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क्या चेतावनी काफी है? तंबाकू निषेध की अधूरी कहानी

स्वराज करुण 
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

बाज़ार में बिकने वाली हर वह चीज, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है, क्या उसके पैकेट पर सिर्फ़ एक वैधानिक चेतावनी प्रिंट कर देना ही काफी है? अगर वह चीज हमारी सेहत को हानि पहुँचा सकती है, इंसान को बीमार बना सकती है, तो उसका उत्पादन ही क्यों किया जाता है और बाज़ारों में बेचने ही क्यों दिया जाता है?

वैसे तो ये सवाल हमेशा उठाए जाने चाहिए, लेकिन आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के मौके पर ये दोनों प्रश्न और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आव्हान पर दुनिया भर में औपचारिक रूप से वर्ष 1988 से हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। तम्बाकूजनित घातक बीमारियों के प्रति समाज को सचेत करना इसका मुख्य उद्देश्य है। लेकिन क्या सिर्फ़ सचेत कर देना ही काफी है?

हम अपने भारत के संदर्भ में ही देखें तो एक तरफ यहाँ तम्बाकू सेवन के खतरों के प्रति जनता को आगाह किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ तम्बाकू मिश्रित सिगरेट, गुटका, दंतमंजन आदि का अरबों रुपयों का कारोबार भी खुलेआम चलता रहता है। इन वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने के लिए कम्पनियों द्वारा अखबारों और टीवी चैनलों में बड़े-बड़े लुभावने विज्ञापन भी ख़ूब दिए जाते हैं, जिनमें इन हानिकारक वस्तुओं का महिमामंडन सांकेतिक रूप से किया जाता है।

कुछ टेलीविजन चैनलों के पर्दे पर कई प्रसिद्ध फिल्मी कलाकारों को नाच-गाकर तम्बाकू मिश्रित हानिकारक पदार्थों का विज्ञापन करते देखा जा सकता है। औपचारिकता निभाने के लिए उन विज्ञापनों के नीचे बहुत बारीक और छोटे अक्षरों में कथित वैधानिक चेतावनी प्रिंट कर दी जाती है कि तम्बाकू अथवा पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ये अक्षर इतने धुंधले कर दिए जाते हैं कि दर्शक उन्हें पढ़ भी नहीं पाते और पलक झपकते ही ऐसे इश्तहार टीवी चैनलों के पर्दे से ओझल भी हो जाते हैं। थोड़ी-थोड़ी देर में ऐसे इश्तहारों का प्रदर्शन होता रहता है। काश! ऐसे विज्ञापनों के बजाय तम्बाकू से होने वाले नुकसान पर आधारित छोटे-छोटे कार्यक्रम टेलीविजन और रेडियो पर नियमित रूप से प्रसारित हों और समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किए जाएँ।

कुछ फिल्मी कलाकारों को तम्बाकू मिश्रित पाउच आदि को महिमा-मंडित करने वाले विज्ञापनों में उछलकूद करने और नाचने-गाने के लिए करोड़ों रुपए मिलते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, क्या वो ऐसा करके समाज को ज़हर नहीं परोसने के इस अनैतिक कारोबार में सहयोगी नहीं बन रहे हैं? पैसों की लालच में क्या इस तरह अपनी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को तम्बाकू कम्पनियों के पास गिरवी रख देना उचित है? इसके लिए उत्पादक और कारोबारी भी दोषी हैं।

दुकानों में रंग-बिरंगे पैकेटों में तम्बाकू मिश्रित गुटका भी बिकता है। इसके पाउच में सरकारी निर्देशों के अनुरूप स्पष्ट चेतावनी छपी होती है कि इससे कैन्सर हो सकता है। कैन्सर ग्रस्त व्यक्ति के चेहरे और जीभ की डरावनी तस्वीर भी उसमें प्रिंट रहती है। लोगों को सावधान करने के लिए यह ठीक है, लेकिन इसके बावजूद तम्बाकू के तलबगार इसे ख़ूब खरीदते और खाते हैं। क्यों उनके उत्पादन को बंद नहीं किया जाता?

एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में तम्बाकू और उससे बनी वस्तुओं जैसे सिगरेट आदि का सेवन करने से हर साल लाखों मौतें होती हैं। हालांकि सरकारी प्रचार-प्रसार और लोक शिक्षण की वजह से अब हर पढ़ा-लिखा, समझदार व्यक्ति जानने लगा है कि तम्बाकू से कैन्सर, हृदय रोग और अल्सर जैसी कई गंभीर बीमारियाँ होती हैं। लेकिन आज भी बड़ी संख्या में लोग बीड़ी, सिगरेट और तम्बाकू मिश्रित दंत मंजन, गुड़ाखू, जर्दा, खैनी, पान-मसाला, गुटखा, हुक्का आदि का सेवन करते हैं। लोगों को समझाया जाना चाहिए कि वो जितना पैसा इस प्रकार के नुकसानदायक पदार्थों पर ख़र्च करते हैं, उतने पैसों में स्वास्थ्यवर्धक, पौष्टिक फल और दूध का सेवन किया जा सकता है।

जरूरत इस बात की है कि लोगों को तम्बाकू मिश्रित चीजों से बचाने के लिए जागृति बढ़ाने के साथ-साथ इन हानिकारक वस्तुओं के उत्पादन पर भी कठोर प्रतिबंध लगाया जाए। वर्ना जन जागरण की सारी कवायद समस्या की जड़ों को छोड़कर उसकी पत्तियों की छँटाई करने तक सीमित रह जाएगी। समस्या की जड़ें सुरक्षित रहेंगी तो तम्बाकू जनित तमाम व्याधियों को लगातार फलने-फूलने से भला कौन रोक पाएगा?