ट्रम्प ने चार बार फोन किया, मोदी ने नहीं उठाया कॉल : FAZ की रिपोर्ट
जर्मनी के प्रमुख समाचार पत्र Frankfurter Allgemeine Zeitung (FAZ) ने हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में सनसनीखेज दावा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बीते कुछ हफ्तों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चार बार फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इनमें से किसी कॉल का जवाब नहीं दिया। इस दावे की पुष्टि कई स्वतंत्र सूत्रों से हुई बताई गई है, हालांकि भारत सरकार की ओर से इस विषय पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार विवाद ने नया रूप ले लिया है। अमेरिका ने भारत को लेकर कठोर रुख अपनाते हुए कई भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है, जबकि भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिया। ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से भारत की अर्थव्यवस्था को “Dead Economy” कहकर विवाद को और गहरा किया। हालांकि FAZ की रिपोर्ट में इस टिप्पणी का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को यह बयान और भी उजागर करता है।
रूस-भारत संबंध और ऊर्जा सुरक्षा
रिपोर्ट के अनुसार, मतभेद का एक बड़ा कारण रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिका और भारत के बीच असहमति है। अमेरिका चाहता है कि भारत यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में रूस से कच्चे तेल का आयात कम करे। लेकिन भारत का कहना है कि उसकी प्राथमिकता सस्ती और भरोसेमंद ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है, ताकि देश की विकास दर बनी रहे। मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा पर समझौता नहीं किया जाएगा।
मोदी की चुप्पी: संदेश या रणनीति?
FAZ ने प्रधानमंत्री मोदी की इस चुप्पी को “क्रोध और सतर्कता” का प्रतीक बताया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह एक स्पष्ट कूटनीतिक संकेत है कि भारत किसी दबाव में आकर अपनी विदेश नीति को नहीं बदलेगा। यह चुप्पी एक रणनीतिक कदम भी मानी जा रही है, जिसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि भारत वैश्विक राजनीति में अब केवल प्रतिक्रियात्मक भूमिका नहीं निभाएगा, बल्कि अपने हितों को केंद्र में रखकर निर्णय लेगा।
कूटनीति विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी का यह रुख भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) की नीति का हिस्सा है। बीते वर्षों में भारत ने अमेरिका, रूस, यूरोप और एशियाई देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश की है।
भारत और अमेरिका के बीच मतभेदों के बावजूद इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग, सामरिक साझेदारी, तकनीकी विकास और रक्षा समझौते जैसे मुद्दों पर संवाद जारी रहने की संभावना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों को व्यापार और रूस जैसे संवेदनशील मुद्दों पर समय के साथ तालमेल बैठाना ही होगा, क्योंकि दोनों की साझेदारी वैश्विक संतुलन के लिए अहम है।