हास्य-व्यंग्य के जनक डॉ. सुरेंद्र दुबे को भावभीनी श्रद्धांजलि, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने साहित्यिक योगदान को बताया अमूल्य धरोहर
रायपुर, 9 जुलाई 2025/ राजधानी रायपुर के जोरा स्थित श्री सालासर बालाजी धाम के सभागार में आज एक अत्यंत भावुक वातावरण के बीच सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह सभा न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि समूचे छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए एक गहन क्षण बन गई, जिसमें अनेक गणमान्य नागरिकों, परिजनों और साहित्यकारों ने दिवंगत कवि के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सभा में पहुंचकर डॉ. दुबे के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की और श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से प्रार्थना की कि वह दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें तथा शोक संतप्त परिजनों को इस अपार दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।
मुख्यमंत्री ने श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कहा, “डॉ. सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ महतारी के ऐसे सपूत थे, जिन्होंने अपने हास्य और व्यंग्य की धार से समाज को आईना दिखाया और लोगों को गुदगुदाते हुए गंभीर बातें भी कह दीं। सभी को हँसाने वाला यह महान कवि आज हमें रुलाकर चला गया। उनका असमय जाना साहित्य और समाज दोनों के लिए अपूरणीय क्षति है।”
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. दुबे की उपस्थिति कविता के हर मंच पर एक ऊर्जा की तरह होती थी। उनके बिना शायद ही कोई बड़ा कवि सम्मेलन पूर्ण होता था। उन्होंने अपने दीर्घ साहित्यिक जीवन में देशभर के प्रतिष्ठित मंचों पर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
सभा में उपस्थित उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने डॉ. दुबे के व्यक्तित्व को याद करते हुए कहा, “वे केवल एक सफल कवि ही नहीं, बल्कि एक बेहद जिंदादिल और प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा, बोली और संस्कृति को सम्मान दिलाया और जन-जन तक पहुंचाया।” उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. दुबे ने प्रदेश के कोने-कोने में जाकर न केवल लोगों को हँसाया, बल्कि समाज के भीतर व्याप्त कुरीतियों और विसंगतियों के प्रति भी चेतना जगाई।
कार्यक्रम में डॉ. सुरेंद्र दुबे के परिजन, साहित्यकार, सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में यह स्वीकार किया कि डॉ. दुबे का साहित्य, उनकी शैली और सामाजिक दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
यह श्रद्धांजलि सभा एक कवि को नहीं, बल्कि एक युग को विदाई देने जैसा था – ऐसा युग जो व्यंग्य की मुस्कान से भरा हुआ था, लेकिन उसकी हर पंक्ति में समाज के लिए कोई न कोई संदेश छिपा होता था।