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दूसरों को दोष मत दो : स्वामी विवेकानन्द

‘एक मंदिर के सामने एक सन्यासी रहता था और उसी के पास वाले घर में एक वेश्या भी रहती थी । सन्यासी रोजाना उस वेश्या पर चिल्लाता, उसकी निन्दा करता। उधर वेश्या अपने दुष्कर्म का पश्चाताप करते हुए सदैव ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहती।

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उदार बनो और सेवा करो – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानन्द सच्चे कर्मयोगी थे। उन्होंने गरीबों के दुःख दूर करने के विशेष प्रयोजन के लिए जन्म लिया था और इसका उन्होंने अन्तिम श्वास तक अनवरत निर्वहन भी किया। वे कहते हैं- ” नर सेवा ही नारायण सेवा है।”

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दुर्बल नहीं, सबल बनो – स्वामी विवेकानंद

शक्ति, शक्ति, शक्ति, यही वह है जिसकी हमें जीवन में सर्वाधिक आवश्यकता है। कमजोर के लिए यहाँ कोई जगह नहीं हैं, न इस जीवन, न ही किसी और जीवन में । दुर्बलता गुलामी की ओर ले जाती है । दुर्बलता हर प्रकार की दुर्गति की ओर ले जाती है- शारीरिक और मानसिक । शक्ति ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु

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सक्रियता और संकल्प सफलता की कुंजी

अकर्मण्यता, निराशा, आलस्य और शिथिलता – ये सभी उद्भव, विकास और उन्नति के सबसे बड़े बाधक तत्व हैं। अनेक लोग

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