futuredघुमक्कड़ जंक्शन

वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं, जब भी मौका मिले घूम लो : तरुण शुक्ल

घुमक्कड़ जंक्शन में आज आपकी मुलाकात करवाते हैं बैंकिग सेक्टर के कार्य से सेवानिवृत श्री तरुण शुक्ला जी से। श्री तरुण शुक्ला जी अपने देश की संस्कृति, पुरातत्व एवं इतिहास के बड़े दीवाने हैं। बैंक से सेवानिवृत्ति के पश्चात ये अपना समय धरोहरों के दर्शन एवं उनके संरक्षण के आह्वान में व्यतीत कर रहे हैं।

तरुण शुक्ल जी घुमक्कड़ी से प्राप्त ज्ञान पर लिखते भी हैं, आज इनकी घुमक्कड़ी से देश और दुनिया के लोग लाभान्वित हो रहे हैं और इनसे प्रेरणा लेकर अपने शौक पूर्ण कर रहे हैं। हमने इनसे घुमक्कड़ी के विषय में चर्चा की, आइए सुनते हैं इनके विचार एवं जानते हैं इनके जीवन के सफ़र के विष्य में…………

1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?

@ : मैंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से B. A किया है, वैसे मैं विज्ञान का विद्यार्थी था, लेकिन बैंक में नौकरी लग जाने से ग्रेजुएशन आर्ट्स में किया। मेरा गांव मधवास जी, महिसागर गुजरात है । मैने प्रारंभिक शिक्षा लुणावाड़ा शहर में की, जहाँ एक स्कूल में मेरे पिताजी शिक्षक थे।

चूंकि लुणावाड़ा पुराना रजवाड़ी शहर है, इसलिए बचपन से इ्तिहास में रुचि रही है। बचपन का समय, उस दौर के हिसाब से सरल था, लोग सीधे सादे और खुद की सायकल होना भी लक्ज़री जैसा था। अतः करीब हर रोज़ पैदल गांव के चारो ओर घूम आते, कुछ पैसे का जुगाड़ होता तो किराए की सायकल लेकर दोस्त के साथ पास के गाँव के मंदिर, पर्वत, नदी की सैर कर आते।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?

@ : वैसे में भारतीय स्टेट बैंक में अधिकारी था, हाल ही में मैंने बैंक से सेवानिवृत्ति ली है, ताकि मैं इ्तिहास, पुरातत्व की पुस्तकों को पढ़कर अपना ज्ञानवर्धन करुं। गुजरात के सोलंकी काल एवं सल्तनत काल के स्थापत्यों को देखकर अपने शानदार अतीत के गौरव को महसूस कर सकूँ और पुरानी हिंदी फिल्में देखकर एवं पुराने हिंदी फिल्मी गीत सुन कर संगीतमय समय गुज़ारुँ । परिवार में पत्नी और एक बेटा है, मैं गाँधीनगर गुजरात मे रहता हूँ ।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?

@ : बचपन से घूमने की रुचि है, इसीलिए उस वक़्त हर रोज़ शाम को गांव के चारो ओर घूमने निकल जाते थे, ताकि कुदरत के करीब रह सके। लेकिन जब से बैंक में नौकरी लगी तो समय कम मिलने लगा, फिर पिछले कुछ साल से इ्तिहास और पुरातत्व का शौक जागृत हुआ, तो गुजरात मे विशेष कर सोलंकी काल, जो कि गुजरात का सुवर्ण काल था, उस समय के ऐतिहासिक स्थल जैसे कि मंदिर, वाव, कुंड वाव, किला दरवाजे जो कुछ भी अभी बचे हुए है, उसे देखने की लालसा हुई। ज़ब भी समय मिलता है, तो यही देखने निकल जाते है। इन स्थलों की भव्यता देखकर मन को सुकुन मिलता है। 3-4 साल से फेसबुक के जरिये इतिहास, पुरातत्व के क्षेत्र के विद्वान लोगो से भेंट हुई तो शौक और भी बढ़ गया।

4 – क्या आपकी घुमक्कड़ी मे ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं?

@ :ट्रे्किंग एवम रोमांचक खेल सामिल नही है, लेकिन मुझे जो पुरातन स्थल देखने का शौक है, उसे देखने कभी-कभी छोटे पहाड़, जंगल और एकाकी जगह जाना पड़ता है, जो अपने आप मे रोमांचक है।

5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा ?

@ : मैं पहली बार माउंट आबू, (राजस्थान) गया। वहाँ के सोलंकी कालीन देलवाड़ा के जैन मंदीर देखे तो देखता रह गया । क्या इंसान इतनी खूबसूरत शिल्पकृतियां बना सकता है? या यह कोई जादू है? जो सामने था सच था। वैसे मूर्ति कला पूरे विश्व मे सिर्फ हमारे भारत देश मे ही है। आबू में हिन्दू, जैन सभी शिल्प देखे। जिसने मन पर गहरी छाप छोड़ी। उस वक़्त मन में आया, उस युग की बची हुई सब कलाकृतियां देखनी चाहिए, हम नसीब वाले है कि अभी भी काफी कुछ बचा है। हमारे वंशज शायद ना भी देख पाए, क्योंकि बहुत कुछ लुप्त होता जा रहा है। बहुत कुछ विधर्मियो द्वारा तोड़ा जा चुका है। दुर्भाग्य है कि आज के लोग भी इन सब के प्रति उदासीन है।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ : घुमक्कड़ी ज्यादातर परिवार के साथ ही होती है। कुछ समान रुचि के स्थल और थोड़े पुरातन स्थल एक वक्त में एक सफर में देखते है, ताकि परिवार भी आनंद ले सके। वैसे उनको भी यह सब अच्छा लगता है तो दिक्कत नही होती है ।

7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?

