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पाकिस्तान को मोदी की चेतावनी के निहितार्थ

आचार्य ललित मुनि

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम 22 अप्रैल 2025 को हुआ भीषण आतंकी हमला केवल एक जघन्य अपराध नहीं था, बल्कि दक्षिण एशिया की नाजुक स्थिरता पर एक प्रहार था। इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों ने अपने प्राण गँवाए। “द रेसिस्टेंस फ्रंट” (TRF) ने इस कायरतापूर्ण कृत्य की जिम्मेदारी ली, और भारत ने इसे लश्कर-ए-तैयबा का छद्म चेहरा बताते हुए पाकिस्तान की शह पर हुआ हमला करार दिया।

इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंधों में जो दरार थी, वह अब एक विकराल खाई में बदल गई है। कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य मोर्चों पर दोनों देशों के बीच असाधारण तनाव देखा जा रहा है। स्वाभाविक प्रश्न उठता है: क्या दोनों देश एक बार फिर युद्ध के रास्ते पर बढ़ रहे हैं? क्या परमाणु हथियारों का भी जोखिम है? और यदि संघर्ष होता है, तो किसकी स्थिति अधिक सुदृढ़ होगी?

भारत ने हमले के जवाब में बहुपरतीय दबाव नीति अपनाई है, इंडस जल संधि को निलंबित किया गया है, अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी गई है, राजनयिक संबंधों में कटौती की गई है और वीजा सेवाओं को रोक दिया गया है। इसके साथ ही कश्मीर में सेना ने “सर्च एंड डिस्ट्रॉय” अभियानों की व्यापक श्रृंखला शुरू कर दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह स्पष्ट बयान कि “भारत आतंकवादियों और उनके समर्थकों को दुनिया के किसी भी कोने में खोजकर सजा देगा,” केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की बदली हुई रणनीतिक सोच का संकेत है। इसका अर्थ है कि भारत सीमित सैन्य कार्रवाई चाहे वह लक्षित सर्जिकल स्ट्राइक हो या बालाकोट जैसे हवाई हमले  के विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहा है और इससे आगे भी जाने की आशंका है।

वहीं पाकिस्तान ने भी अपनी पारंपरिक भाषा में कहा है कि किसी भी भारतीय कार्रवाई का “पूर्ण बल” से उत्तर दिया जाएगा। नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी की बढ़ती घटनाएँ इस तनातनी की प्रतिध्वनि हैं, जो संघर्ष को जन्म दे सकती हैं।

पाकिस्तान बार बार परमाणु प्रयोग की धमकी देता है, यह उसका गैरजिम्मेदाराना रवैया है, दोनों देश परमाणु संपन्न हैं, लेकिन फ़िर भी उसकी इतनी हिम्मत और औकात नहीं कि परमाणु बम प्रयोग कर सके। ऐसा होने पर फिर भी परमाणु युद्ध की संभावना नगण्य (5% से भी कम) मानी जा रही है। इसके कई ठोस कारण हैं । ये तो तय है कि परमाणु हमला दूसरे देश से जवाबी हमला सुनिश्चित करता है और पाकिस्तान अकल्पनीय तबाही का सामना करने की स्थिति में नहीं है। विशेषकर अमेरिका, रूस, चीन और संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप, परमाणु संघर्ष को हर हाल में रोकने का प्रयास करेगा। आर्थिक और सामाजिक ध्वंस की अनिवार्यता भी दोनों देशों के नीति-निर्धारकों को संयम के लिए विवश करेगी। यदि पाकिस्तान किसी विक्षिप्त निर्णय में पहला परमाणु हमला करता है, तो भारत की जवाबी क्षमता इतनी प्रबल है कि पाकिस्तान की संपूर्ण राष्ट्रीय संरचना और अस्तित्व संकट में आ सकता है और वह दुनिया के नक्शे से गायब भी हो सकता है। यदि पारंपरिक हथियारों से युद्ध होता है, तो भारत का पलड़ा भारी रहेगा।

