ललित शर्मा

futuredधर्म-अध्यात्म

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी का त्योहार पारंपरिक उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होली के पांच दिन बाद आता है और इसमें रंगों की धूम देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, तथा इस दिन भी फ़ाग गाने एवं रंग खेलने की परम्परा दिखाई देती है।

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futuredविश्व वार्ता

बलोचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई एवं बलोचों के क्रूर दमन का इतिहास

बलोचिस्तान की स्वतंत्रता की लड़ाई आज भी जारी है। बलोच विद्रोही समूह लगातार पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान इस आंदोलन को कुचलने के लिए हरसंभव दमनकारी उपाय कर रहा है।

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futuredसम्पादकीय

संरक्षण और संवेदनशीलता की पुकार : वन्य जीव दिवस

वन्य जीव दिवस हर वर्ष 3 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन प्रकृति में जीवों के महत्व को समझने, उनके संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करने और लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2013 में इस दिन को आधिकारिक रूप से मनाने की घोषणा की गई थी।

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futuredधर्म-अध्यात्म

ब्रजभूमि का अनूठा पर्व : फूलेरा दूज

फूलरिया दूज  या फ़ूलेरा दूज भारतीय संस्कृति और हिंदू परंपराओं में विशेष स्थान रखने वाला एक अद्भुत त्योहार है, जिसे मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है और इसे श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम व होली महोत्सव से जोड़ा जाता है।

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futuredधर्म-अध्यात्म

शिव तत्व की लोक जीवन में व्यापकता

लोक में शिव तत्व जीवन की सहजता, सरलता, और व्यापकता को दर्शाता है। वे एक ऐसे ईश्वर हैं जो आडंबर से दूर हैं, जो सबको स्वीकार करते हैं, जो सृजन, पालन और संहार तीनों को साधते हैं। लोकमानस में शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन और अस्तित्व के सत्य का प्रतीक हैं। यही कारण है कि शिव हर गाँव, हर संस्कृति, और हर व्यक्ति के हृदय में बसते हैं।

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futuredधर्म-अध्यात्महमारे नायक

धार्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत : स्वामी दयानंद सरस्वती

स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। वे एक महान सुधारक, विचारक और आर्य समाज के संस्थापक थे। बोध दिवस वह महत्वपूर्ण दिन है, जब स्वामी दयानंद को अपने आध्यात्मिक लक्ष्य और सत्य की वास्तविकता का साक्षात्कार हुआ। यह दिन उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ था, जिसने उन्हें वेदों के शुद्ध ज्ञान के प्रचार और सामाजिक सुधार की ओर प्रेरित किया।

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