ध दृश्यों को प्राचीन UFO से जोड़ते हैं। लेकिन क्या यह हमारी संस्कृति को आधुनिक संदर्भ में देखने की कोशिश है, या वाकई कोई ऐतिहासिक आधार है?

भारत में उड़न तश्तरी देखने का लिखित इतिहास उतना नहीं है, जितना पश्चिमी देशों में है। लेकिन कहानियाँ कम नहीं हैं। हिमालय के सुदूर क्षेत्रों में स्थानीय लोग अक्सर “आकाश में चमकती वस्तुओं” की बात करते हैं। 2004 में किन्नौर की घटना ने वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा, जब ISRO और DRDO ने इन दर्शनों की जाँच की। कुछ ने इसे चीनी ड्रोन या सैन्य गतिविधि माना, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला।

लद्दाख में 2012-13 के दौरान सेना और स्थानीय लोगों ने बार-बार UFO जैसी वस्तुओं को देखा। ये वस्तुएँ इतनी तेजी से गायब हो जाती थीं कि रडार उन्हें पकड़ नहीं पाते। कुछ वैज्ञानिकों ने इसे “प्लाज्मा प्रभाव” या वायुमंडलीय घटना बताया, लेकिन स्थानीय लोग इसे “बाहरी शक्ति” मानते थे।

भारतीय समाज में उड़न तश्तरी और एलियंस के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया मिली जुली है। शहरी युवा इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसे रहस्य या दैवीय शक्ति से जोड़ा जाता है। भारतीय दर्शन, जो ब्रह्मांड को अनंत और जीवन को विविध मानता है, इसलिए उड़न तश्तरी की संभावना को पूरी तरह नकारता नहीं।

उड़न तश्तरी देखने का रहस्य आज भी अनसुलझा है, लेकिन तकनीक इसे सुलझाने में मदद कर सकती है। ड्रोन, AI, और शक्तिशाली टेलीस्कोप जैसे James Webb Telescope हमें ब्रह्मांड को बेहतर समझने में सक्षम बना रहे हैं। अगर UFO वाकई एलियन यान हैं, तो हमें उनके सिग्नल या अवशेष मिल सकते हैं। और अगर ये केवल प्राकृतिक घटनाएँ हैं, तो हमारी तकनीक उन्हें समझाने में सक्षम होगी। शायद एक दिन ऐसा भी आये कि उड़न तश्तरी का पर्दाफ़ाश हो जाए या फ़िर लोग आकाश में हमारी उड़न तश्तरी देखने की कल्पना ही करते रहें।