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ट्रंप प्रशासन ने कोर्ट में दी दलील – “टैरिफ पावर” से भारत-पाक संघर्ष टला, चीन के साथ व्यापारिक संतुलन भी दांव पर

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने न्यूयॉर्क की एक अदालत में आग्रह किया है कि “टैरिफ पावर” को बरकरार रखा जाए — वह अधिकार जिसके तहत ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिका के व्यापारिक भागीदारों पर जवाबी शुल्क लगाए थे।

ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने कोर्ट को आगाह किया है कि यदि यह कानूनी अधिकार कमजोर पड़ता है, तो इसका असर न सिर्फ अमेरिका-चीन के बीच चल रहे व्यापारिक समझौतों पर पड़ेगा, बल्कि इससे दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव भी फिर उभर सकता है।

पुलवामा जैसी नई घटना से उपजा था संकट
अधिकारियों ने बताया कि अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान-आधारित आतंकियों द्वारा 26 आम नागरिकों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तेजी से बढ़ गया था। हालात युद्ध जैसे हो गए थे, लेकिन मई महीने की शुरुआत में ट्रंप ने व्यक्तिगत स्तर पर हस्तक्षेप करते हुए दोनों देशों के बीच ‘सीज़फायर’ करवाया।

टैरिफ पॉलिसी के जरिए वैश्विक कूटनीति
अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप ने जिन देशों पर शुल्क लगाए थे, उनमें से कई के साथ अब व्यापारिक समझौते अंतिम चरण में हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इन समझौतों की समयसीमा 7 जुलाई तय की गई है, और यदि टैरिफ पावर को चुनौती दी गई तो यह वार्ताएं पटरी से उतर सकती हैं।

प्रमुख अधिकारियों ने अदालत में रखे बयान
इस मामले में कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड में बयान देने वालों में विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मार्को रुबियो, वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर शामिल थे। उन्होंने सामूहिक रूप से कहा कि टैरिफ पावर केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध अमेरिका की वैश्विक रणनीतिक स्थिति से है।

नाजुक स्थिति में हैं व्यापारिक वार्ताएं
ट्रंप प्रशासन के पूर्व अधिकारियों का मानना है कि अमेरिका इस समय दर्जनों देशों के साथ संवेदनशील व्यापारिक चर्चाओं में जुटा है। यदि टैरिफ शक्ति कमजोर की जाती है, तो इससे अमेरिका की सौदेबाजी की स्थिति प्रभावित होगी और चीन के साथ “असमान समझौते” का संतुलन बिगड़ सकता है।