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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राज्यपालों को बिल पर फैसला देने के लिए मिला समय सीमा का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा महीनों और सालों तक विधेयकों पर फैसला न लेने को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर विधानसभा किसी बिल को फिर से पास करके राज्यपाल के पास भेजती है, तो राज्यपाल “असहमति नहीं जता सकते”।

राज्यपालों को मिली समय सीमा

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राज्यपालों के लिए विधेयकों पर फैसला लेने की समयसीमा तय कर दी:

  • असहमति जताने पर: 1 महीना
  • मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत असहमति पर: 3 महीने
  • राष्ट्रपति के विचार के लिए बिल रोकने पर: 3 महीने
  • पुनर्विचार के लिए भेजे गए बिल पर: 1 महीना

ये अधिकतम समयसीमाएं हैं, जबकि आदर्श स्थिति में राज्यपालों को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

तमिलनाडु के मामले में क्या हुआ?

तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल के सामने कम से कम 10 बिल रखे थे, जिन पर महीनों तक कोई फैसला नहीं हुआ। अंत में राज्यपाल ने इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि “राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव लंबे समय से चल रहा है।”

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने फैसले में कहा:

  • “राज्यपाल संवैधानिक प्रक्रिया में बाधा नहीं बन सकते।”
  • “अगर विधानसभा बिल को दोबारा पास करके भेजती है, तो राज्यपाल को मंजूरी देनी ही होगी।”

किसने दी दलीलें?

  • केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पक्ष रखा।
  • तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील ए.एम. सिंघवी, राकेश द्विवेदी, पी. विल्सन और एडवोकेट सबरीश सुब्रमण्यम ने सुनवाई की।

क्यों महत्वपूर्ण है ये फैसला?

यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या करता है, जो राज्यपालों की भूमिका को स्पष्ट करता है। अब राज्यपालों को बिलों पर समयबद्ध तरीके से फैसला लेना होगा, वरना कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।

(यह खबर न्यायिक सूत्रों और कोर्ट के दस्तावेजों पर आधारित है।)

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