भारत ने इंडस जल संधि का निलंबन कर कूटनीतिक प्रयोग किया है, इससे पाकिस्तान में दीर्घकालिक जल संकट को गहरा सकता है, पाकिस्तान की कमर तोड़ने के लिए यह कारगर उपाय है। साइबर युद्ध और गुप्त अभियान में भारत पारंगत है भारत की क्षमताएँ इस क्षेत्र में पाकिस्तान से कहीं आगे मानी जाती हैं, इसका बड़ा नुकसान पाकिस्तान को उठाना पड़ेगा। पाकिस्तान पहले से ही गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकटों से जूझ रहा है, जिसमें बलोचिस्तान, केपीके एवं सिंध से अलगाव की मांग उठ रही है। अगर वे भीतर से कब्जा करें तो भारत बाहर से साथ दे सकता है, जिससे तीन बंगलादेश और बनने की संभावना दिखाई देती है। यही सब पाकिस्तान की युद्धकालीन कमजोर नस बन सकते है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “भारत आतंकवादियों और उनके समर्थकों को दुनिया के किसी भी कोने में खोजकर सजा देगा” वक्तव्य केवल जुबानी जमाखर्ची नहीं है। इसके गहरे मायने हैं मोदी के शासन काल में भारत अब केवल निंदा की औपचारिक नीति से आगे बढ चुका है। यह पाकिस्तान को भी मालूम है कि जवाब तगड़ा मिलेगा, इसलिए वहां अभी से खलबली मची हुई है। आतंवाद को शह देने वाले लोगों के खिलाफ़ ठोस कारवाई लगभग तय है और इस दिशा में आगे बढ़ा जा चुका है। अब चाहे सीमित सर्जिकल स्ट्राइक हो, हवाई हमले हों या फ़िर कोई गुप्त अभियान, जवाब भरपूर देने की तैयारी है। कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान अलग थलग पड़ चुका है, खुद पाकिस्तान के हुक्मरान कह रहे हैं कि उनका साथ कोई नहीं दे रहा। चीन भी सीमित रुप से पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है लेकिन युद्ध में शामिल होने की संभावना अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण दिखाई नहीं दे रही है। इसके साथ भारत आर्थिक दबाव भी डाल रहा है, जिसमें व्यापार एवं जल संधि निलम्बन लम्बी रणनीति का हिस्सा हैं।

मोदी के कथन ने पाकिस्तान के नीति-निर्माताओं को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि भारत अब रक्षात्मक नीति नहीं अपनाएगा, बल्कि आक्रामक प्रतिरोध करेगा, आवश्यकता पड़ने पर सीमा पार भी भी जाने की खुली छूट है क्योंकि पाकिस्तान ने अपनी तरह से शिमला समझौता तोड़ दिया है, इसलिए एल ओ सी जैसी कोई सीमा नहीं रह गई है।।

भारत और पाकिस्तान एक बार फिर इतिहास के एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ युद्ध की संभावना दिखाई दे रही है, भले ही पूर्ण युद्ध की संभावना सीमित है, परंतु सीमित सैन्य संघर्ष लगभग अपरिहार्य दिखता है। परमाणु युद्ध की आशंका बहुत कम है, क्योंकि परमाणु शक्ति सम्पन्न रुस भी युक्रेन से परम्परागत हथियारों से ही युद्ध कर रहा है। युद्ध की स्थिति में भारत अपनी सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक ताकत के बल पर निर्णायक बढ़त हासिल कर सकने की स्थिति में है, जबकि भीख का कटोरा हाथ में लिए पाकिस्तान अस्तित्व संबंधी संकट का सामना कर सकता है। अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि आने वाले कुछ सप्ताह दक्षिण एशिया की राजनीति के लिए कैसे होंगे और भारत का जवाब कैसा होगा?