@ : पुरानी हिंदी फिल्म देखना और पुराने गीत सुनना, इत्तिहास, भारतिय संस्कृत्ति और पुरातत्व की पुस्तके पढ़ना मेरी अन्य रुचियां है ।

8 – क्या आप मानते हैं घुमक्कड़ी जीवन के लिए आवश्यक है?

@ : घुमक्कड़ी इस लिए आवश्यक है कि उससे जीवन जीने का नया हौसला मिलता है। नई जगह, नए लोग, कुदरत का नया रंग और जीवन के नए अनुभव आदमी को बेहतर बनाते है। उसे सकारात्मक ऊर्जा देते है। तकलीफे आदमी को सहनशील बनाती है और खुशिया आदमी को भविष्य के लिए नया हौसला देती है ।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ : मेरी अब तक कि रोमांचक यात्रा पाटण गुजरात की राणकी वाव (बावली) की है। यह वाव (बावली) करीब सात आठ सदी जमीन में दबी रही । लोगों को इसके बारे में पता नही था। जब इसका उत्खनन भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा शुरू हुआ, जमीन में से पूरी वाव और मुर्तिया बाहर आई तो लोग दंग रह गए। इतनी शानदार मूर्तिकला शायद ही पूरे विश्व मे और कही मिले। हर मूर्ति एक से बढ़कर एक और समय की मार से बची हुई। उसे देखता गया, बस देखता ही रहा।

कितने महान शिल्पकार थे हमारे देश के और सोलंकी राजा भीमदेव की स्मृति में रानी उदयमती ने यह वाव बनाकर लोगो को जल संचय का नायाब नमूना दिया और साथ मे काफी अद्भुत मुर्तियों से इस वाव को सजाया। रानी की सोच कितनी महान थी, यह गौर करने वाली बात है। ऐसे पुण्यदायी जनकार्य में पैसा पानी की तरह बहाने वाले सोलंकी कुल को वंदन ।

आज तक गुजरात के नारायण सरोवर, कोटेश्वर, भुज, सफेद रण, मोरबी, द्वारका, सोमनाथ, दीव, जूनागढ़, गिरनार, सासन गिर, चोटिला, अम्बाजी, आबू, तारंगा, वडनगर, रोड़ा, असोड़ा, शामलाजी, पावागढ़, चंपानेर, कलेशरी, रतनपुर, खड़ात महूडी और भी छोटे गांव जहाँ सोलंकी कालीन मंदिर हैं, वह देखे है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी उदयपुर, आबू , इंदौर, उज्जैन, ओम्कारेश्वर वगैरह देखे है। भारत के भी काफी स्थल घूम लिए, दुबई गया तो वहाँ की पुरानी जीवन पद्धति जानने के लिए वहाँ का म्यूज़ियम बहोत सारा समय दे कर देखा है ।

यात्राओं से यही सीखने को मिला कि जो भी देखो, उसके बारे में सब को बताओ, ताकि और लोग भी उस स्थल को जान सके, देख सके। लोग आपके साथ जुड़ सके। व्यक्तिगत तौर पर भी यात्राओं से जीवन जीने की ऊर्जा मिलने से जीवन बेहतर होता है।

10 – घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ : जब भी मौका मिले अपनी रुचि की जगह घूम लेनी चाहिए, वक़्त किसी के लिए ठहरता नही है, आज घूम सकते है, कल कोई मर्यादा आ गयी तो घूमना मुश्किल हो सकता है। उम्र बढ़ती है तो अपनी मर्यादाए लाती है और फिर घुमक्कडी के अनुभवों से जीवन बेहतरी से जी भी तो सकते है ।

9 thoughts on “वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं, जब भी मौका मिले घूम लो : तरुण शुक्ल

  • Bahut badhiya Tarun ji, aise hi ghumakkdi karte rahiye. Shubhkamnaye apko☺

  • Sandhya Sharma

    घुमक्कड़ी चलती रहे… शुभकामनाएं

  • santosh misra

    बहुत सुंदर दा रुकी हुई गाड़ी फिर से चल दी

  • नरेंद्र चूरा जोधपुर

    मेरा मानना है की घुम्मकड़ी जीवन की जरूरत है इस बात को हरकोई नही समझता जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।मेरे हिसाब से यह सबके लिए जरूरी है। मात्र पैसा कमाना और जोड़ते रहना बेकार बात है क्या कोई पैसे को साथ लेकर मौत के पास गया है। नही ना। घुम्मकड़ी पैसे का सदुपयोग है जी।
    नरेंद्र चूरा
    वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार
    पूर्व संपादक दैनिक भास्कर
    नागौर राजस्थान। संपर्क 9672995584

  • Vijaya Pant Tuli

    सुंदर प्रस्तुति

  • कारुलाल जमडा़

    बहुत सुंदर यात्रावृत!जय हो आपकी!

  • Gaurav vanta gujarati

  • Shukla ji
    Tusi great ho…. dada I am proud to be your friend.

  • बहुत सुंदर यात्रावृत!जय हो आपकी!

Comments are closed.